2/22/2024

ग्रामीण विकास अर्थ, परिभाषा, महत्व

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ग्रामीण विकास का अर्थ एवं परिभाषा 

gramin vikas arth paribhasha mahatva;विश्व बैंक के ग्रामीण विकास क्षेत्र की नीति के अनुसार," ग्रामीण विकास एक व्यूह रचना (Strategy) है जो कि एक विशेष समूह गरीब व्यक्तियों के आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिये बनाई जाती है। यह व्यूह रचना ग्रामीण क्षेत्रों के अति गरीब व्यक्तियों तक विकास के लाभों को पहुंचाने के लिये तैयार की जाती है। इस समूह मे किसान और खेतिहर मजदूर आते है।" 

इसी प्रकाशन मे आगे ग्रामीण विकास की परिभाषा इस प्रकार की गई है " ग्रामीण विकास गरीब ग्रामीणों के रहन-सहन के स्तर में उन्नति करने की प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया को स्वयं धारी (self-Sustaining) बनाया जाना चाहिए।" 

श्री जी. पार्थसारथी ने ग्रामीण विकास की परिभाषा इस प्रकार की है-- " ग्रामीण विकास मे विवेचनात्मक तत्व गरीब ग्रामीणों के रहन-सहन के स्तर मे उनके भौतिक और मानवी साधनों के उन्नत उपयोग के द्वारा वृद्धि करना है। इसके अभाव मे ग्रामीण साधनों के उपयोग की कोई लाभदायक सार्थकता नही है। ग्रामीण विकास की प्रक्रिया को स्वयं धारी या आत्मनिर्भर बनाने के लिये पूंजी और तकनीकी ज्ञान को गतिशील बनाना ही नही अपितु ग्रामीण विकास संस्थाओं को बनाने और उनको एक सुचारू रूप से चलाने मे ग्रामीणों का सक्रिय सम्बद्ध होना भी आवश्यक है।" 

मिचेल टोडारो की दृष्टि मे "ग्रामीण विकास" मे निम्न कार्य आते है-- 

1. रहन-सहन के स्तर में उन्नतिः इस उन्नति मे रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषाहार (Nutritio), मकान की सुविधाएं और उनके प्रकार की सामाजिक सेवाये आती है। 

2. ग्रामीण आय के वितरण की असमानता को कम करना व ग्रामीण और शहरी आय और आर्थिक अवसरों मे असमानता को दूर करना। 

ग्रामीण विकास से तात्पर्य बुनियादी सुविधाएं जैसे-- भोजन, आवास, वस्त्र, पेयजल, चिकित्सा, शिक्षा, सिंचाई के साधन, पक्की सड़क इत्यादि मुहैया कराकर उनके जीवन स्तर को सुधारना है। साथ ही इस संबंध मे यह जरूरी है कि ग्रामीण क्षेत्रों के अब तक असंगठित श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी दिलवाने की भी व्यवस्था की जाए। 

अन्तिम विश्लेषण मे ग्रामीण विकास ग्रामीण क्षेत्रों मे मानवीय साधनों के अनुकूलतम प्रयोग के अवसर प्रदान करने से है और मानवीय साधनों का विकास उचित पोषाहार और कार्य करने के उचित अवसर प्रदान करने के आधार पर ही हो सकता है।

भारत मे ग्रामीण विकास क्यों जरूरी है? 

भारत अपने विशाल संसाधन तथा श्रम शक्ति के बावजूद अब तक विकसित देशों का दर्जा पाने के काबिल नहीं बन सका है। ऐसी स्थिति में विश्व राजनीति में अपना दखल कायम करना तो सपना देखने जैसा है।

आज भी हमारा देश असंतुलित आर्थिक विकास के लिए बुरी तरह से छटपटा रहा है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के उज्जवल भविष्य की जो उद्घोषणा की थी वह मौजूदा स्थितियों विशेषकर गंभीर आर्थिक संकट से कही मेल खाती नजर नही आती।

भारत इतने गंभीर आर्थिक संकट में फंस गया है की सरकार को मजबूर होकर नई आर्थिक नीति की घोषणा कर अपने देश के द्वार विदेशी कंपनियों एवं निवासियों को खोलने पड़े। इतना ही नहीं भारत की अर्थव्यवस्था इतनी बिगड़ चुकी है कि या बिगाड़ दी गई है कि विगत कुछ वर्षों से हमारी सरकार विश्व के हर कोने से ऋण लेने में जुटी हुई है।

हमारा देश आज भी अनेक समस्याओं से जूझ रहा है देश की एक तिहाई से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है। वर्तमान मे देश में करोड शिक्षित बेरोजगार है। योजना गत विकास में राष्ट्रीय आय तो बड़ी है लेकिन इस वृद्धि का लाभ लोगों को समान रूप से प्राप्त नहीं हुआ है। नई आर्थिक नीतियों पर अमल के बाद उन वस्तुओं का ही उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है जो धनी लोगों के काम आती है।

गहन आर्थिक संकट के कारण भारत अपने विशाल संसाधन तथा श्रम शक्ति के बावजूद अब तक विकसित देशों का दर्जा पाने के काबिल नहीं बन सका है। ऐसी स्थिति में भारत के लिए विश्व राजनीति में अपना दखल कायम करना तो खैर जागी आंखों में सपना देखने जैसा ही है।

अतएव यह जानना अत्यंत जरूरी है कि प्रगति के मामले में भारत अन्य देशों से निरंतर पीछे क्यों छूटता जा रहा है। साथ ही यह भी जानना अत्यंत आवश्यक है कि एक जमाने में सोने की चिड़िया के कहे जाने वाला भारत आज कांच की गुड़िया क्यों बन गया है।

इस संबंध में गहराई से छानबीन करने पर हमें ऐसे अनेक मौलिक कारणों का पता चलता है जो भारतीय अर्थव्यवस्था की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है। वैसे तो इन कारणों में जनसंख्या वृद्धि, महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, प्रकृति संसाधनों का समुचित उपयोग ना हो पाना एवं भ्रष्टाचार प्रमुख माने जाते हैं। परंतु इस संबंध में हम लोग सामान्यता एक ऐसे अन्य मौलिक कारण को नजरअंदाज कर देते हैं जिसका अपना अलग महत्व है यह कारण है ग्रामीण विकास सही रूप में ना हो पाना।

वास्तव में हमारी अर्थव्यवस्था ऐसी है जो मूलतः कृषि पर ही निर्भर है। इसलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि निरंतर ग्रामीण विकास के बिना हमारा राष्ट्रीय विकास अधूरा एवं निरर्थक ही साबित होगा। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि ग्रामीण उत्थान राष्ट्र के जीवन का मूल आधार है।

इतना ही नहीं अपितु ग्रामीण विकास से अनेक ऐसी बातें श्रृंखलाबद्ध ढंग से जुड़ी हुई है जो अंततः देश के समग्र विकास के लक्ष्य की पूर्ति करती हैं।

आखिरकार ग्रामीण विकास क्यों जरूरी है? इस संबंध में यदि गौर किया जाए तो हम पाते हैं कि ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार लाने तथा उन्हें साक्षर बना देने से पूरे देश की अन्य अनेक समस्याएं अपने आप दूर होने लगेंगी।

वास्तव में निरक्षरता एक ऐसी समस्या है जो तेजी से बढ़ती जनसंख्या एवं गरीबी के भी मूल मे है। यदि अनपढ़ लोगों को साक्षर बना दिया जाए तो एक साथ दो फायदे होंगे मतलब एक अनपढ़ ग्रामीण को पढ़ लिख लेने के बाद छोटे परिवार की अवधारणा को आसानी से समझ सकेगा। वह इसके लाभों से अवगत होकर इस दिशा में उन्मुख हो जाएगा परिणामस्वरूप निरंतर बढ़ती जनसंख्या की लगाम थामनें में उम्मीद मिलेगी। उल्लेखनीय है कि ग्रामीण क्षेत्रों की आबादी को ही सबसे अधिक जनसंख्या वृद्धि अज्ञान, अशिक्षा गरीबी की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

इतना ही नहीं जब कोई व्यक्ति विशेष का निरीक्षण ग्रामीण शिक्षा की रोशनी से सराबोर हो जाता है तो वह जीवन के उपार्जन के अनेक उपाय ढूंढ  निकालता है।  साथ ही उसके लिए रोजगार के अनेक अवसर भी उपलब्ध रहते हैं जबकि अनपढ़ व्यक्ति की इस मामले में अपने कुछ सीमाएं रहती हैं। एक शिक्षित व्यक्ति स्वरोजगार की अवधारणा में भी पूरी तरह फिट बैठता है। एक अनपढ़ व्यक्ति की जगह एक साक्षर व्यक्ति अपनी और अपने परिवार की गरीबी दूर करने में पूर्णता सक्षम होता है। इससे अंततः गरीबी उन्मूलन में भी मदद मिलेगी। अतः जहां एक और निरक्षरता का जनसंख्या वृद्धि तथा गरीबी दोनों से सीधा संबंध है वहीं दूसरी ओर निरक्षरता की चर्चा करने पर हमारा ध्यान तुरंत ग्रामीण लोगों की ओर जाना भी वाजिब है। इसका कारण यह है कि वर्तमान में निरक्षर लोगों की सबसे ज्यादा तादाद देश के ग्रामीण क्षेत्रों में ही है।

ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार होने से सबसे बड़ा फायदा होगा कि वे उत्साहित होकर अपने-अपने गांव में ही रहकर कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी करने तथा कृषि उत्पादन पर आधारित लघु एवं कुटीर उद्योग लगाने की ओर उन्मुख होंगे। परिणामस्वरूप ग्रामीणों का नगरों की ओर पलायन भी रुक जाएगा। इससे जहां एक और ग्रामीण परिवार टूटने एवं बिखरने से बचेंगे वहीं दूसरी ओर नगरों पर निरंतर जनसंख्या का बढ़ता दबाव भी काफी हद तक कम हो जाएगा।

उधर कृषि उपज में भारी बढ़ोतरी का अर्थ यह है कि जहां एक और देश को खाद्यान्न संकट से मुक्ति मिलेगी वहीं दूसरी ओर आंतरिक पैदावार से निर्यात बढ़ने में मदद मिलेगी। अप्रक्षत रूप से अधिक विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होगी। इससे प्रदेश मुद्रा का भंडार सुदृढ़  होगा साथ ही देश सभी तरह के ऋणों का समय पर भुगतान करने में भी सक्षम हो जाएगा। इतना ही नहीं भविष्य में और ज्यादा ऋणो के भंवर जाल मे उलझनें से भी बच जायेगा।

इस तरह हम देखते हैं कि अपेक्षित ग्रामीण विकास से हमारा देश एक साथ कई समस्याओं से मुक्त हो सकता है। अतः हमें इस सच्चाई को मानना ही होगा कि देश के समग्र विकास के लिए अपेक्षित ग्रामीण उत्थान अत्यंत जरूरी है।

ग्रामीण विकास का महत्व (gramin vikas ka mahatva)

भारत मे ग्रामीण विकास का महत्व इस कारण से नही है कि गाँवों मे बहुत अधिक जनसंख्या निवास करती है। बल्कि देश के आर्थिक विकास मे रहने वालों का योगदान भी बहुत अधिक है। देश के विकास की प्रक्रिया मे ग्रामीण विकास का महत्व आज समय की अपेक्षा अधिक माना जा रहा है। इस बात के पर्याप्त प्रमाण है कि ग्रामीण विकास मे जनता की रूचि बहुत तेजी से बढ़ रही है। 

ग्रामीण लोग चाहे खेती करते हों या दूसरा व्यवसाय करतें हों, उनकी गरीबी दूर करना, उनके कल्याण के लिये कार्य करना और विशेष रूप मे पैदावार बढ़ाना और उस पैदावाद का समान वितरण करना प्रजातन्त्र सरकार का पहला कर्तव्य है। सातवीं पंचवर्षीय योजना मे घोषणा की गयी है कि योजना ग्रामीण क्षेत्रों के व्यक्तियों और कृषकों का विकास करना योजना का मुख्य उद्देश्य है। उनके भौतिक, वित्तीय व मानवीय साधनों का उचित उपयोग किया जाएगा।

ग्रामीण विकास के महत्व को देखते हुए केन्द्रीय सरकार ने ग्राम विकास का पृथक मन्त्रालय गठित किया है और 9 अक्टूबर, 1992 को प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंहराव ने ग्रामीण विकास पर मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया था। श्री राव ने ग्रामीण विकास पर मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा था कि ग्रामीण विकास योजना पर अमल करते हुए अधिक धन की जरूरत पड़ने पर उसे उपलब्ध कराया जायेगा।

यह भी पढ़े; ग्रामीण विकास के उद्देश्य 

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