1/24/2021

प्रमाणन क्या है, परिभाषा, उद्देश्य

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प्रमाणन का अर्थ (pramanan kya hai)

pramanan arth paribhasha uddeshya mahatva;अंकेक्षक के द्वारा व्‍यावसायिक खातों में की गई प्रविष्टियों तथा लेखों का परीक्षण  किया जाता है। ये प्रविष्टियां  जिस आधार पर की जाती है उनकी जांच करना प्रमाणन कहलाता है। इसका अर्थ है व्‍यावसायिक खातों की प्रविष्टियों  के प्रमाण को प्रमाणित करना। संस्‍था में नेत्‍य-प्रति में जो भी व्‍यवहार होते है, उदाहरण के लिए क्रय-विक्रय और व्‍ययों का भुगतान, इनके होने का कोई न कोई प्रमाण में व्‍यवसाय में अवश्‍य होना चाहिए, जैसे नकदी रसीद, बीजक आदि। इन्‍ही के आधार पर खातों की प्रविष्टि की जानी चाहिए। प्रविष्टियों के इन आधारों पर प्रमाणक तथा इन प्रमाणकों की सत्‍यता की जांच करने को प्रमाणन कहा जाता है।

पढ़ना न भूलें; प्रमाणक क्या है? परिभाषा

हिसाब-किताब की पुस्‍तकों की शुद्धता, सत्‍यता तथा पुर्णता को प्रमाणित करना एक अंकेक्षक का प्रथम कर्तव्‍य है। अंकेक्षण रिपोर्ट देते समय उसे यह देखना चाहिए कि प्रारम्भिक पुस्‍तकों में प्रविष्टियां ठीक है। वे उचित प्रमाणकों पर  आधारित है, अधिकृत है और इनके पिछे कोई छल-कपट नही है। अत: बिना प्रमाणक के लेखा पुस्‍तकों में कोई प्रविष्टि नही होनी चाहिए और बिना प्रविष्टि का कोई प्रमाणक नही होना चाहिए। 

प्रमाणन की परिभाषा (pramanan ki paribhasha)

आर.बी.बोस,'' लेखा पुस्‍तकों में किये गये लेखों की शुद्धता तथा अधिकारिता की जांच ही प्रमाणन कहलाता है।''

रोनेल्‍ड ए. आइरिश के अनुसार,'' प्रमाणन एक तात्रिंक शब्‍द है, जिसका अर्थ किसी व्‍यवहार के बारे में प्रमाणकों की मदद से जांच करना होता है।''

बॉटलीबाय के अनुसार,'' प्रारम्भिक लेखों की पुस्‍तकों में किये जाने वाले लेखों की सत्‍यता की जांच करना ही प्रमाणन है।''

प्रमाणन के उद्देश्य (pramanan ke uddeshya)

प्रमाणन  के उद्धेश्‍य इस प्रकार है--

1. व्‍यापार से संबंधि‍त लेन-देन के लेखों का ज्ञान  

प्रमाणन के आधार पर अंकेक्षण कों यह यकीन हो जाता है कि वह सभी लेन-देन जो व्‍यापार से संबंध रखते है, पुस्‍तकों में लिख दिये गये है।

2. व्‍यापार से संबंध न रखने वाले लेखों का ज्ञान 

प्रमाणन का उद्धेश्‍य यह भी है  कि अंकेक्षण को पता चल जावें  कि पुस्‍तको में कोई लेन-देन नही लिखा गया है जो कि व्‍यापार से संबंध न रखता हो। 

3. लेखों का आधिकृत होना 

प्रमाणन का एक  उद्धेश्‍य यह जानना भी है कि समस्‍त  लेखे पुर्ण रूप से अधिकृत है, क्‍योकि इस के लिए  उचित अधिकृत प्रमाण-पत्र मौजूद है। जब तक प्रमाणक अधिकृत नही होगा, लेख भी अधिकृत नही हो सकते है।

4. लेखों की  शुद्धता एवं सत्‍यता प्रमाणित करना 

प्रमाणन का मुख्‍य उद्धेश्‍य पुस्‍तकों के लेखों की शुद्धता एवं सत्‍यता प्रमाणित करना है। प्रत्‍येक लेखे से संबंधित उचित प्रमाणको का होना लेखे की सत्‍यता का प्रमाण है।

प्रमाणन का महत्‍व (pramanan ka mahatva)

प्रमाणन का महत्‍व इस प्रकार है--                            

1. प्रमाणन अंकेक्षण का प्रारम्भिक कार्य है 

अंकेक्षण का कार्य प्रमाणकों के आधार पर लेखा पुस्‍तकों में की गई  प्रविधियों से प्रारम्‍भ  होता है प्रमाण का  महत्‍व होना स्‍वाभाविक है। प्रमाणक प्रमाणन के अभाव में अंकेक्षण की कल्‍पना भी नही की जा सकती है। 

2. प्रमाणन अंकेक्षण का सार है 

यह कथन प्रसिद्ध विद्वान आर.बी.बोस का है, इसके अनुसार, प्रमाणन के माध्‍यम से ही अंकेक्षक लेखों को पुर्णत: प्रमाणित कर सकता है तथा इसी आधार पर वह अंकेक्षण के कार्य को विश्‍वसनीय बना सकता है।

3. प्रमाणन अंकेक्षण का आधारभूत कार्य है

यदि मकान की नींव मजबूत है, तो निश्चित ही वह मकान ज्‍यादा समय त‍क उस नींव पर खड़ा  रहेगा और यदि नींव कमजोर है तो वह शीघ्र ही गिर जायेगा। ठीक उसी तरह यदि प्रमाणन का कार्य सही ढ़ंग से किया जाये तो अंकेक्षण का कार्य भी अच्‍छा होगा साथ में छल-कपट भी गवन आदि नही होगें और व्‍यापार सही ढ़ंग से चलता रहेगा वरना उसका का पतन निश्चित ही हो जायेगा।

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शायद यह जानकारी आपके लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी


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