2/20/2021

पूंजी संरचना का अर्थ, परिभाषा, प्रभावित करने वाले तत्व

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पूंजी सरंचना का अर्थ एवं परिभाषा (punji sanrachna ka arth paribhasha)

पूंजी संरचना से अर्थ पूंजी के स्‍वरूप या प्रकार को निश्चित करने से है। 

वैस्‍टन एंव ब्राइम के शब्‍दों,''पूंजी संरचना किसी फर्म की स्‍थायी वित्तीय व्‍यवस्‍था होती है जो दीर्घकालीन ऋणों, पूर्वाधिकार अंशों तथा शुद्ध मूल्‍यों से प्रदर्शित हेाती है।'' 

आर.एच.वैरूल के अनुसार,'' पूँजी संरचना का उपयोग प्राय: किसी व्‍यावसायिक संस्‍था में विनियोजित कोषों के दीर्घकालीन स्‍त्रातों को  दर्शाने के लिये किया जाता है। '' 

ऊपर दी गयी परिभाषा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पूँजी ढांचे में इस बारे में निर्णय लिया जाता है कि कुल आवश्‍यक पूंजी का कितना भाग अंशो से एकत्रित किया जाये और कितना ऋणपत्रों से। अंशो में भी कितना भाग अधिमान अंशपूँजी का रखा जाये तथा कितना भाग समता तथा जोखिम पूँजी का। 

पूंजी संरचना को प्रभावित करने वाले तत्‍व 

पूंजी संरचना को प्रभावित करने वाले तत्व इस प्रकार है--

आन्‍तरिक तत्‍व 

1. व्‍यवसाय का आकार

पूँजी संरचना का निर्धारण करते समय व्‍यवसाय के आकार का भी ध्‍यान रखना पड़ता है। छोटे आकार की व्‍यावसायिक संस्‍थाओ की धन एकत्रित करने की क्षमता कम होती है। साख कम होने से इन्‍हें ऋण नही मिल पाता। इनकी कुल पूँजी में अंशपूँजी का भाग अधिक होता है । बडें आकार को संस्‍थाओ के ऋणपत्र भी बिक जाते है और उन्‍हें ऋण भी मिल जाता है। 

2. व्‍यवसाय का स्‍वभाव

पूँजी संरचना के निर्धारण में व्‍यवसाय के स्‍वभाव का भी प्रभाव पड़ता है । कुछ व्‍यवसायों का स्‍वभाव इस प्रकार का होता है कि उनमें चल सम्‍पत्तियों की तुलना में स्‍थायी सम्‍पित्तयों की आवश्‍यकता अधिक होती है इन व्‍यवसायो के पूँजी ढांचे में समता अंशपूंजी के साथ-साथ ऋण पूँजी को भी उचित स्‍थान दिया जा सकता है । 

3. आय की नियमितता एंव निश्चितता 

आय की निश्चितता एंव नियमितता भी पूँजी ढ़ांचे को प्रभावित करती है। जिस संस्‍था की आय में उक्‍त गुण होते है, उनके पूँजी ढांचे में पूर्वाधिकार अंशो एंव ऋणपत्रो की प्रधानता रहती है 

4. व्‍यावसायिक सम्‍पित्तयों का ढांचा 

जिन संस्‍थाओ के सम्‍पत्ति ढांचे में स्‍थायी सम्‍पत्तियों के ढांचे में स्‍थायी सम्‍पत्तियेा की मात्रा अधिक होती है । उनकी पूँजी सरंचना में दीर्घकालीन ऋणों अथवा ऋणपत्रो का भाग अधिक होता है, जबकि अंशपूँजी का कम। इसके विपरीत जिन संस्‍थाओ के सम्‍पत्ति ढांचे मे चालू सम्पत्तियां अधिक होती है उनके पूँजी ढांचे में दीर्घकालीन ऋण कम होते है। 

5. व्‍यापार पर नियन्‍त्रण की इच्‍छा

संरचना व्‍यापार पर नियन्‍त्रण की इच्‍छा से भी प्रभावित होती है  अगर कम्‍पनी के प्रवर्तक कम्‍पनी का नियन्‍त्रण कुछ ही व्‍यक्तियों के हाथो मे रखना चाहते है तो समता अंशो का निर्गमन किया जाता है जिसका एक बड़ा भाग कुछ लोगो के पास केन्द्रित रखा जाता है तथा शेष भाग छोटे-छोटे अंशधरियो कें बॉंट दिया जाता है।  

बाह्म तत्‍व 

पूंजी संरचना को प्रभावित करने वाले बाहरी तत्‍व इस प्रकार है--

1. पूंजी बाजार 

पूंजी बाजार के वातावरण का भी प्रभाव पूंजी संरचना पर पड़ता है। तेजी काल में अंश तथा मन्‍दी काल में ऋण-पत्र अधिक लोकप्रिय होते हे । 

2.विनियोक्‍ताओ की मनोवैज्ञानिक दशा

विनियोक्‍ताओ की मनोवैज्ञानिक दशा तथा जोखिम के प्रति उनके विश्‍वास का भी पूँजी ढांचे पर प्रभाव पड़ता है। कुछ विनियोक्‍ता साहसी होते है। इन्‍ही स्थितियों को देखते हुए विभिन्‍न प्रकार की प्रतिभूतियो का निर्गमन किया जाना चाहिए।

3. सरकारी नियन्‍त्रण 

सरकारी नियन्‍त्रणो, नियमन एंव कानूनो का भी पूँजी ढांचे पर प्रभाव पड़ता हैं। विभिन्‍न प्रकार की प्रतिभूतियों के निर्गमन व उन पर प्राप्‍त आय के सम्‍बन्‍ध में अनेक कानून देश के अन्‍दर बनाये गये है जिनकी पूँजी ढांचे के निर्धारण के महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है । 

4. विनियोजको की रूचि 

पूंजी विनियोजक की रूचि का भी प्रभाव पूंजी संरचना पर पड़ता है। 

5. न्‍यूनतम जोखिम 

एक अनुकुलतम पूँजी ढांचा इस प्रकार होना चाहिए कि उस पर अनेक प्रकार के जोखिमों का कम से कम प्रभाव पड सके। इस प्रकार की जोखिमो  के कुछ प्रमुख उदाहरण है व्‍यावसायिक प्रतिस्‍पर्द्धा, क्रयशक्ति में हृास, ब्याज दर में वृद्धि, प्राकृतिक प्रकोप आदि। इसके लिए पूंजी ढांचे में उच्‍चे श्रेणी की प्रतिभूतियों को शामिल किया जाता है 

6. सरलता 

पूँजी संरचना अधिक जटिल नही होना चाहिए। सरलता के लिए शुरू मे केवल समता अंश एंव पूर्वाधिकार अंश ही जारी किये जाना चाहिए। तथा ऋणपत्र बाद मे निर्गमित करना चाहिए पूंजी सरचना को सरल रखने के साथ-साथ यह भी ध्‍यान रखा जाना चाहिए कि उसमे आवश्‍यकता से अधिक सस्‍तापन नही आना चाहिए।

शायद यह जानकारी आपके काफी उपयोगी सिद्ध होंगी 

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