10/06/2020

स्थायी बन्दोबस्त के लाभ या गुण दोष

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स्थायी बन्दोबस्त क्या था? किसे कहते है?

भू-राजस्व की समस्या के समाधान के लिए लार्ड कार्नवालिस ने स्थायी बन्दोबस्त की व्यवस्था की। इस व्यवस्था के द्वारा सन् 1790-91 मे किये गये राजस्व संग्रह अर्थात् 26,80,000 रुपयों को आधार मानकर  लगान निश्चित कर दिया गया था। जमींदारों तथा उनके वारिसों को अब यही लगान सदैव के लिए देना था। संग्रहीत लगान का 8/9 भाग कंपनी को देय था 1/9 भाग जमींदार अपने पास रखता था।

शुरू मे यह व्यवस्था सिर्फ 10 वर्ष के लिए की गयी थी, लेकिन संचालक मण्डल की स्वीकृति प्राप्त हो जाने के बाद 22 मार्च, 1793 ई. को इसे स्थायी बन्दोबस्त मे परिवर्तित कर दिया गया। 

इसके अनुसार--

1. जमींदारों को भूमि का स्वामी बनाकर यह निश्चित हुआ कि जब तक वे सरकार को निश्चित भू राजस्व देते रहेंगे, उस समय तक उन्हें भूमि से बेदखल नही किया जा सकता। इस तरह भूमि पर उनका पैतृक अधिकार हो गया।

2. भू राजस्व हमेशा के लिए निश्चित कर दिया गया। भूमि पर से कृषकों का अधिकार खत्म हो गया और उन्हें जमींदारों की दया पर छोड़ दिया गया।

स्थायी बन्दोबस्त के लाभ या गुण (sthai bandobast ke labha)

1. कंपनी को लगान की निश्चित राशि मिलने का आश्वासन मिला।

2. लगान न देने पर भूमि बेचकर लगान वसूल किया जा सकता था।

3. लगान की राशि निर्धारित हो जाने से जमींदार वर्ग कृषि की ओर विशेष ध्यान देकर धनवान हो गए।

4. इससे जमींदार ब्रिटिश सरकार के आज्ञाकारी और समर्थक हो गये।

5. ब्रिटिश सरकार को भारत मे दृढ़ता और स्थायित्व के साथ-साथ अधिक आय प्राप्त हुई।

6. अनेक कर्मचारियों की नियुक्ति तथा उन पर होने वाले व्यय से कंपनी बच गई तथा जो कंपनी की सेवा मे थे उन्हें अन्य विभागों मे लगा दिया गया।

7. अस्थायी व्यवस्था के दोषों, जैसे खाद का प्रयोग न करना, आर्थिक गड़बड़, धन और अन्न छिपाना आदि से बचना सम्भव हो गया।

8. लगान 10 बर्ष तक नही बढ़ाई जा सकती थे परन्तु सम्पन्नता की स्थिति मे कंपनी द्वारा अन्य कर लगाये जा सकते थे।

9. सस्ती, समान और निश्चित प्रणाली थी।

10. इससे सरकार तथा जमींदार आपसी संपर्क मे आए और विद्रोह के समय जमींदारों ने सरकार की सहायता की।

स्थायी बन्दोबस्त की हानियाँ या दोष (sthai bandobast ke dosh)

1. स्थायी बन्दोबस्त से सरकार को विशेष हानि हुई, क्योंकि इस व्यवस्था मे सरकार को लगान मे वृद्धि का अधिकार न रहा। इसलिए उपच मे वृद्धि होने पर भी वह लगान मे वृद्धि नही कर सकती थी। ऐसे मे सरकार की आय रूक गयी। 

2. शुरू मे जमींदार वर्ग भी इस व्यवस्था से प्रभावित हुए, क्योंकि ऊंची बोली लगाकर वे भूमि तो ले लेते थे, पर सरकार को निश्चित राशि नही दे पाते थे। इस पर उन्हे भूमि से बेदखल करके पुनः नीलामी द्वारा दूसरों को दे दिया जाता था।

3. इस व्यवस्था से जमींदार वर्ग विलासिता का जीवन व्यतीत करने लगे।

4. कृषक वर्ग को इस व्यवस्था से व्यापक हानि हुई। भूमि पर से उनका अधिकार खत्म हो गया व उन्हे जमींदारों की दया पर छोड़ दिया गया। जमींदार उन पर तरह-तरह के अत्याचार करते थे।

5. स्थायी प्रबंध से राष्ट्रीय भावना की प्रगति को भी ठेस पहुंची क्योंकि जमींदारो ने स्वाधीनता संग्राम मे सरकार का साथ दिया।

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