12/19/2020

भारत में देशी रियासतों का विलय

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भारत में देशी रियासतों का विलय (भारत का एकीकरण)

desi riyasato ka bharat me vilay;ब्रिटिश भारत मे देशी रियासतो पर ब्रिटिश क्राउन की सर्वोच्चता स्थापित थी हालाकि सैद्धांतिक दृष्टि से आंतरिक रूप से ये रियासतें स्वतंत्र थीं पर व्यवहार मे इन पर ब्रिटिश शासन का नियंत्रण था। 1946 ई. की कैबिनेट मिशन योजना के द्वारा " सर्वोच्चता " को समाप्त करने का निर्णय किया गया लेकिन यह भी स्पष्ट किया गया कि यह अधिकार भारतीय सरकार को नही दिया जायेगा। इस घोषणा का दुष्परिणाम यह हुआ कि देशी रियासतें स्वतंत्र होने का स्वप्न देखने लगी। ण

भारत मे देशी रियासतों की विलीनीकरण की प्रक्रिया 

भारत मे उस समय 562 छोटी-छोटी रियासतें थी। इसमे हैदराबाद, ग्वालियर, काश्मीर, बड़ौदा तथा तथा मैसूर जैसी अन्य की तुलना मे 100 बड़ी रियासतें थी एवं कुछ रियासतें बहुत ही छोटी थीं। इन  सभी रियासतों मे निरंकुश राजतंत्र था एवं राजा के दैवी अधिकारों मे विश्वास किया जाता था। इन रियासतों का विलय कोई सरल कार्य नही था पर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस कार्य को करने मे आसाधारण योग्यता का परिचय दिया एवं रियासतों से अपील की कि वे भारत की अखंडता को बनाये रखने मे सहयोग दे। सरदार वल्लभ भाई पटेल के कार्य के संबंध मे लंदन टाइम्स ने लिखा था कि " भारतीय रियासतों के एकीकरण का कार्य उन्हे बिस्माॅर्क और संभवतः उसने भी ऊँचा स्थान प्रदान कर देता है।"

एक तरफ तो उन्होंने छोटी-छोटी रियासतों को मिलाकर एक बड़ा राज्य बनाया। दूसरी तरफ इन राज्यों मे प्रजातांत्रिक प्रणाली को लागू किया। उदाहरणार्थ 1947 ई. मे उडीसा तथा छत्तीसगढ़ के 39 राज्यों का उड़ीसा व मध्यप्रदेश मे विलय कर दिया गया। भारतीय रियासतो मे सबसे बड़ा संघ " वृहत्तर राजस्थान संघ" था जिसका निर्माण 30 मार्च 1949 ई. को हुआ। यह भारत की वृहत्तम राजनीतिक तथा प्रशासनिक इकाइयों मे से एक था जिनमे 15 प्राचीन राजपूत रियासतें थी। बड़ौदा की बड़ी रियासतें 1 मई, 1949 ई. को बम्बई प्रांत मे मिल गयी। भोपाल, कूचबिहार, त्रिपुरा व मणिपुर केन्द्रीय प्रशासन के नियंत्रण मे आ गये। नवंबर 1949 ई. तक जूनागढ़, हैदराबाद व कश्मीर को छोड़कर सभी भारतीय रियासतों का विलय पूर्ण हो गया। सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रशंसा करते हुए लाॅर्ड माउंटबेटन ने भी कहा था," रियासत मंत्रालय के अध्यक्ष तथा दूरदर्शी राजनीतिज्ञ सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयत्नों से एक ऐसी योजना बनाई गई जो मुझे रियासतों तथा भारतीय डीमिनियन के लिए एक सी लाभदायक प्रतीत हुई।

जूनागढ़, हैदराबाद तथा काश्मीर की रियासतों के विलीनीकरण के लिए सेना की मदद लेनी पड़ी। 

जूनागढ़, हैदराबाद तथा कश्मीर के विरुद्ध कार्यवाही

देशी रियासतों से अपील की गई कि वे डोमीनियन मे प्रवेश ले लें, जिसे जूनागढ़, हैदराबाद तथा कश्मीर की रियासतों ने अस्वीकार कर दिया और वे भारतीय संघ मे सम्मिलित नही हुई। अतः मजबूर होकर सरदार पटेल ने इनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने का निर्णय लिया। 

जूनागढ़ रियासत का भारत मे विलीनीकरण 

काठियावाड़ की इस रियासत के मुसलमान शासक के द्वारा सत्ता हस्तांतरण से एक दिन पहले पाकिस्तान मे प्रवेशपत्र पर हस्ताक्षर कर दिये जाने कारण वहाँ की अधिकांश हिन्दू जनता ने विद्रोह कर दिया और जहाँ-तहाँ उपद्रव होने लगे। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए वहाँ का शासक जान बचाने के लिये पाकिस्तान भाग गया। जूनागढ़ के मुस्लिम दीवान ने पुनः कानून और व्यवस्था लागू करने के लिये 9 नबम्वर,  1947 को भारत सरकार से प्रार्थना की। जूनागढ़ रियासत के प्रतिनिधियों की इच्छा से उस रियासत को काठियावाड़ के संयुक्त राज्य मे 20 जनवरी, 1949 को विलय कर दिया गया।

हैदराबाद का भारत मे विलीनीकरण 

हैदराबाद सबसे बड़ा राज्य था जिसका क्षेत्रफल 82,313 वर्ग मील एवं जनसंख्या 1.86 करोड़ थी। हैदराबाद राज्य की 89% प्रजा हिन्दू थी और हैदराबाद का शासक मुसलमान था। भारत संघ मे शामिल होने का निमंत्रण मुसलमान शासन द्वारा अस्वीकार कर देने से जो समस्या उत्पन्न हो गई थी, उसका हल निकालने मे लार्ड माउण्टबेटन के प्रयास असफल रहे। हैदराबाद के निजाम ने भारत सरकार से लड़ने का निश्चय कर पाकिस्तान की मदद से एक सेना तैयार करने का प्रयत्न किया। परिणामस्वरूप भारत सरकार ने हैदराबाद रियासत के विरूद्ध 13 सितम्बर, 1948 को पुलिस कार्यवाही प्रारंभ कर दी और तीन दिन के अंदर निजाम हथियार डालने को मजबूर हो गया। निजाम को गद्दी से हटाकर हैदराबाद मे सैनिक प्रशासन लागू कर दिया गया। 1 नम्बर, 1948 को हैदराबाद को भारत संघ मे मिला लिया गया। 

कश्मीर का भारत मे विलीनीकरण 

84, 471 वर्गमील का क्षेत्रफल तथा 44 लाख की आबादी वाले कश्मीर राज्य की तीन चौथाई आबादी मे हिन्दू, सिख और बौद्ध थे। कश्मीर के हिन्दू राजा को माउण्टबेटन ने भारत संघ मे सम्मिलित होने की सलाह दी, किन्तु वह सम्मिलित होने को तैयार नही था। उससे यह भी कहा गया कि यदि पाकिस्तान मे सम्मिलित होना चाहता है तो भारत सरकार उसके व्यवहार को मैत्रीपूर्ण नही मानेगी। काश्मीर का शासक असमंजस की स्थिति मे था क्योंकि वह भारत तथा पाकिस्तान दोनों के साथ यथापूर्व समझौते करना चाहता था। 

उसने पाकिस्तान से समझौता किया किन्तु पाकिस्तान ने फिर भी आवश्यक वस्तुएं कश्मीर भेजना बंद कर दी, साथ ही 15 अगस्त, 1947 के तुरंत बाद कश्मीर पर आक्रमण करने की योजना तैयार कर कबायलियों को मदद देने लगा ताकि श्रीनगर पर अधिकार किया जा सके। कबायली लोगों ने रियासत पर सीमांत हमले करने आरंभ कर दिये। अतः मजबूर होकर कश्मीर नरेश ने भारत सरकार से सहायता मांगी। 26 अक्टूबर 1947 को " भारत संघ प्रवेश लिखित" पर हस्ताक्षर कर दिये जाने के पश्चात भारत सरकार ने अपनी सेना कश्मीर भेजकर कश्मीर के अधिकांश हिस्से से आक्रांताओं को निकाल बाहर किया। भारत सरकार ने कश्मीर प्रवेश को अस्थाई रूप से स्वीकार किया। यह अस्थायी निर्णय संभवतः बड़ी भूल का  परिचयात्मक सिद्ध हुअ, क्योंकि इससे कश्मीर की समस्या जटिल हो गई और उस पर आज तक भारत भारत-पाकिस्तान का झगड़ा चल रहा है।

रियासतों की प्रशासनिक व्यवस्था 

एकीकरण से पूर्व रियासतों मे निरंकुश सरकारें स्थापित थी एवं प्रशासन मे जनता की कोई भागीदारी नही थी। पर स्वाधीन भारत मे रियासतों के एकीकरण के पश्चात स्थिति मे परिवर्तन आया। विलय समझौतों के अनुसार रियासतों के राजाओं ने शासन की समस्त शक्तियों को डोमीनियन सरकार को सौंप दी। विलीन रियासतों की जनता को प्रांतीय विधानमण्डलों ने प्रतिनिधित्व प्रदान किया। रियासती संघो मे साझी व्यवस्थापिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका की व्यवस्था की गई। राजाओं की परिषद " राजमंडल " कहलाई। संघ का प्रधान राजप्रमुख कहलाया जिसमे समस्त कार्यपालिका शक्ति केन्द्रीय की गई। उसे परामर्श देने के लिए मंत्रि-परिषद् बनाई गई। भारत सरकार को रियासतों की जनता से पूर्ण सहानुभूति थी। रियासतों का प्रांतों मे विलीनीकरण करके रियासतों की जनता को प्रांतो की जनता के समान ही अधिकार प्रदान किये गये। रियासती संघों मे उत्तरदियी शासन की स्थापना की गई। केन्द्र शासित प्रदेशों की जनता को प्रशासनिक अधिकारों से वंचित रखा गया। 

आगामी वर्षों मे भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग की गई। गृह-मंत्रालय के एक प्रस्ताव के आधार पर "राज्य पुनर्गठन आयोग" की नियुक्ति की गई जिसके अध्यक्ष श्री फजलअली थे। आयोग के अन्य सदस्य पं. ह्रदयनाराण कुँजरू तथा श्री के.एम. पणिक्कर थे। पुनर्गठन पर विचार करते समय आर्थिक, वित्तीय, प्रशासनिक एवं एकता तथा अखंडता से संबंधित पहलुओं को दृष्टिगत रखा गया। आयोग ने 30 सितंबर, 1953 ई. मे अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जिसके अनुसार भारत संघ मे वर्तमान 27 तथा तीन केन्द्र शासित प्रदेशों के स्थान पर 16 राज्य होगें। कुछ संपूर्ण राज्य एवं कुछ राज्यों के अंश अन्य राज्यों मे मिला दिये गये। सोलह नये राज्य इस तरह थे- असम, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, केरल, कर्नाटक, उत्तर-प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, बम्बई, विदर्भ, हैदराबाद, पंजाब, पश्चिमी बंगाल, मद्रास एवं जम्मू-कश्मीर। दिल्ली, मणिपुर व अंडमान-निकोबार को केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया। सन् 1960 ई. मे भाषायी आधार पर बम्बई के स्थान पर गुजरात व महाराष्ट्र के राज्य अस्तित्व मे आये। 

सन् 1962 मे नागालैंड का नवीन राज्य स्थापित किया गया। सन् 1966 मे गोआ, दमन व दीव को केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। इसी वर्ष " पंजाब पुनर्गठन अधिनियम " के तहत पंजाब के स्थान पर पंजाब व हरियाणा के नवीन राज्य बने। चंडीगढ़ को केन्द्र-शासित प्रदेश बनाया गया। 1971 ई. मे हिमाचल-प्रदेश अस्तित्व मे आया। इसी वर्ष मणिपुर, मेघालय तथा त्रिपुरा को राज्य का दर्जा दिया गया। 

स्वतंत्रोत्तर भारत मे शनै:शनै: भारतीय रियासतों के शासको के विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया। राष्ट्रपति के आदेशानुसार प्रिवी पर्स को प्रतिबंधित करने की अपील को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ठुकरा दिया गया पर अंत मे 1971 ई. मे रियासती शासकों के विशेषाधिकार और प्रिवी पर्स समाप्त कर दिये गये।

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