12/03/2020

लाॅर्ड रिपन का प्रशासन, आंतरिक या प्रशासनिक सुधार कार्य

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लाॅर्ड रिपन 1880-86 

lord ripon ke sudharo ka varnan;भारत मे लाॅर्ड लिटन के बाद लार्ड रिपन का आगमन इंग्लैंड मे टोरी पार्टी की हार के बाद ग्लैडस्टन की सरकार के सत्तारूढ़ होने पर हुआ। वह ग्लैडस्टोनियन युग का सच्चा उदारवादी था। उसकी मान्यता थी कि प्रत्येक व्यक्ति को एक मानव के रूप मे अपने देश की सरकार अर्थात् समस्त कर्तव्यों, उत्तरदायित्वों और भारत मे भाग लेने का अधिकार है और दूसरे स्वशासन राजनीतिक का सबसे महान और ऊँचा सिद्धांत है। उसने कलकत्ता पहुँचते ही कहा था," आप शब्दों से नही कार्यो से मेरा मूल्यांकन करे। वह भारत की सेवा के लिए प्रतिबद्ध होकर आया था तथा भारत के प्रशासन को उदार बनाने का संकल्प रखता था। 

लार्ड रिपन का आंतरिक प्रशासन या सुधार कार्य 

लाॅर्ड रिपन के सुधार कार्य इस प्रकार है--

1. प्रेस स्वतंत्रता 

लाॅर्ड लिटन ने वार्नाक्युलर प्रेस एक्ट के द्वारा प्रेस पर कई प्रतिबंध लगा दिये थे जिसके कारण भारतीय जनता अत्यंत असंतुष्ट थी। लाॅर्ड रिपन ने इस एक्ट को समाप्त कर प्रेस पर से सभी प्रतिबंधों को हटवा दिया। रिपन बड़ा ही प्रगतिशील तथा लोकतंत्रीय विचारों वाला व्यक्ति था। इस वजह से वह प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थक था। 

2. श्रमिक अधिनियम 

लाॅर्ड रिपन ने कारखानो मे काम करने वाले मजदूरों की दुर्दशा पर ध्यान दिया तथा उनकी स्थिति को सुधारने के प्रयत्न किये। रिपन ने 1881 मे एक फैक्ट्री एक्ट पारित किया जिसमे 7 से 12 बर्ष के बच्चों से 9 घंटो से अधिक कार्य करवाने पर प्रतिबंध लगाया तथा इसके लिये निरीक्षक नियुक्त किये। कारखानों मे खतरनाक मशीनों के चारों ओर सुरक्षा हेतु तार लगा दिए और निरीक्षण के लिए इंस्पेक्टर नियुक्त किये गये। 

3. कर संबंधी सुधार 

लाॅर्ड रिपन ने आयकर को तीन भागो मे विभाजित कर दिया अर्थात् केन्द्रीय, प्रांतीय तथा सम्मिलित। उनके अनुसार कुछ कर केवल केन्द्रीय सरकार लागू कर सकती थी तथा करों को लागू करने का अधिकार प्रांतीय सरकार को था। सम्मिलित श्रेणी से प्राप्त धनराशि को केन्द्र एवं प्रांतो मे विभाजित कर दिया जाता था , लेकिन प्रांतीय सरकारों की आवश्यकताओं की पूर्ति अपनी इस आय से संभव नही थी। अतएव प्रांतीय बजट की कमी को पूरा करने हेतु केन्द्रीय सरकार द्वारा प्राप्त भूमिकर मे से एक निश्चित राशि प्रांतीय सरकार को देने की व्यावस्था की गयी।

लार्ड रिपन स्वतंत्र व्यापार का पक्षपाती था। अतएव भारत मे उसने स्वतंत्र व्यापार की नीति को और आगे बढ़ाया। उन दिनो मूल्यों का प्रतिशत आयात कर को देना पड़ता था। सन् 1882 मे रिपन ने इस कर को हटा दिया। उसने नमक कर को भी कम कर दिया।

4. शिक्षा व्यवस्था मे सुधार 

लार्ड रिपन ने भारतीयो को शिक्षा देने के लिये भी प्रयास किये तथा हण्टर कमीशन की सिफारिशों को लागू करवाया। सहकारी तथा सरकारी पाठशालाओं को प्रोत्साहित किया गया। शुल्क मुक्ति के नियम भी बनाये गये तथा निर्धनों को शुल्क मुक्ति प्रदान की गई। उच्च शिक्षा संस्थाओं का भी प्रबन्ध भारतीयो को दिया गया।

5. स्थानीय स्वशासन 

भारत मे भारतीयों को लाॅर्ड रिपन की सर्वाधिक महान् देन स्थानीय स्वशसन के क्षेत्र मे है। इसके लिये उसने 1881 और 1882 मे दो प्रस्ताव किये जिसमे स्थानीय शासन के उद्देश्य, स्वशासन संस्थाओं के निर्माण, विकास, उनके लिये महत्व की विस्तृत योजना थी। इससे जिला बोर्डों मे गैर सरकारी सदस्यों का बहुमत रखने तथा निर्वाचन करवाने का निर्देश दिया गया था। प्रान्त सरकारो को अपने धन मे से पर्याप्त धन इन्हें देने की आज्ञा भी दी और स्थानीय कर लगाने का भी अधिकार दिया। इस प्रकार उसने प्रशासन कार्य मे भारतीयों को शिक्षित जिम्मेदार बनाया तथा सरकार के आर्थिक व्यय मे कमी की। इससे भारतीयों को अति प्रसन्नता हुई तथा रिपन उनमे लोकप्रिय हो गया।

6. जनगणना तथा प्रदर्शनी 

प्रशासन मे वैज्ञानिक सुधार के लिए जनसंख्या का पता लगाना बहुत ही जरूरी था। नेपाल तथा कश्मीर को छोड़कर शेष सम्पूर्ण भारत मे 1881 मे जनगणना की गई। उस समय से यह जनगणना हर दस वर्ष बाद होती है। रिपन ने भारतीयों का कल्याण करना अपना दायित्व माना अतः उसने प्रथम बार जनगणना करवा कर जनसंख्या का पता लगाया तथा उसका उपयोग प्रशासन मे सुधार के लिये किया। 

कलकत्ता मे अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी की गई। इसका उद्देश्य भारतीय उद्योग को प्रोत्साहित करना था।

7. इल्बर्ट बिल 

रिपन के पूर्व बहुधा अंग्रेज अधिकारी या सामान्य से सामान्य अंग्रेज कर्मचारी भारतीयों का अपमान कर देता था या उनपर कोई अत्याचार कर देता था तो भी वह अंग्रेजी न्यायालयों से निर्दोष करार दे दिया जाता था, क्योंकि न्याय करने वाले भी अंग्रेज होते थे जो की पक्षपात करते थे। लाॅर्ड हेस्टिंग्स के काल मे ऐसा बहुत बार हुआ। भारतीयो को उनके मुकदमे सुनने का ही अधिकार नही था तो वे उन्हे दण्ड कैसे देते? परिणामस्वरूप अंग्रेज उद्दण्ड और निरंकुश हो गये थे।

रिपन ने अंग्रेजों के इस पक्षपात और अत्याचारों को समाप्त करने के लिये अपने विधि सदस्य सी.पी. इल्बर्ट से एक बिल प्रस्तावित करवाया। भारत मे निरंकुश तथा अत्याचारी अंग्रेजों से इसका जबर्दस्त विरोध किया तथा रिपन के साथ अभद्र और अमानवीय व्यवहार भी किया। इल्बर्ट बिल की भावना यह थी कि भारतीय न्यायाधी भी अंग्रेजों के मुकदमे सुनने लगे परन्तु कौंसिल द्वारा स्वीकृत होने पर भी तीव्र विरोध होने के कारण यह कानून नही बन सका। फिर भी रिपन इस बात मे सफल हो गया कि अंग्रेजों के मुकदमे भारतीयो और अंग्रेज न्यायाधीशों की संयुक्त बैठक (ज्यूरी) सुने और निर्णय दे।

इलबर्ट बिल का आधारभूत उद्देश्य पूरा नही हो सका परन्तु जाग्रत भारत ने इसे बड़ी उत्कण्ठा से देखा और इससे अपनी भावी राष्ट्रीय आंदोलन के लिए लाभदायी मार्गदर्शन प्राप्त किया।

लाॅर्ड रिपन का मूल्यांकन 

रिपन का प्रशासन विषम प्रतिक्रियाएं आमंत्रित करता है। साम्राज्यवादियों ने उसकी कटु आलोचना की, जैसे अर्नान्ड हाइट ने कहा ," उसने भारत के खो जाने के द्वारा खोल दिये। भारतीयों ने उसे सज्जन रिपन कहा, सर्वाधिक लोकप्रिय वाइसराय कहा।

भारत मे आने वाले सभी अंग्रेज वाइसरायों मे से संभवतः लार्ड रिपन सबसे ज्यादा उदार वायसराय था। इस वायसराय की शुभ उपलब्धियों की सिर्फ लाॅर्ड विलियम बैंटिक के कार्यों से तुलना की जा सकती है। उसके लिए भारतीयों की भलाई सबसे बड़ा विचार था। वह जनता के विचारो तथा भावनाओं का पूरा ध्यान रखता था।

लार्ड रिपन ने जितने भी कार्य किये उनमे उसे चाहे सफलता मिली हो या न मिली हो परन्तु इनसे उसका भारतीयों से सच्चा प्रेम स्पष्ट हो जाता है। स्थानीय स्वशासन, शिक्षा, प्रेस एक्ट, इल्बर्ट बिल तथा अफगान युद्ध का भार भारतीयों पर डालने का विरोध आदि कार्य उसके इस प्रेम के प्रतीक है। इसलिए 1884 मे भारतीयों ने रिपन को मान-पत्र भेंट करते हुये अश्रुपूर्ण विदाई दी।

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