4/02/2021

भारतीय विदेश नीति की विशेषताएं

By:   Last Updated: in: ,

bharat ki videsh niti ki visheshta;सभी देशों की विदेश नीति मुख्य उद्देश्य अपने राष्ट्र का हित होता है, उस प्रकार भारत की विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य भी राष्ट्रीय हित है। अपने राष्ट्र के हित तथा अपने देश के आर्दशों को ध्यान मे रखकर तथा अंतर्राष्ट्रीय हित मे समन्वय स्थापित करते हुए हमारे देश की विदेश नीति के निर्माताओं ने अपनी विदेश नीति के कुछ सिद्धांत निर्धारित किए है, इन्ही को भारत की विदेश नीति की विशेषताएं या आधार के नाम से जाना जाता है।

भारतीय विदेशी नीति की विशेषताएं 

भारत की विदेश नीति की विशेषताएं निम्न प्रकार से है--
1. असंलग्नता की नीति 
भारत की विदेश नीति को असंलग्नता की नीति के नाम से परिभाषित किया जाता है भारत की असंलग्नता ही विदेश नीति का प्रमुख घोषणा पत्र एवं मूलभूत निर्णायक सिद्धांत है। असंलग्नता को समय-समय पर पाॅलिसी ऑफ न्यूट्रीलिटी, पाजिटिव न्यूट्रीलिटिव, डानेमिक न्यूट्रीलिटिव, नान-इन्वाल्वमेंट तथा महाशक्तियों के मध्य बराबर की दूरी बनाये रखने की नीति से भी जाना जाता है, परन्तु वास्तविकता यह है कि यह एक उच्च स्तरीय वस्तुनिष्ठ तथ्य है। इसका मतलब है कि सब चीजें, सभी मनुष्यों के लिए है। परन्तु असंलग्नता कोई डाक्ट्रिन नही है। न तो यह कोई धर्मसार है अपितु असंलग्नता तो एक मार्ग है, स्थिति है। 
इसका उद्देश्य कोई तृतीय ग्रुप अथवा तीसरी शक्ति बनाना भी नही है। असंलग्नता तो निश्चयपूर्वक निर्णय लेने एवं कार्य करने की स्वतंत्रता है। असंलग्नता विश्व राजनीति मे स्वतंत्र नीति के निर्धारण एवं उस पर अमल करने की क्षमता प्रदान करता है।
2. निः शस्त्रीकरण मे विश्वास 
आरंभ से ही भारत की विदेश नीति का एक सिद्धांत निःशस्त्रीकरण रहा है। भारत मानता है कि शस्त्रों की दौड़ से मानवता के विनाश की तैयारियां हो रही है। श्री राजीव गांधी ने भी, पं. नेहरू द्वारा निर्धारित इसी सिद्धांत का पालन किया। 
अगस्त 1976 मे मैक्सिको मे छः राष्ट्रों के शिखर सम्मेलन मे राजीव गांधी ने कहा," आणविक हथियार विश्व मे विनाश का संकेत है जबकि हमारा आंदोलन मानवता की रक्षा का पोषक है।" 
3. सहअस्तित्व अथवा पंचशील 
विभिन्न देशों के अस्तित्व के प्रति सहनशीलता, जिसे पंचशील का नाम भी दिया जाता है,भारतीय विदेश नीति की अन्य मौलिक विशेषता है। भारत के लिए सह-अस्तित्व कोई नवीन सिद्धांत नही है। भारत ने तो सदैव ही सहनशीलता के रास्ते को अपनाया है तथा यही सहअस्तित्व का प्रमुख आधार भी है।
4. अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव, सहयोग एवं मित्रता 
भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख सिद्धांत विश्व के विविध देशों के साथ सद्भाव, सहयोग एवं मित्रता के संबंध स्थापित करना है। भारत ने आजादी की साँस लेते ही विश्व के सभी देशों के लिए मित्रता का हाथ बढ़ाया है।
5. साधनों की शुद्धता पर आधारित 
भारत की विदेश नीति गांधीवादी के प्रमुखता से प्रभावित है जो साधनो की शुद्धता पर बल देती है। भारत की विदेश नीति विवादों का शान्तपूर्ण समाधान ढूंढने का प्रयास करती है। भारत शांतिपूर्ण तथा न्यायपूर्ण साधनों से विश्व शांति के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है।
6. रंगभेद का विरोध
भारत ने हमेशा रंगभेद की नीति का विरोध किया है। रंगभेदवाद की नीति के चलते ही भारत ने सन् 1954 मे दणिक्ष अफ्रीका से अपने कूटनीतिक संबंध तोड़ लिये थे परन्तु अब जबकि दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद की नीति खत्म हो चुकी है, भारत ने दुबारा उससे कूटनीतिक संबंध स्थापित कर लिए है। नामीबिया की स्वतंत्रता का भारत ने हमेशा समर्थन किया।
7. विश्व शांति मे विश्वास 
भारत युद्ध विरोधी है। भारत चाहता है कि अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान शांतिपूर्ण उपायों से होना चाहिए। इसलिए भारत का सतत् प्रयास रहता है कि वह शांति प्रयासों का समर्थन करे और युद्ध की कार्यवाही का विरोध करे। भारत के सभी प्रधानमंत्रियों ने बार-बार विश्व शांति मे विश्वास व्यक्त किया है और शांति स्थापना के लिए काम किया है।
8. नस्लवाद का विरोध 
भारत रंग भेद और जातिभेद के साथ-साथ नस्लभेद को भी साम्राज्यवाद मानता है तथा इसका गंभीर रूप से विरोध करता है। अफ्रीका के राज्यों मे चले नस्लवाद का भारत ने तीव्र विरोध किया और इसीलिए दक्षिण अफ्रीका से राजनयिक संबंध भी तोड़े। आज भी दक्षिण अफ्रीका मे अश्वेत लोगो पर किए जाने वाले अत्याचारों की भारत कठोर शब्दों मे निन्दा करता है। 
9. आन्तरि मामलों मे विदेशी हस्तक्षेप का विरोध 
भारतीय विदेश नीति का एक विशेषता यह है कि वह विविध देशों के आंतरिक मामलों मे विदेशी हस्तक्षेप का प्रबल विरोधी है।
10. राष्ट्रकुल की सदस्यता 
ब्रिटेन ने उन सभी राज्यों का, जो किसी समय ब्रिटेन के अधीन थे, एक कुल बनाया था। इसका नाम राष्ट्रमंडल या राष्ट्रकुल रखा गया। प्रश्न यह था कि क्या भारत को इस राष्ट्रकुल का सदस्य बनना चाहिए। पं. नेहरू ने यह निर्णय लिया कि भारत राष्ट्रकुल का सदस्य बने। तब से भारत निरंतर राष्ट्रकुल का सदस्य है और वह राष्ट्रकुल के भीतर भी नस्लवाद व साम्राज्यवाद का विरोध करता है।
11. उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का विरोध
भारत की विदेश नीति की एक अन्य विशेषता है-- उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का विरोध। भारत ने साम्राज्यवाद के अत्याचारों को भोगा था। अतः वह उपनिवेश होने की पीड़ा को समझता है। भारत का यह विश्वास है कि पराधीन देशो को स्वतंत्रता से वंचित रखना मानवाधिकारों का उल्लंघन है जिससे अंन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष उत्पन्न होते है। भारत ने स्वतन्त्रता के बाद सभी उपनिवेशों की आजादी का अभियान चलाया। एशिया और अफ्रीका की स्वतंत्रता के लिए भारत ने बहुत प्रयत्न किये। भारत की इस रचनात्मक विदेश नीति का परिणाम यह हुआ कि एशिया और अफ्रीका के बहुत से राष्ट्र स्वतंत्र हो गए।
12. सभी से मित्रता 
भारत सभी राष्ट्रो से मित्रता करने मे विश्वास रखता है न कि दुश्मनी। भारत की विदेश नीति का यह एक उल्लेखनीय विशेषता है कि भारत सभी राज्यों से मित्रता रखना चाहता है। चाहे उस राज्य की शासन प्रणाली कैसी भी हो? चाहे उसकी शासन व्यवस्था किसी भी प्रकार की हो? भारत की यह नीति है कि वह उन बातों की चिंता किए बिना सभी राज्यों से मित्रता चाहता है। इसी नीति का पालन करते हुए, भारत ने चीन व पाकिस्तान जैसे राष्ट्रों से भी मित्रता चाही है, यद्यपि इन राज्यों ने भारत पर आक्रमण किए है।
13. संयुक्त राष्ट्र संघ मे आस्था 
भारत की विदेश नीति का एक सिद्धांत यह भी है कि भारत संयुक्त राष्ट्र संघ मे आस्था रखता है।
यह भी पढ़ें; 

6 टिप्‍पणियां:
Write comment

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।