11/21/2023

प्रशिक्षण का अर्थ, उद्देश्य, प्रकार

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प्रश्न; प्रशिक्षण क्या हैं? प्रशिक्षण के उद्देश्य बताइए। 

अथवा", प्रशिक्षण से आप क्या समझते हैं? प्रशिक्षण के उद्देश्य लिखिए।

अथवा", प्रशिक्षण का अर्थ बताते हुए, प्रशिक्षण के प्रकार बताइए।

अथवा", प्रशिक्षण तथा शिक्षण में अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर--

प्रशिक्षण का अर्थ (prashikshan kya hai)

prashikshan arth uddeshya prakar;प्रशिक्षण का अर्थ है कि काम के विषय मे व्यवसायिक, व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करना। वैसे यह शब्द शिक्षण से ही बना है परन्तु शिक्षण मे सामान्य ज्ञान मिलता है। प्रशिक्षण विशिष्ट ज्ञान देकर विशेषज्ञ बनाता है।

डाॅ. एम. पी. शर्मा के अनुसार," प्रशिक्षण वह प्रयत्न होता है जिसके द्वारा कर्ता अपनी क्षमता तथा अपनी प्रतिभा को बढ़ता है। इसके साथ ही वह एक विशेष दिशा मे अपनी प्रवृत्ति तथा उच्च भावना को भी उत्पन्न करता है।" 

लोक प्रशासन एक कला है और एक प्रशासक को इस कला का कुशल कलाकर होना जरूरी है। व्यक्ति एक सुयोग्य प्रशासक प्रारंभ से ही नही होता। प्रशासन की ऐसी बहुत सी विधाएं है जो उसे सीखना पड़ती है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये प्रशासन मे अधिकारियों व कर्मचारियों को निपुण बनाया जाता है। क्योंकि इसके पूर्व उसे सामान्य शिक्षा प्राप्त होती है। परन्तु उसे कार्य विशेष को करने का ज्ञान नही होता। उदाहरण के लिए एक क्लर्क हो या शिक्षक वह निश्चित सामान्य शिक्षा प्राप्त किये हुए होता है परन्तु उसे आफिस मे काम कैसे किया जाए, फाइलों मे कैसे कागजों को रखा जाए, उन पर नोटशीट कैसे लिखी जाए यह ज्ञान तो प्रशिक्षण के बाद ही प्राप्त होता है। इसी प्रकार अध्यापन कला का भी प्रशिक्षण होता है। 

प्रशिक्षण के उद्देश्य (prashikshan ke uddeshya)

प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य प्रशासन मे कार्यकुशलता लाना है। इसके माध्यम से कर्मचारियों मे उच्च स्तर के कार्यों का उत्तरदायित्व वहन करने की क्षमता विकसित की जा सकती है। प्रशिक्षण के माध्यम से अधिकारियों/कर्मचारियों मे सामूहिक रूप से कार्य करने की भावना भी विकसित की जाती है। प्रशिक्षण के द्वारा कार्यकर्ता मे स्वयं को अपनी संस्था का अंग बनने की क्षमता आती है। कर्मचारी को यथार्थता का पाठ पढ़ाने, आत्मनिर्भर तथा स्वतंत्र बनाने और उनमे निर्णय करने की क्षमता उत्पन्न करने की दृष्टि से प्रशिक्षण बड़ा महत्वपूर्ण होता है। प्रशिक्षण के माध्यम से ही कर्मचारी स्वयं को नई परिस्थिति के अनुकूल बनाता है।

सिविल सेवकों के प्रशिक्षण पर इंग्लैंड मे नियुक्त (1944) असेटन कमेटी ने प्रशिक्षण के निम्न उद्देश्य बताए है--

1. कर्मचारियों मे विश्वसनीयता व चतुरता उत्पन्न करना।

2. कर्मचारियों को इस योग्य बनाना कि वे परिवर्तनशील संसार से समायोजन कर सकें। 

3. कर्मचारियों को यंत्रीकरण से बचाने के लिए उनमें सामुदायिक चेतना उत्पन्न करना।

4. अन्य अधिकाधिक कर्तव्यों को पूरा करने की क्षमता उत्पन्न करना।

5. कर्मचारियों के दृष्टिकोण को व्यापक बनाना। 

जब कोई अधिकारी या कर्मचारी पहली बार अपने कार्यालय जाता है, तब वह वहाँ यह अनुभव करता है कि उसने अभी तक जो शिक्षा विद्यालयों एवं महाविद्यालयों मे प्राप्त की है, वह यहां प्रत्यक्षतः उपयोगी नही है और उसका कार्य एक विशिष्ट प्रकृति का है। इस सबको वह प्रशिक्षण के माध्यम से ही समझता है।

निग्रो का कथन है," प्रशिक्षण का कार्य कर्मचारियों को न केवल यांत्रिक दृष्टि से कुशल बनाना है वरन् उसके दृष्टिकोण को इतना व्यापक बनाना है जितना कि एक लोक-सेवक के लिए आवश्यक होता है। 

प्रशिक्षण जहां प्रशासकीय कार्यों मे एकरूपता लाता है, वहीं अधिकारियों मे सामूहिक रूप से कार्य करने व समस्याओं का समाधान संयुक्त रूप से करने का मार्ग प्रशस्त करता है।

प्रशिक्षण के प्रकार या स्वरूप (prashikshan ke prakar)

प्रशिक्षण के निम्न प्रकार है--

1. अल्पकालीन प्रशिक्षण 

कुछ सप्ताह से लेकर एकाधिक महीने का प्रशिक्षण है।

2. दीर्घकालीन प्रशिक्षण 

यह लम्बी अवधि का प्रशिक्षण है।

3. औपचारिक प्रशिक्षण 

यह ट्रेनिंग (प्रशिक्षण) स्कूलों मे दिया जाता है।

4. अनौपचारिक प्रशिक्षण 

यह कर्मचारी काम करते हुए अपने श

वरिष्ठ सहयोगियों से धीरे-धीरे अपने आप सीखकर प्राप्त करता है।

5. सेवा पूर्व प्रशिक्षण 

यह सेवा मे प्रविष्ट होने के पूर्व दिया जाता है।

6. मध्यकालीन प्रशिक्षण  

यह सेवा के मध्य किसी भी समय दिया जा सकता है। इसमें रिफ्रेशर कोर्स इत्यादि भी आते है।

7. विभागीय प्रशिक्षण  

इसकी व्यवस्था सम्बंधित विभाग द्वारा की जाती है।

8.  केन्द्रीय प्रशिक्षण 

इसको व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के रूप मे विश्वविद्यालय अथवा अन्य संस्थाओं द्वारा चलाया जाता है।

प्रशिक्षण प्रणालियाँ

प्रशिक्षण प्रणालियां निम्न प्रकार से है--

1. अनुभव पद्धति 

इसमे कर्मचारी को सीनियर कर्मचारी चुनाव के आधार पर प्रशिक्षण देते है।

2. ट्रेनिंग स्कूलों की स्थापना 

इसके लिए सरकार ट्रेनिंग स्थापित करती है।

3. साहित्य द्वारा 

विभिन्न विभाग साहित्य प्रकाशित कर ट्रेनिंग देते है।

4.  सम्मेलन, वर्कशाप, री-ओरिएन्टेशन कोर्स 

कभी-कभी विचारों द्वारा ऐसे क्लासेज भी चलाए जाते है।

5. जेकसिल 

इस पद्धति का जन्म द्वितीय विश्वयुद्ध मे हुआ। इसमे निम्न पद्धतियां पाई जाते है--

(अ) जाॅब इन्स्ट्रक्टर ट्रेनिंग 

(ब) जाॅब मैथड ट्रेनिंग 

(स) जाॅब रिलेशन्स ट्रेनिंग।

प्रशिक्षण तथा शिक्षण 

प्रशिक्षण तथा शिक्षण एक दूसरे के निकट संबंधी हैं। पर ये समरूप नहीं है। निम्न बिन्दुओं के अधार पर इनमें अंतर किया जा सकता हैं-- 

1.  स्तर- प्रशिक्षण किसी विशेष कार्य हेतु दिया जाता है वहीं शिक्षण सामान्य ज्ञान में वृद्धि करता हैं। 

2. उद्देश्य- प्रशिक्षण किसी सीमित उद्देश्य हेतु कौशल तथा योग्यता का विकास करता है वहीं शिक्षा पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करती हैं। 

3. क्षेत्र- शिक्षा का क्षेत्र व्यापक हैं। प्रशिक्षण उसका एक हिस्सा हैं। 

4. ज्ञान का आधार- प्रशिक्षण व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करता है जबकि शिक्षण सैद्धान्तिक ज्ञान पर आधारित होता है। इससे विश्लेषण की योग्यता भी आती हैं। 

5. उन्मुखीकरण- प्रशिक्षण कार्य उन्मुख है जबकि शिक्षा व्यक्ति उन्मुख हैं। 

6. स्थान- प्रशिक्षण कार्य स्थल पर दिया जाता है जबकि शिक्षण स्कूल अथवा काॅलेज में।

शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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