1/30/2021

भारत मे बजट निर्माण की प्रक्रिया

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भारत मे बजट निर्माण की प्रक्रिया 

भारत मे बजट निर्माण-प्रक्रिया निम्न प्रकार है--

1. अनुमानों का विवरण 

भारत मे वित्तीय वर्ष का प्रारंभ 1 अप्रैल से होता है तथा अन्त 31 मार्च को होता है। प्रत्येक वित्तीय वर्ष के प्रारंभ मे आय-व्यय संबंधी विवरण तैयार करने का कार्य, प्रत्येक विभाग प्रारंभ कर देता है। इसके लिये विभाग, प्रत्येक प्रशासकीय विभाग के पास एक प्रपत्र निम्न प्रविष्टियों को भरने के लिए भेजता है--

(अ) विनियीग का शीर्षक और उपशीर्षक

(ब) गत वित्तीय वर्ष की वास्तविक आय

(स) वर्तमान वित्तीय वर्ष का अनुमानित व्यय

(द) वर्तमान वित्तीय वर्ष की संशोधित आय का विवरण

(ई) वर्तमान वित्तीय वर्ष की अनुमानित आय, तथा

(फ) अन्य आवश्यक विवरण।

पढ़ना न भूलें; बजट क्या है? परिभाषा, प्रकार 

उपरोक्त प्रविष्टियों की पूर्ति के बाद यह प्रपत्र महालेखा अधिकारी के पास भेज दिया जाता है। महालेखाधिकारी-कार्यालय मे इसकी प्रविष्टियों की जांच की जाती है तथा प्रत्येक मद का गहराई से परीक्षण किया जाता है।

2. अनुमानों का विभागीय परीक्षण 

बजट के लिये तैयार सभी अनुमानों की प्रशासकीय आधार पर परीक्षा की जाती है। प्रशासक की क्षेत्रीय अथवा स्थानीय शाखाओं द्वारा तैयार बजट संबंधी अनुमान, विभाग के केन्द्रीय कार्यालय मे भेज दिये जाते है। विभाग के मुख्यालय का नियंत्रण-अधिकारी, इन अनुमान-प्रपत्रों का पूर्ण परीक्षण तथा पुनरावलोकन करता है तथा विभाग और संभाग के अनुमानों के अनुसार उनकी समीक्षा करता है। विभाग का प्रमुख अधिकारी, उचित और आवश्यक समझने पर अनुमानित व्यय संबंधी किसी मद मे संशोधन अथवा परिवर्तन कर सकता है। इसके बाद सभी अनुमान, तत्संबंधी विभाग के सचिवालय सम्भाग को प्रेषित किये जाते है। सचिवालय कार्यायल, इन प्रपत्रों पर पुनः विचार तथा पुनरावलोकन करता है तथा नवम्बर के अंत तक ये प्रपत्र वित्त मन्त्रालय को भेज दिये जाते है।

3. वित्तीय मन्त्रालय द्वारा परीक्षण 

उक्त प्रक्रिया का अनुसरण करते हुए प्रत्येक प्रशासकीय विभाग, अपने व्यय संबंधी अनुमानों का विवरण, वित्त मन्त्रालय को भेज देता है। वित्त-मंत्रालय, सभी अनुमानों पर नये सिरे से विचार करता है। वित्त-मंत्रालय, व्यय के आधार पर विचार के साथ-साथ, सीमित आय तथा साधनों की दृष्टि से मितव्ययता के आधार पर विभागीय अनुमानों पर विचार करता है। साथ ही वह आवश्यकतानुसार, विभागीय अनुमानों मे कमी भी कर सकता है। परन्तु यह कटौती वह वित्त-मंत्रालय से संबंधित विभागों से बात करने के बाद ही करता है। कटौती के संबंध मे दोनो विभागों मे सहमति न होने पर विवादास्पद विषय, मन्त्रिमण्डल के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। इस विषय मे मंत्रिमण्डल का निर्णय अंतिम माना जाता है। वित्त-मंत्रालय, सभी विभागों के अनुमान एक साथ संकलित करके बजट बनाता है। बजट मे आय तथा व्यय संबंधी दो भाग प्रस्तावित किये जाते है। सम्पूर्ण बजट का प्रारूप, दिसंबर तक तैयार कर लिया जाता है।

4. मंत्रिमण्डल की स्वीकृति 

वित्त-मंत्रालय तथा प्रधानमंत्री, बजट का प्रारूप तैयार हो जाने के बाद, एक बैठक मे अन्य मंत्रिमण्डल के सदस्यों के साथ मिलकर बजट का अवलोकन करते है तथा वित्त और राजस्व संबंधी नीतियों को निश्चित करते है। इस प्रकार बजट, सम्पूर्ण मंत्रिमण्डल द्वारा स्वीकृत होने के बाद संसद मे प्रस्तुत किया जाता है।

5. संसदीय प्रक्रिया 

भारतीय संविधान के अनुसार सार्वजनिक धन, वैधानिक स्वीकृति के अभाव मे व्यय नही किया जा सकता है तथा नया कर भी नही लगाया जा सकता। संसद मे बजट इसी आधार पर प्रस्तुत किया जाता है। संसद मे प्रस्तुत होने तक बजट कई सोपान पार करता है। संसद मे बजट, अप्रैल के पूर्व मे प्रस्तुत कर दिया जाता है। संसद द्वारा बजट पर विचार करने वाले समय को संसद का बजट अधिवेशन कहा जाता है। फरवरी के प्रथम सप्ताह मे राष्ट्रपति बजट प्रस्तुत करने के लिए वित्त मंत्री को प्राधिकृत करता है। संसद प्रक्रिया निम्न प्रकार से होती है--

(क) सामान्य वाद-विवाद 

संसद मे बजट प्रस्तुत किये जाने वाले दिन वाद-विवाद न होकर एक सप्ताह बाद की कोई तिथि निश्चित की जाती है। निश्चित तिथि को बजट के मूल सिद्धांतों और नीतियों के संबंध मे ही सामान्य वाद-विवाद होता है। इस सोपान मे जनमत के आरोप भी प्रस्तुत किये जाते है। सामान्य वाद-विवाद का समय दो या तीन दिन निर्धारित किया जाता है। यह विवाद संसद के दोनों सदनों मे होता है।

(ख) मतदान प्रक्रिया 

सामान्य वाद-विवाद के बाद लोक सभा मे प्रत्येक विभाग के व्यय संबंधी मांगों पर विचार किया जाता है। संसद के सदस्यों को इसके लिये पर्याप्त समय दिया जाता है। वाद-विवाद समाप्त हो जाने के बाद मतदान किया जाता है। निश्चित समय तक वाद-विवाद समाप्त न होने पर भी मतदान प्रारंभ कर दिया जाता है। मतदान प्रक्रिया मे स्वीकृति मांगे " अनुदान " कही जाती है। लोक सभा किसी भी विभाग की मांगों को कम या संशोधित कर सकती है, पर उनमे वृद्धि नही कर सकती। किसी मांग मे कटौती किये जाने को " कटौती प्रस्ताव " कहा जाता है। यह कटौती नीति संबंधी, मितव्ययता संबंधी तथा प्रतीक कटौती होती है।

(ग) विनियोग विधेयक

भारतीय संविधान के अनुसार संसद द्वारा स्वीकृत धन विनियोग विधेयक स्वीकृति होने के बाद ही विभाग प्राप्त कर सकते है। वास्तव मे स्थायी कोष पर आश्रित धन को व्यय करने के लिये लोक सभा मे विनियोग विधेयक प्रस्तुत किया जाता है। इस विधेयक के संबंध मे भी सामान्य विधायकों संबंधी प्रक्रिया अपनाते है। परन्तु विनियोग विधेयक के समय वित्तीय मांगों के विषय मे किसी प्रकार का वाद-विवाद नही होता है क्योंकि उन पर सदन पहले ही स्वीकृति दे चुका होता है। लोक सभा मे विनियोग विधेयक स्वीकृति हो जाने के बाद उसे राज्य सभा मे भेज दिया जाता है।

(घ) राज्य सभा मे प्रस्तुतीकरण 

राज्य सभा मे कोई भी वित्त विधेयक प्रस्तावित नही किया जाता है। किसी भी विधेयक को राज्य सभा 14 दिन से अधिक अपने पास नही रख सकती है। वित्त विधेयक 14 दिन के बाद राज्य सभा द्वारा स्वीकृत मान लिया जाता है। राज्य सभा को वित्त विधेयक को अस्वीकार करने का अधिकार प्राप्त नही है, परन्तु वह निर्धारित समय के अंदर वाद-विवाद या सुझाव प्रस्तुत कर सकती है। लोक सभा इन सुझावों को स्वीकार करने के लिये बाध्य नही होती है। वास्तव मे राज्य सभा को वित्त के संबंध मे कोई महत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त नही है।

(ड़) वित्त विधेयक 

यदि विनियोग विधेयक, प्रशासकीय विभागों को धन व्यय करने की अनुमति या राजकोष से धन प्राप्त करने की अनुमति देता है तो वित्त विधेयक धन संग्रह के साधनों का विवरण देता है। इस विधेयक को वित्त मंत्री संसद मे प्रस्तावित करता है। यह विधेयक, सामान्य विधेयकों की भांति ही पारित किया जाता है। इस विधेयक को भी राज्य सभा भी 14 दिन से अधिक नही रोक सकती। विधेयक को दोनो सदनों और राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करने के बाद प्रशासनिक विभागों को कर लगाने और साधनों का प्रयोग करने का अधिकार मिल जाता है, जिनके द्वारा राजस्व संग्रह होता है।

(च) राष्ट्रपति के हस्ताक्षर 

राष्ट्रपति को संघीय या अध्यक्षात्मक प्रणाली मे वित्तीय शक्तियां व्यापक रूप मे प्राप्त होती है, परन्तु संसदीय प्रणाली मे राष्ट्रपति की यह शक्तियां औपचारिक अधिकार होती है। राष्ट्रपति को सैद्धांतिक रूप से विधेयक स्वीकृति अथवा अस्वीकृति करने का अधिकार प्राप्त होता है, परन्तु राष्ट्रपति व्यवहारिक रूप मे प्रायः अपनी स्वीकृति दे ही देता है। विनियोग तथा वित्त विधेयक के पारित हो जाने पर तथा राष्ट्रपति के स्वीकृति स्वरूप हस्ताक्षर हो जाने पर बजट का निर्माण हो जाता है।

(छ) पूरक अनुदान 

प्रत्येक देश मे संविधान मे प्रायः पूरक अनुदान का प्रावधान होता है। विनियोग विधेयक द्वारा स्वीकृत धन के समाप्त हो जाने पर संसद के सम्मुख वर्तमान व्यय पूरा करने के लिए पूरक मांगों का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है। भारतीय संविधान मे इस तरह की पूरक मांगों का विधेयक प्रस्तुत करने की व्यवस्था का उल्लेख किया गया है। इस विधेयक की भी सामान्य विधायकों की भांति ही प्रक्रिया होती है। संसद ही इसे पारित करती है।

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संदर्भ, बी एन बी पब्लिकेशंस

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