1/24/2021

पदोन्नति का सिद्धांत

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पदोन्नति का सिद्धांत (padonnati ka siddhant)

पदोन्नति के संबंध मे मुख्यतः दो सिद्धांत है--

1. वरिष्ठता का सिद्धांत 

पदोन्नति के वरिष्ठता या ज्येष्ठता सिद्धांत मे किसी विभाग या प्रशासन मे कार्यरत् कर्मचारियों और अधिकारियों को उच्च पद पर पदोन्नति देते समय उनकी वरिष्ठता का ध्यान रखा जाता है। अर्थात् जिस कर्मचारी की सेवा अपने वर्ग के कर्मचारियों मे सबसे अधिक है, उसे पदोन्नति मिलती है। इस सिद्धांत के अनुसार सेवा की अवधि पदोन्नति का आधार मानी जाती है।

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वरिष्ठता के सिद्धांत के गुण

1.  वरिष्ठता का सिद्धांत वस्तुनिष्ठ है। यह तटस्थ एवं निष्पक्ष सिद्धांत है तथा इसकी उपयोगिता मे संदेह हो ही नही सकता। मेयर्स के अनुसार " इस व्यवस्था मे राजनैतिक दबाव काम नही करते। 

2. इस व्यवस्था मे सुयोग्य एवं अनुभवी व्यक्ति प्राप्त हो जाते है। चूँकि इस सिद्धांत मे अनुभव एवं वरिष्ठता को पदोन्नति के लिए विशेष योग्यता माना जाता है। अतः कर्मचारी के लिए अपने विभाग के कार्य को समझने मे कोई कठिनाई नही होती।

3. इस सिद्धांत के अनुसार चूंकि पदोन्नतियां एक न्यायोचित सिद्धांत के आधार पर की जाती है अतः कर्मचारियों का मनोबल ऊंचा होता है।

4. यह सिद्धांत वस्तुनिष्ठ है। ज्येष्ठता एक वास्तविकता होती है जिससे इंकार नही किया जा सकता।

5. इस सिद्धांत के अनुसार क्रमिक रूप मे प्रत्येक व्यक्ति को पदोन्नति का अवसर प्राप्त होता है। अतः यह पदोन्नति का एक उचित एवं न्यायपूर्ण आधार है।

वरिष्ठता के सिद्धांत के दोष 

वरिष्ठता के सिद्धांत के निम्न दोष है--

1. यदि पदोन्नति का आधार केवल ज्येष्ठता ही होता है तो कर्मचारी आत्मोन्नति के लिए कोई प्रयत्न नही करते।

2. ज्येष्ठता के सिद्धांत को अपनाने से अनिवार्य रूप से सर्वाधिक योग्य व्यक्तियों का ही चयन हो जाता हो, ऐसा नही है।

3. मध्यम श्रेणी के उदासीन तथा कम बुद्धिमान व्यक्ति ही, जो कि युवा, योग्य तथा बुद्धिमान व्यक्तियों से प्रतियोगिता नही कर सकते, ज्येष्ठता के सिद्धांत के सबसे बड़े समर्थक है।

4. इस बात की कोई गारंटी नही होती कि ज्येष्ठ कर्मचारी ही अधिक योग्य अथवा सक्षम होगा। पदोन्नतियां तो केवल योग्यता के आधार पर ही की जानी चाहिए।

5. केवल ज्येष्ठता को ही पदोन्नति का आधार मानने से कर्मचारियों मे प्रतिस्पर्धा की भावना समाप्त हो जाती है। अतः वे कार्य को अधिक उत्साह तथा बुद्धिमत्ता से नही करते।

2. योग्यता का सिद्धांत 

इस सिद्धांत का अभिप्राय यह है कि पदोन्नति की आकांक्षा रखने वाले उम्मीदवारों की योग्यता का मूल्यांकन वरिष्ठता के आधार पर नही, बल्कि योग्यता के आधार पर किया जाये। इसका उद्देश्य कार्यकुशल एवं परिश्रमी कर्मियों को पदोन्नति से पुरस्कृत करना और अन्य कर्मचारियों के लिए कार्यकुशलता के लिए प्रोत्साहित करना है। पदोन्नति के संदर्भ मे योग्यता के सिद्धांत का महत्व तथा उपयोगिता को लगभग सभी स्वीकार करते है। नियोजक के दृष्टिकोण से भी यह व्यवस्था उत्तम रहती है। प्रत्येक नियोजक यह चाहता है कि उसके कर्मचारी योग्य, कर्तव्यपरायण, सूझबूझ वाले तथा दूरदर्शी हो परन्तु यह सब तब ही संभव हो सकता है जबकि पदोन्नति के संबंध मे योग्यता सिद्धांत को अपनाया जाये। यद्यपि आजकल यह माना जाने लगा है कि पदोन्नति की योग्यता प्रणाली अन्य प्रणालियों से श्रेष्ठ है परन्तु इसमे एक बड़ी समस्या विभिन्न उम्मीदवारों की योग्यता का तुलनात्मक मूल्यांकन करने कि है। योग्यता को मापना कोई सरल कार्य नही है। आजकल कर्मचारियों की योग्यता आंकने के लिए निम्न विधियां काम मे लाई जाती है--

1. परीक्षा प्रणाली 

2. सेवा अभिलेख

3. विभागाध्यक्ष या पदोन्नति समिति का विवेक।

योग्यता के सिद्धांत के दोष

पद वृद्धि संबंधी योग्यता का सिद्धांत अत्यधिक आत्मपरक है। इसमे योग्यता का निर्धारण एक जटिल आधार पर खड़ा अनुभव होता है। प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता पृथक-पृथक होती है तथा एक व्यक्ति प्रत्येक पद तथा कार्य के लिए योग्य भी नही होता। 

कौनसी पद्धति श्रेष्ठ है? 

दोनों ही पद्धतियां के बारे मे जानने के बाद उक्त पद्धतियों मे से कौन सी श्रेष्ठ है, यह जानना भी जरूरी है। अगर सच कहे तो पदोन्नति की दृष्टि से योग्यता तथा वरिष्ठता दोनों का ही अपनी-अपनी जगह पर बारबर महत्व है। कुछ सेवाये ऐसी होती है जिनमे वरिष्ठता के आधार पर ही पदोन्नति मिलनी चाहिए। इसके अलावा कुछ सेवाओं मे योग्यता का काफी महत्व है। इसलिए उनमे योग्यता के आधार पर पदोन्नति मिलनी चाहिए। आज के समय मे प्रशासन मे दोनों पद्धतियों के बीच समायोजन होता है, कुछ पद योग्यता के आधार पर पदोन्नति के लिए आरक्षित होते है वहीं कुछ मे एक बड़ा प्रतिशत वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति के लिए छोड़ा जाता है जिससे कि प्रशासन मे कार्यरत् वरिष्ठ कर्मचारियों मे भी असंतोष न हो।

भारत मे पदोन्नति प्रणाली 

भारत मे भिन्न-भिन्न विभागों मे पदोन्नति की भिन्न-भिन्न प्रणालियों मे प्रचलित किसी विभाग मे वरिष्ठता को महत्व देते है, किसी मे योग्यता को। कुछ विभागों मे मिश्रित प्रणाली अपनाई जाती है, मतलब कुछ पद वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति देकर भरे जाते है और कुछ पद सीधी भर्ती द्वारा योग्यता के आधार पर भरे जाते है। पुलिस आदि विभागों मे कार्यक्षमता तथा कार्य का रिकार्ड मुख्य आधार है। वैसे भारत मे वरिष्ठता को अधिक महत्व प्रदान किया जाता है।

भारत मे पदोन्नति हेतु सभी विभागों मे एक समिति होती है जिसे विभागीय पदोन्नति समिति कहा जाता है। यह कर्मचारियों की चरित्रावली, उनकी योग्यता, वरिष्ठता के आधार पर मीटिंग करके उनकी पदोन्नति की सिफारिश करती है। इनकी सिफारिशों के आधार पर ही पदोन्नति होती है। भारत मे योग्यता के स्थान पर वरिष्ठता को ज्यादा महत्व दिया जाता है।

निष्कर्ष 

पदोन्नति का लोक प्रशासन मे बहुत महत्व है एक कर्मचारी इसी उम्मीद मे निम्न पद पर नियुक्त स्वीकार कर सेवा मे प्रवेश लेता है कि भविष्य मे योग्यता व वरिष्ठता के क्रम मे उसे कुछ वर्षों बाद उच्च पद मिलेगा। इस हेतु योग्य व्यक्ति भी छोटे-छोटे पदों को स्वीकार कर लेते है। 

अतः सभी देशों मे प्रशासन मे एक स्वस्थ, निष्पक्ष पदोन्नति प्रणाली जरूर होनी चाहिए। इसके प्रमुख लक्षण योग्यता तथा वरिष्ठता दोनों का आदर करने वाली तथा निष्पक्ष पदोन्नति प्रणाली होना है। इसका प्रमख लक्षण यह है कि यह स्वचालित हो। यह कर्मचारियों मे असंतोष पैदा करने वाली नही होनी चाहिए।

शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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