2/08/2021

कर का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, उद्देश्य

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कर का अर्थ (kar kise kahte hai)

kar arth paribhasha visheshta uddeshya;किसी राष्ट्र द्वारा उस राष्ट्र के व्यक्तियों  या विविध संस्थाओं से जो अधिभार (धन) लिया जाता है उसी को टैक्स या कर कहते है। कर प्रायः धन के रूप मे लिया जाता है, लेकिन यह धन के तुल्य श्रम के रूप मे भी लिया जा सकता है। वर्तमान में कर सार्वजनिक (सरकार की) आय का प्रमुख स्‍त्रोत है। 

कर की परिभाषा (kar ki paribhasha)

विभिन्‍न अर्थशास्त्रियों ने  कर की अलग-अलग परिभाषाए प्रस्‍तुत की है किन्‍तु इनमें  प्रो. सेलिगमेन  द्वारा दी हुई परिभाषा सबसे अधिक उपयुक्‍त  है। 

प्रो. सेलिगमेन के शब्‍दों में,'' कर एक व्‍यक्‍त‍ि द्वारा दिए जाने वाला वह अनिवार्य अंश दान है जिससे सरकार के उन व्‍ययों की पूर्ती की जा सके जो सबके हित के लिए किए जाते है तथा जिनका करो का एक  विशेष लाभ  प्रदान करने से कोई संबंध नहीं होता।''

प्रो. डाल्‍टन के अनुसार,'' कर किसी सरकार द्वारा लगाया जाने वाला वह अंशदान है जिसका कर दाता को बदले में प्राप्‍त होने वाली सेवाओं की मात्राओं से कोई संबंध नहीं होता।''

प्रो. टेलर के शब्‍दों में,'' कर सरकार को किया जाने वाला ऐसा अनिवार्य भुगतान है जिसे कर दाता किसी प्रत्‍यक्ष लाभ की आशा नहीं रखता 

प्लेहन के शब्‍दों मे,'' कर सामान्‍यत: धन के रूप में दिया गया  वह अनिवार्य अंशदान है जो राज्‍य के निवासियों को सामान्‍य लाभ पहुचाने के लिए किए गए व्‍यय को पूरा करने के लिए व्‍यक्‍तियों से लिया जाता है।''

प्रो. एडम्‍स के अनुसार,'' कर नागरिको द्वारा राज्‍य की सहायता के लिए दिया जाने वाला अंशदान है।''

कर की विशेषताएं (kar ki visheshta)

कर की विशेषताएं इस प्रकार है-

1. अनिवार्य अंशदान

कर सरकार को दियें जाने वाला अनिवार्य अंशदान है कर का भुगतान न करने पर व्‍यक्ति को  सजा दी जा सकती है। कोई व्‍यक्ति इस आधार पर कि असे वोट देने का अधिकार नही है उसे राज्‍य से कोई लाभ प्राप्‍त नही है सरकार को कर देने से मना नही किया जा सकता है एक व्‍यक्ति कर से तब तक बच सकता है जब तक वह उस वस्‍तु का उपयोग न करने का उद्धेश्‍य से उसे क्रय न करे जिसपर कर लगाया जाता है।

2. करों से प्राप्‍त आय सबके हित में व्‍यय की जाती है

राज्‍य का उद्धेश्‍य सभी नागरिको का कल्‍याण या हित करना है। देश  के प्रत्‍येक नागरिक केई तरह से राज्‍य पर निर्भर रहता है और बिना राज्‍य का की सहायता के उसका आस्तित्‍व खतरे में पड़ जाता है। आज देश के विकास और कुशल सेवाओं के उद्धेश्‍य  से बहुत  सें  कार्य राज्‍य को  सौंप दिये जाते है जिनकी  पूर्ति के लिए राज्‍य को बहुत खर्च करना पड़ता है।

3. कर किसी विशेष सेवा के लिए किया जाने वाला भुगतान नही है

कर के भुगतान का राज्‍य अथवा उससे प्राप्‍त लाभ से कोई संबंध नही होता। यह मुम‍कीन नही है कि एक व्‍यक्ति भारी मात्रा में कर का भुगतान करे पर उसे राज्‍य से कोई लाभ प्राप्‍त न हों। प्रों . टॉजिग ने कर  को अन्‍य शुल्‍कों से भिन्‍न  बताते हुए कहा कि करों में भुगतान करने वाला एवं राज्‍य के बीच देना और लेना अथवा प्रत्‍यक्ष प्रतिफल' का संबंध नही होता।

4. सरकार के द्वारा निर्धारण

करो का निर्धारण व्‍यक्तियों  की इच्‍छानुसार नही किया  जाता, वरन् सरकार स्‍वयं विशिष्‍ट नियमों एवं कानूनों  के अन्‍तर्गत करों का निर्धारण करती है।

5. व्‍यक्तियों का भुगतान

कर वस्‍तुओं, सम्‍पत्ति व आय पर  लगाया जा सकता है पर इसका भुगतान व्‍यक्ति की आय से ही किया जाता है। 

कर के उद्धेश्‍य (kar ke uddeshya)

कर के उद्धेश्‍य इस प्रकार है--

1. आय प्राप्‍त करना 

कर लगानें के और भी उद्धेश्‍य है पर आय प्राप्‍त करना इसका मुख्‍य उद्धेश्‍य है। सरकार के बढ़ते हुए खर्च की पूर्ति के लिए कर लगाए जाते है पुराने समय में तो कर लगाने का एकमात्र उद्धेश्‍य आय प्राप्‍त करना था।

2. आय एवं सम्‍पत्ति की आसमानता को कम करना

आजकल सरकारों का मुख्‍य उद्धेश्‍य लोककल्‍याणकारी राज्‍यों की स्‍थापना करना है। जिसमें सामाजिक न्‍याय और आय के समान वितरण को प्रमुखता दी जाती है प्रगतिशील करो के माध्‍यम धनी व ऊँची आय वालों पर कर लगाये जाते है तथा गरीबों को इस से दूर रखा गया है। इस प्रकार से आय के वितरण को समान रखने का प्रयत्‍न किया जाता है।

3. नियमन एवं नियन्‍त्रण

कर का उद्धेश्‍य आय प्राप्‍त करना ही नही है पर गैर आगम उद्धेश्‍य से भी कर लगाये जातें है जिन्‍हें नियामक कर कहते है। हानिकारक वस्‍तुओं के उपयोग को नियंत्रित करना, आयातों पर प्रतिबंध लगाना।

4. राष्‍ट्रीय आय को एक उपयुक्‍त स्‍तर पर बनाये रखना

कुछ अर्थशास्त्रियों का यह मत है कि करों का उद्धेश्‍य यह होना चाहिए कि राष्‍ट्रीय आय एक निश्चित स्‍तर पर बनी रहे। इस उद्धेश्‍य से आशय यह है करो से किसी आर्थिक क्रिया को इस प्रकार हतोत्‍साहित न किया जाए इसका का उत्‍पादन पर प्रतिकुल प्रभाव पड़े क्‍योंकि इससे देश की राष्‍ट्रीय आय कम हो जायेगी। 

5. पूँजी निर्माण को प्रोत्‍साहन 

आजकल विकासशील देशों की सबसे बड़ी समस्‍या पूँजी के निर्माण की है अत: कर भी इसी उद्धेश्‍य से लगाये जाते है  कि‍ बचत को उत्‍पादन कार्यो में लगाये जा सके। कर लगाने के पिछे मुल उद्धेश्‍य यह है कि विकासशील देशों में बचत अपने आप ही विनियोग की और प्रवाहित नही होती।

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