12/27/2020

उत्पाद नियोजन का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, महत्व, घटक/तत्व

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उत्‍पाद नियोजन का अर्थ (utpad niyojan kya hai)

utpad niyojan ka arth paribhasha visheshta mahatva ghatak tatva;साधारण शब्‍दों में उत्‍पाद नियोजन का अर्थ भविष्‍य में क्‍या करना है? इसको वर्तमान में तय करना ही उत्‍पाद नियोजन कहलाता है। 

इस प्रकार हम दूसरे शब्‍दों में कह सकते है कि,'' नियोजन कार्यो की श्रृंखला का ऐसा अग्रिम निर्धारण होता है जो निश्चित परिणामों में सहयोग प्राप्‍त करता है।'' इस प्रकार उत्‍पाद नियोजन से आशय उन सभी क्र‍ियाओं से है जिनके अन्‍तर्गत यह निर्णय लिया जाता है कि व्‍यावसायिक उपक्रम की उत्‍पाद पंकितयों में कौन-कौन से उत्‍पाद मदें सम्मिलित किये जायें जिससे कि व्‍यावसायिक उपक्रम प्रतिस्‍पर्धात्‍मक स्थिति में उपभोक्‍ताओं को अधिकतम सन्‍तुष्टि प्रदान करते हुए अधिकतम लाभ  प्राप्‍त कर सकें। 

उत्‍पाद नियोजन की परिभाषा (utpad niyojan ki paribhasha)

फिलिप कोटलर के अनुसार ,'' भविष्‍य में क्‍या करना है, इसको वर्तमान में तय करना ही नियोजन कहलाता है।''

विलियम स्‍टेन्‍टन के शब्‍दों में,"उतपाद नियोजन में वह सब क्रियायें आती है जो निर्माता और मध्‍यस्‍थों  को इस योग बनाती है कि‍ वह तय कर सके कि‍ कम्‍पनी की उत्‍पाद को पंक्ति में कौन-कौन सी वस्‍तुयें होनी चाहियें?''

मैसन एवं रथ के शब्‍दों में ,'' एक उतपाद के जीवन के जन्‍म से लेकर उसका कम्‍पनी की उत्‍पाद पंक्ति से परित्‍याग तक के नियोजन निर्देश एवं नियंत्रण की सभी स्थिातियां उत्‍पाद नियोजन कहलाती है।''

उत्पाद नियोजन की विशेषताएं (utpad niyojan ki visheshta)

उत्पाद नियोजन की विशेषताएं इस प्रकार है--

1. तकनीकी कार्य

उत्पाद नियोजन ग्राहक मांग को संतुष्ट करने वाले उत्पाद लक्षणों को मालूम करने तथा उन्हे अंतिम उत्पादों मे समाविष्ट करने का महत्वपूर्ण कार्य है। इस दृष्टिकोण से उत्पाद नियोजन मूलरूप से एक तकनीकी कार्य है जो उत्पादन विभाग तथा अनुसंधान एवं विकास विभाग से संबंध रखता है।

2. वस्तु के संबंध मे जानकारी 

उत्पाद नियोजन के अंतर्गत नयी वस्तु का उत्पादन करने से पहले वस्तु के संबंध मे खोज-बीन कर पर्याप्त जानकारी एकत्रित की जाती है जिससे उपभोक्ताओं की इच्छाओं के अनुरूप उत्पादन किया जा सके। कौन-सा उत्पाद बनाया जाय? किस श्रेणी का बनाया जायें? कितना बनाया जाये? कितना मूल्य निर्धारित किया जाये? ऐसे निर्णय उत्पाद नियोजन के माध्यम से ही संभव है।

3. व्यावहारिक पक्ष का पता लगाना 

उपभोक्ताओं से संबंधित जानकारियों का पता लगाने के बाद उस वस्तु के उत्पादन की व्यावहारिकता का भी पता लगाया जाता है। व्यावहारिक पक्ष के अंतर्गत यह पता लगाया जाता है कि जिन विशेषताओं को उपभोक्ता चाहता है, उन विशेषताओं के साथ वस्तु का निर्माण किया जा सकता है अथवा नही।

4. उत्पाद मे परिवर्तन 

उपभोक्ताओं की रूचि, आदत व फैशन मे परिवर्तन के कारण यदि वर्तमान वस्तु मे भी कुछ परिवर्तन की आवश्यकता है जिससे वह मांग के अनुरूप हो सके।

उत्‍पाद नियोजन का महत्‍व (utpad niyojan ka mahatva)

उत्‍पाद नियोजन के महत्‍व इस प्रकार है--

1. विक्रय मात्रा में वृद्धि 

प्रांरम्‍भ में विक्रय करना सरल है लेकिन दीर्घ अवधि में लाभ कमाने के लिए वस्‍तुओं का पुर्नविक्रय आवश्‍यक है पुर्नविक्रय तब ही हो सकता है जब वस्‍तु की उपयोगिता एवं गुणों में निरन्‍तर वृद्धि‍ होती रहे। उत्‍पाद नियोजन कार्यक्रमों द्वारा उत्‍पाद की किस्‍म में सुधार कि‍या जाता है।

2. उपभोक्‍ताओं को आकर्षित करने के लिए 

उत्‍पाद नियोजन कार्य यह सनिश्च्ति करता है कि‍ उपभोक्‍ता क्‍या और कैसी वस्‍तु चाहता है? संस्‍था के द्वारा वही वस्‍तु बनायी जानी चाहियें जो उपभोक्‍ता को पसन्‍द हो। न कि बो वस्‍तु जिन्‍हें संस्‍था बना और बेच सकती है। इस लिए यह कहा जाता है कि‍ उत्‍पाद नियोजन एक महत्‍वपूर्ण  कार्य है।

3. प्रतिस्‍पर्धा हथियार

कुछ विद्वान वस्‍तु नियोजन कों प्रतिस्‍पर्धा पर विजय पाने का हथियार मानते है। वस्‍तु का मूल्‍य निर्धारण ग्राहक, सेवायें, विक्रय एवं विक्रय संवर्धन कार्यक्रम आदि सभी वस्‍तु नियोजन पर निर्भर करते है।

4. सम्‍पूर्ण विपणन कार्यक्रम का प्रारम्भिक बिन्‍दु 

स्‍टाण्‍टन ने कहा है कि ''एक फर्म के सम्‍पूर्ण विपणन कार्यक्रम के लिए वस्‍तु नियोजन आरम्‍भ स्‍थान है।'' वास्‍तव में विपणन प्रबन्‍धक को कोई भी कार्यक्रम बनाने से पहले वस्‍तु नियोजन आवश्‍य करना चाहिए।

5. सामाजिक उत्‍तरदायित्‍व की पूर्ति 

आज के युग में प्रयेक व्‍यावसायिक संस्‍था का उत्‍तरदायित्‍व होता है कि‍ वह समाज की आवश्‍यकता के अनुरूप ही वस्‍तुयें प्रदान करें। यह तभी सम्‍भव हो सकता है जब पहले से ही उत्पाद नियोजन पर ध्‍यान दिया जायें।

उत्‍पाद नियोजन के घटक/तत्‍व (utpad niyojan ke ghatak tatva)

उत्‍पाद नि‍योजन के घटक/तत्‍व इस प्रकार है--

1. वर्तमान वस्‍तु की किस्‍म में परिवर्तन की आवश्‍यकता 

इस के अन्‍तर्गत यह देखा जाता है कि‍ वर्तमान में वस्‍तु की श्रेणी में परिवर्तन की कोई आवश्‍यकता है या नही यदि इसमें परिवतर्न की आवश्‍यकता है तो किस प्रकार तथा कितनी मात्रा में है?इसका का निर्णय उत्‍पाद नियोजन के अन्‍तर्गत ही किया जाता है।

2. वस्‍तु श्रेणी में परिवर्तन 

उत्‍पाद नियोजन में यह भी देखा गया है कि वर्तमान में भी उत्‍पाद श्रेणी में परिवर्तन की आवश्‍यकता है या नहीं अगर है तो किस सीमा तक तांकि‍ ग्राहकों की मांग को पूरा कि‍या जा सके।

3. उत्‍पाद का आकार 

उत्‍पाद का आकार एक प्रमुख उत्‍पाद विशेषता होती है जो कि उत्‍पाद रेखा विस्‍तार, उत्‍पाद रेखा संकुचन, विपणन प्रयास एवं संवर्द्धन कार्यक्रमों को प्रभावित करती है। आज ग्राहक बहुत प्रकार से वस्‍तुओं की मांग करते है जिसको उतपादक को पूरा करना होता है।

4. वस्‍तुओं में सुधार का निर्णय 

वर्तमान उत्‍पादन में किसी सुधार के सम्‍बन्‍ध में निर्णय लेना भी उत्‍पाद नि‍योजन में ही सम्मिलित होता है क्‍योंकि प्रतिस्‍पर्धा के अन्‍तर्गत उतपाद में सुधार ही वस्‍तु को बाजार प्रदान करने में समर्थ होता है।

5. उत्‍पाद से पूर्व अनुसंधान करना 

नई वस्‍तुओं के बारे में उत्‍पादन से पहले ही विस्‍तृत रूप से अनुसंधान कर लिया जाता है जिससे की वस्‍तु ग्राहक को अधिक से अधिक मात्रा में संतुष्‍ट कर सके। पूर्व अनुसंधान के अन्‍तर्गत यह पता लगाया जा सकता है कि‍ उपभोक्‍ता की दृष्टि उत्‍पादन की जाने वाली वस्‍तुओं में क्‍या विशेषतायें होनी चाहियें जैसे, आकार ,रूप रंग, डिजाइन, साइज, पैकिंग, कीमत आदि क्‍या होना चाहियें।

6.अलाभकारी वस्‍तुओं के उत्‍पादन को बन्‍द करना

यदि कोई वस्‍तु इस प्रकार की है जिसकी बिक्री निरन्‍तर कम हो नही है इस कारण उस उत्‍पाद से लाभ  प्राप्‍त भी कम हो रहे है उस वस्‍तु के उत्‍पाद को बन्‍द करने सम्‍बन्‍धी निर्णय उत्‍पाद नियोजन के अन्‍तर्गत लिये जाते है।

7. मूल्‍य निर्धारण करना 

वस्‍तुओं के मूल्‍य प्रतिस्‍पर्धा को ध्‍यान में रखकर निर्धारित किये जाते है इसमें यह निश्च्ति करना होता है कि‍ वस्‍तु के मूल्‍य लागत को ध्‍यान में रखकर या बाजार मूल्‍य को ध्‍यान में रखकर निर्धारित किया जाये।

8. निर्माण विधि की सम्‍भावना

उपभोक्‍ताओं से सम्‍बन्‍धि‍त  विचारों की जांच पडताल के बाद उत्‍पादन की व्‍यावहारिकता की और भी देखना आवश्‍यक हो जाता है कि‍ जो विशेषतायें उपभोक्‍ता चाहता है क्‍या उन्‍हें ध्‍यान में रखकर वस्‍तुओं का निर्माण किया जा सकता है? या नही अत: वस्‍तु के उत्‍पादन की सम्‍भावना के विषय में भी उत्‍पाद नियोजन के अनतर्गत ध्‍यान दिया जाता है।

शायद यह आपके लिए काफी उपयोगी जानकारी सिद्ध होगी

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