3/28/2023

रीतिकाल किसे कहते है? रीतिकाल विशेषताएं

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प्रश्न; रीति शब्द का अर्थ स्पष्ट करते हुए रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।

अथवा" रीति काव्य के लक्षण लिखिए। 
अथवा" रीतिकाल से आप क्या समझते हैं? 
अथवा" रीतिकालीन काव्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। 
उत्तर--

रीतिकाल किसे कहते है?

राति का अर्थ है प्रणाली, पद्धति, मार्ग, पंथ, शैली, लक्षण आदि। संस्कृत साहित्य मे "रीति" का अर्थ होता है " विशिष्ट पद रचना। " सर्वप्रथम वामन ने इसे " काव्य की आत्मा " घोषित किया। यहाँ रीति को काव्य रचना की प्रणाली के रूप मे ग्रहण करने की अपेक्षा प्रणाली के अनुसार काव्य रचना करना, रीति का अर्थ मान्य हुआ। यहाँ पर रीति का तात्पर्य लक्षण देते हुए या लक्षण को ध्यान मे रखकर लिखे गए काव्य से है। इस प्रकार रीति काव्य वह काव्य है, जो लक्षण हैं के आधार पर या उसको ध्यान मे रखकर रचा जाता है। 
रीतिकाल से आश्य हिन्दी साहित्य के उस काल से है, जिसमे निर्दिष्ट काव्य रीति या प्रणाली के अंतर्गत रचना करना प्रधान साहित्यिक प्रवृत्ति बन गई थी। "रीति" "कवित्त रीति" एवं "सुकवि रीति" जैसे शब्दों का प्रयोग इस काल मे बहुत होने लगा था। हो सकता है आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी ने इसी कारण इस काल को रीतिकाल कहना उचित समझा हो। काव्य रीति के ग्रन्थों मे काव्य-विवेचन करने का प्रयास किया जाता था। हिन्दी मे जो काव्य विवेचन इस काल मे हुआ, उसमे इसके बहाने मौलिक रचना भी की गई है। यह प्रवृत्ति इस काल मे प्रधान है,लेकिन इस काल की कविता प्रधानतः श्रंगार रस की है। इसीलिए इस काल को श्रंगार काल कहने की भी बात की जाती है। "श्रंगार" और "रीति" यानी इस काल की कविता मे वस्तु और इसका रूप एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़े हुए है।

रीतिकाल की विशेषताएं 

रीतिकालीन कवियों के प्रमुख वर्ण्य विषय प्रायः एक से थे। जिनमें राज्य विलास, राज्य प्रशंसा, दरबारी कला विनोद, मुगलकालीन वैभव, अष्टयाम संयोग, वियोग वर्णन, ॠतु वर्णन, किसी सिद्धांत के लक्ष्य लक्षणों का वर्णन, श्रृंगार के अनेक पक्षों के स्थूल एवं मनोवैज्ञानिक चित्रों की अवतारणा आदि विषय प्रायः सभी कवियों के किसी ने किसी रूप में वर्ण्य हुआ करते थे। रीतिकाल की विशेषताएं निम्नलिखित हैं--
1. आचार्यत्व प्रदर्शन की प्रवृत्ति 
यह रातिकाल की मुख्य विशेषता है। इस काल के प्रायः सभी कवि आचार्य पहले थे और कवि बाद मे। उनकी कविता पांडित्य के भार मे दबी हुई है।
2. श्रृंगारप्रियता 
यह इस काल की दूसरी विशेषता है। सभी कवियों ने श्रंगार मे अतिशय रूचि दिखायी। यह श्रंगार वर्णन अश्लील कोटि तक पहुँच गया है।
काम झूलै उर मे, उरोजनि मे दाम झूले। श्याम झूलै प्यारी की अनियारी अँखियन मे।।
3. अलंकारप्रियता 
अलंकारप्रियता या चमत्कार प्रदर्शन इस काल की तीसरी विशेषता है। अनुप्रास की छटा, यमक की झलक, श्लेष, उत्प्रेक्षा, रूपक, उपमा आदि नाना अलंकारों के चमत्कार से रीतिकाल की कविता चमत्कृत है-- " गग-गग गाजे गगन घन क्वार के।"
4. ॠतु वर्णन 
रीतिकालीन काव्य की एक प्रवृत्ति ॠतु वर्णन की रही है। रीतिकालीन कवियों ने अधिकतर ॠतु वर्णन उद्दीपन के ही रूप में किया है। ॠतु वर्णन के साथ-साथ ॠतु विशेष में होने वाली क्रीड़ाओं, मनोविनोदों, वस्त्राभूषणों, उल्लासों की भरपूर व्यंजना कवियों ने की है। इनके अतिरिक्त कवियों ने ऋतु विशेष में होने वाले तीज त्यौहारों के भी संश्लिष्ट चित्र खींचे हैं। 
5. नारी चित्रण 
रीतिकाल की संस्कृति दरबारी-संस्कृति से प्रभावित थी। अतः रीतियुग 'नारी' भगिनी या पुत्री के रूप में अभिचित्रित न होकर रमणी प्रमदा के रूप में काव्य-जगत् में अवतरित हुयी हैं। फलतः उसे सौंदर्य, प्रेम और आकर्षण का केंद्र मान कर उसके अंग-प्रत्यंग का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विलासपूर्ण चित्रण किया गया। इसीलिए इस युग की सभी नायिकायें चन्द्रमुखी हैं, जो यौवन और मांसलता से परिपूर्ण हैं। कविवर मतिराम ने गौरवर्णी नायिका के सौंदर्य का चित्रण करते हुये लिखा है कि-- 
'कुन्दन को रंगु फीको लगै, झलकै अति अंगन चारू गोराई, 
आँखिन में अलसानि, चितौनि में मंजुल विलास की सरसाई।।' 
6. लाक्षणिकता तथा वाग्वैदग्ध्य
रीतिकालीन कविता में लाक्षणिक-प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में दृष्टिगोचर होते है। इन कवियों ने लाक्षणिक-प्रयोग के माध्यम से प्रिय-वियोग में प्रेम की कसक, व्याकुलता दीनता एवं आतुरता का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है। रीति कवियों की निरीक्षण क्षमता, उनकी पकड़ और विदग्धता कई स्थानों पर देखते ही बनती है। 'बिहारी' के विरोधाभास की क्षमता अपने आप में विशिष्ट हैं। दृष्टव्य है, उनका निम्नलिखित दोहा-- 
''दृग उरझत, टूटत कुदुम, जुरत चतुर चित्त प्रीति। 
परति गाँठ दुरजन-हिये, दई नई यह रीति।" 
7. बृजभाषा की प्रधानता
बृजभाषा रीतिकालीन युग की प्रमुख साहित्यिक भाषा है। यह काल बृजभाषा का चरमोन्नति काल है। इस समय बृजभाषा में विशेष निखार, माधुर्य और प्रांजलता का समावेश हुआ और भाषा में इतनी प्रौढ़ता आई कि भारतेंदु काल तक कविता के क्षेत्र में इसका एकमात्र आधिपत्य रहा और आगे के समय में भी इसके प्रति मोह बना रहा। 
8. नायिका भेद वर्णन 
रीतिकालीन कवियों को भारतीय कामशास्त्र से बड़ी प्रेरणा मिली थी। कामशास्त्र में अनेक प्रकार की नायिकाओं का वर्णन है। युग की श्रृंगारी मनोवृत्ति ने वहाँ से प्रेरणा पाकर तथा युग के सम्राटों, राजाओं और नवाबों के हरम में रहने वाली कोटि-कोटि सुन्दरियों की लीलाओं, काल चेष्टाओं, आदि से प्रभावित होकर साहित्य में नायिका-भेद के रूप में उनकी अवतारणा की थी। 
9. वीर रस की परिपाक 
रीतिकाल में श्रृंगार-रस का प्रधान्य था किन्तु जोधराज पृथ्वीराज राठौर, भूषण, सूदन, लाल एवं पद् माकर आदि कवियों ने वीर-रस की श्रेष्ठ रचनायें लिखकर रीतिकालीन काव्य की श्रीवृद्धि की है। कविवर भूषण जी ने महाराज शिवाजी एवं महाराज छत्रसाल जैसे महान देश-भक्तों की गौरव-गाथा का गान करते हुये राष्ट्रीय भावनाओं को जाग्रत किया हैं। भूषण जी की यह ओजस्वी कविता भाव, भाषा, शिल्प आदि सभी दृष्टियों से उच्च कोटि की है। उनका वीरोचित वर्णन अतिश्योक्ति पूर्ण होकर भी अत्यन्त प्रभावोत्पादक हैं-- 
"साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि, 
सरजा शिवाजी जंग जीतन चलत हैं।
'भूषन' भनत नाद बिहद नगारन के, 
नदी-नद मद गैबरन के रलत हैं।।''
यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगी

14 टिप्‍पणियां:
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  1. बेनामी31/12/22, 1:47 pm

    रितिकाल

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  2. बेनामी22/1/23, 1:47 pm

    Ritikal ki visheshtaon per tippani

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  3. बेनामी14/3/23, 9:58 am

    Riti kal ki bisesta

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