4/18/2021

भुगतान संतुलन क्या है? परिभाषा, महत्व, प्रमुख मदें

By:   Last Updated: in: ,

भुगतान संतुलन क्या है? (bhuktan santulan kise kahte hai)

bhuktan santulan arth paribhasha mahatva;भुगतान संतुलन से आशय एक देश के समस्त आयातों एवं निर्यातों व अन्य अन्य सेवाओं के मूल्यों के सम्पूर्ण विवरण से होता है। इसका विवरण तैयार करते समय दोहरी प्रविष्टि प्रणाली अपनायी जाती है, जिसमे शेष विश्व के साथ किसी देश के लेखे का विवरण होता है। इसके अंतर्गत लेनदेन के दो पक्ष होते है।

एक ओर तो देश की विदेशी मुद्रा की लेनदारियों का विवरण रहता है जिसे धनात्मक पक्ष कहते है तथा दूसरी ओर देश की समस्त देनदारियों का विवरण रहता है, जिसे ऋणात्मक पक्ष कहते है।

भुगतान संतुलन की परिभाषा (bhuktan santulan ki paribhasha)

प्रो. वाल्टर क्रासे के अनुसार," किसी देश के भुगतान संतुलन उसके निवासियों एवं शेष विश्व के निवासियों के बीच दी हुई अवधि मे (एक वर्ष मे) पूर्ण किए गए समस्त आर्थिक लेन-देन का एक व्यवस्थित विवरण अथवा लेखा है।" 

जेम्स इंग्राम के अनुसार," भुगतान संतुलन एक देश के उन सभी आर्थिक लेनदेनों का संक्षिप्त विवरण है जो उसके एवं शेष विश्व के निवासियों के बीच एक दिए गए समय मे किए जाते है।" 

प्रो. बेनहेम के अनुसार," किसी देश के भुगतान संतुलन उसके शेष विश्व के साथ एक समय की अवधि मे किये जाने वाले मौद्रिक लेन-देन का विवरण है, जबकि एक देश का व्यापार संतुलन एक निश्चित अवधि मे उसके आयातों एवं निर्यातों के बीच संभव है।" 

प्रो. हैडरलर के अनुसार," भुगतान संतुलन शब्द का प्रयोग विदेशी चलन की सम्पूर्ण मांग एवं पूर्ति की परिस्थितियों से है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विवेचन मे इसी अर्थ मे भुगतान संतुलन के प्रयोग बहुधा किया जाता है।" 

ई. टी. एलिसवर्थ के अनुसार," भुगतान संतुलन एक राष्ट्र के निवासियों एवं विश्व के शेष निवासियों के मध्य समस्त लेन-देन का संक्षिप्त विवरण है। यह एक निश्चित समयावधि के लिये होता है प्रायः एक बर्ष।"

इस प्रकार उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि भुगतान संतुलन मे दृश्य मदों के साथ-साथ अन्य देशों के साथ होने वाले लेन-देन का विस्तृत विवरण है, जिसमे एक निश्चित अविध से संबद्ध वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात-निर्यात, पूंजी, ब्याज, लाभ तथा अन्य भुगतानों संबंधी समस्त प्रकाश के विदेशी लेन-देनों का समावेश होता है।

व्यापार संतुलन और भुगतान संतुलन मे अंतर 

व्यापार संतुलन और भुगतान संतुलन में अंतर इस प्रकार है--

1. व्यापार संतुलन मे केवल आयात एवं निर्यात को ही महत्व दिया जाता है, जबकि भुगतान संतुलन मे आयात व निर्यात के अतिरिक्त पूंजीगत लेनदेन भी सम्मिलित रहते है।

2. किसी भी देश का व्यापार संतुलन पक्ष या विपक्ष मे हो सकता है, परन्तु उसका भुगतान संतुलन सदैव संतुलित रहता है।

3. व्यापार संतुलन मे केवल विदेशी व्यापार की दिखने वाली मदों को ही शामिल किया जाता है, जबकि भुगतान संतुलन मे सभी दृश्य व अदृश्य वस्तुएं सम्मिलित की जाती है। 

4. व्यापार शेष (संतुलन) के पक्ष या विपक्ष का देश की अर्थव्यवस्था पर अन्य बातों के समान रहने पर कोई विषय प्रभाव नही पड़ता, किन्तु भुगतान संतुलन की असाम्यता का देश की अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष एवं व्यापक प्रभाव पड़ता है।

5. भुगतान शेष सदैव संतुलित होता है, जबकि व्यापार शेष संतुलित, अनुकूल अथवा प्रतिकूल हो सकता है।

6. व्यापार संतुलन भुगतान स्थिति का आर्थिक विश्लेषण है, जबकि भुगतान संतुलन किसी देश की भुगतान स्थिति का सम्पूर्ण विश्लेषण है।

7. व्यापार संतुलन का आर्थिक विश्लेषणों के निर्णयों मे कम उपयोग होता है। इसके विपरीत भुगतान संतुलन का आर्थिक विश्लेषणों एवं निर्णयों मे अधिक उपयोग होता है।

8. व्यापार संतुलन का भुगतान संतुलन की तुलना मे कम महत्व होता है, इसके विपरीत भुगतान संतुलन का व्यापार संतुलन से अधिक महत्व होता है, क्योंकि यह देश की स्थिति पर अधिक प्रकाश डालता है।

भुगतान संतुलन का महत्व (bhuktan santulan ka mahatva)

भुगतान संतुलन का महत्व इस प्रकार है--

1. भुगतान संतुलन किसी देश की आर्थिक स्थिति का मापक होता है क्योंकि इसमे उच्चावचनों के आधार पर किसी भी देश की आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।

2. भुगतान संतुलन से देश की समृद्धता तथा असमृद्धता का स्पष्ट आभास मिल जाता है। इसी के आधार पर किसी राष्ट्र को संपन्न अथवा विपन्न माना जा सकता है। यदि यह संतुलन देश के पक्ष मे है तो संपन्न देश और विपक्ष मे होने मे विपन्न देश कहलाता है।

3. भुगतान संतुलन के आधार पर हमे यह स्पष्ट रूप से ज्ञात हो जाता है कि हमारी देनदारियाँ कितनी है और हमे किन-किन देशों मे क्या-क्या लेना है? 

4. अर्द्धविकसित अथवा अविकसित राष्ट्र के भुगतान संतुलन के आधार पर कहा जा सकता है कि उसे अपने विकास के लिए किन-किन देशों से विदेशी पूंजी उधार लेनी पड़ी है जबकि एक विकसित देश के भुगतान संतुलन यह बताते है कि विदेशी नागरिकों से कितनी आय प्राप्त हो रही है।

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कीसी भी देश के लिए भुगतान संतुलन का बहुत अधिक महत्व है।

भुगतान संतुलन की प्रमुख मदें 

भुगतान संतुलन की मुख्य मदें इस प्रकार है--

1. वस्तुओं का आयात एवं निर्यात 

एक देश द्वारा वस्तुओं का जो निर्यात किया जाता है उसका भुगतान उसे प्राप्त होता है अतः इसकी प्रविष्टि (Cr) पक्ष मे की जाती है। इसके विपरीत आयात की जाने वाली वस्तुओं का भुगतान करना पड़ता है इसलिए प्रविष्टि (Dr.) पक्ष मे की जाती है।

2. सेवाएं 

बिमा कंपनियों, जहाजों, बैंको आदि के मध्यम से राष्ट्रों द्वारा सेवाओं का आयात निर्यात किया जाता है। यदि हमारे देश की कंपनियां विदेशी नागरिकों को सेवाएं प्रदान करती है, तो यह निर्यात जैसा होगा क्योंकि इनके बदले मे देश को भुगतान प्राप्त होगा अतः इसकी प्रविष्टि (Cr) पक्ष मे होगी। इसके विपरीत विदेशी कंपनियों से ली गई सेवाएं आयातों के समान होगी जिनके बदले मे भुगतान विदेशों को करना पड़ेगा अतः इसकी प्रविष्टि (Dr.) पक्ष मे होगी।

3. ब्याज एवं लाभांश 

विदेशों से प्राप्त ब्याज एवं लाभांश की प्रविष्टि (Cr.) पक्ष मे तथा विदेशों को किए गए भुगतान की प्रविष्टि (Dr.) पक्ष मे की जाती है। 

4. विदेशों मे सरकार का व्यय 

प्रत्येक देश की सरकार को विदेशों पर स्थित अपने दूतावासों पर खर्च करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त युद्ध मे हराने पर क्षतिपूर्ति का भुगतान करना पड़ता है। कभी-कभी कोई राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को चंदा या आर्थिक सहायता प्रदान करता है। यदि इन सभी से राष्ट्र को भुगतान प्राप्त होता है तो उसकी प्रविष्टि (Cr.) पक्ष मे तथा इनके कारण विदेशों को भुगतान करना पड़े तो इनकी प्रविष्टि (Dr.) पक्ष मे होती है।

5. दीर्घकालीन विनियोग 

एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए विदेशों मे किए गए विनियोग दीर्घकालीन विनियोग कहलाते है। इसके अंतर्गत विदेशों मे खरीदी गई परिसंपत्तियां तथा विदेशी प्रतिभूतियां शामिल होती है। जिस देश मे यह विनियोग किया जाता है उसके भुगतान संतुलन के (Cr.) पक्ष मे इसकी प्रविष्टि की जाती है, क्योंकि इससे उसको पूंजी की प्राप्ति होती है। जिस देश के नागरिकों द्वारा विनियोग किया जाता है उसके भुगतान संतुलन मे इसकी प्रविष्टि (Dr.) पक्ष मे की जाती है, क्योंकि उस देश से पूंजी बाहर जा रही है।

6. अल्पकालीन विनियोग 

एक वर्ष से कम समय के लिए विदेशों मे किए गए विनियोग अल्पकालीन विनियोग कहलाते है जैसे विदेशी बैंक मे जमा धन आदि। इसकी प्रविष्टि दीर्घकालीन विनियोग के समान ही होती है।

7. स्वर्ण का आयात-निर्यात 

जब उपरोक्त मदों के आधार पर किसी देश को प्राप्त होने वाले कुल भुगतानों का उस देश द्वारा किए जाने वाले कुल भुगतानों से संतुलन नही होता तो स्वर्ण के आयात-निर्यात द्वारा यह संतुलन स्थापित किया जाता है। स्वर्ण निर्यात करने पर इसका मूल्य उस राष्ट्र को प्राप्त होता है अतः इसकि प्रविष्टि (Cr.) पक्ष मे की जावेगी इसके विपरीत स्वर्ण आयात करने वाले राष्ट्र के भुगतान संतुलन मे इसकी प्रविष्टि (Dr.) मे हीगी, क्योंकि आयातित स्वर्ण के मूल्य का उसे भुगतान करना पड़ेगा।

आपको यह भी पढ़ें जरूर पढ़ना चाहिए 

6 टिप्‍पणियां:
Write comment
  1. Videsi vyapar me adayagi kosh kya hota hai

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. भुगतान संतुलन को ही अदाएगी कहते है जिसमे अंतरराष्ट्रीय व्यापार के अंदर प्रत्येक कुछ वस्तुओं का दूसरे देशों से आयात करना होता है जिसका उस देश को भुगतान करना होता है इसे ही भुगतान संतुलन कहते है
      Exm. इंडिया से USA ने कोई सामान खरीदा और अब उसे इंडिया को payment करना होगा 😁

      हटाएं
  2. बेनामी21/11/22, 11:22 pm

    Economics board exams images of 2023

    जवाब देंहटाएं
  3. बेनामी15/3/23, 8:53 pm

    Antarastriy vyapar ka sastriy sidhant

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्तर
    1. बेनामी10/12/23, 5:01 pm

      अनुकूलतम भुगतान संतुलन क्या है

      हटाएं

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।