10/14/2020

गांधार शैली क्या है? गांधार शैली की विशेषताएं

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गांधार शैली या स्थापत्य कला क्या है? (gandhar kala kise kahte hai)

gandhar kala in hindi;गान्धार कला एवं स्थापत्य शैली को ग्रीको-रोमन, ग्रीको बुधिष्ट, हिन्दू-यूनानी आदि नामों से भी पुकारा गया है। भारतीय और यूनानी शैली के मिश्रण से भारत मे गांधार शैली का जन्म हुआ। इसका कारण यह है कि गांधार भूमि मे भारतीय और यूनानी पर्याप्त, समय साथ-साथ रहे। तक्षशिला के मंदिर के स्तम्भों तथा दीवारों मे, सीमान्त क्षेत्र के भवनों, वेशभूषा आदि मे यह मिश्रण परिलक्षित होता है। 

मूर्तिकला मे भारतीय शैली यद्यपि अपनी विशेषताएं रखती है। परन्तु भारतीय विषय-वस्तु, सजावट, आकार-प्रकार, भाव-भंगिमा मे यूनानी प्रभाव स्पष्ट दिखता है। भारत के पश्चिमी प्रदेशों के नगरों मे (तक्षशिला, पुरूषपुर आदि) मे यह उदाहरण मिल जाते है। यहां की मूर्तियां भारतीय होने पर भी सजावट, वेशभूषा, श्रंगार, केश विन्यास यूनानी होते है। जैसे-- साधनामग्न बुद्ध की नासिका उठी हुई और घुंघराले केश है। ऐसी मूर्तियों को गांधार शैली की मूर्तियां कहा जाता है। 

गान्धार शैली मे शरीर का यर्थावादी चित्रण किया गया है। पश्चिमी प्रभाव के होते हुए भी गांधार कला अनन्य रूप से भारतीय बनी रही और उसमे बुद्ध तथा बौद्ध धर्म की प्रधानता रही।

मूर्तियों, प्रतीक-चिन्ह, सुडौलता, विशालता, भव्यता, रंजकता सौन्दर्य की प्रमुखता होने लगी थी। बुद्ध, बोधिसत्व, अवलोकितेश्वर, मंजुश्री, यक्ष, कुबेर की मूर्तियां इसी शैली मे बनाई गई थी। इनके साथ वृक्ष, पशु, धर्म चक्र, आदि के भी अंकण गांधार शैली मे होते थे। 

गांधार शैली की विशेषताएं (gandhar shaili ki visheshta)

गांधार कला की विशेषताएं इस प्रकार है--

1. मानव शरीर की सुन्दर रचना तथा माँसपेशियों की सुक्ष्मता।

2. पारदर्शक वस्त्र और उनकी सलवटें।

3. अनुपम नक्काशी।

4.  गांधार शैली मे बुद्ध के जीवन की घटनाएँ मुख्य विषय रहे।

5. बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्तियों की अधिकता।

6. जातक कथाओं का चित्रण।

7. गांधार शैली की एक विशेषता यह है कि यह शैली यूनानी भारतीय शैली का मिश्रित प्रभाव थी।

8. गांधार शैली की मूर्तियों मे बुद्ध की मूर्तियों का मुख ग्रीक देवता अपोलो से मिलता है।

9. गान्धार कला की मूर्तियों मे शरीर की आकृति को हमेशा यथार्थ रूप मे दर्शाया गया है।

गांधार शैली के अंतर्गत बुद्ध की मूर्तियों को इतना सुन्दर बनाने का प्रयत्न किया गया था कि यूनानियों के सौन्दर्य देवता " अपोलो " की भांती सी लगती है। ए. एल बाशम ने लिखा है ," गान्धार-शिल्पियों ने यूनानी-रोमन संसार के देवताओं को अपना आदर्श माना, कभी-कभी उनकी प्रेरणा पूर्णतया पश्चिमी प्रतीत होती है। अत्यधिक सुन्दर मूर्तियों के निर्माण के कारण एक समय ऐसा था जब गांधार मूर्ति-कला को भारतीय कलाओं मे श्रेष्ठतम तथा अन्य सभी मूर्ति-कलाओं की जननी कहा जाता था। परन्तु अब इसे स्वीकार नही किया जाता। मथुरा और अमरावती शैलियों का विकास स्वतंत्र रूप से हुआ था और उनके अंतर्गत श्रेष्ठतम कलाकृतियों का निर्माण हुआ। गुप्तकालीन मूर्ति कला पर गांधार शैली के स्थान पर मथुरा शैली का प्रभाव स्वीकार किया जाता है और उसे गांधार शैली से श्रेष्ठ स्थान दिया गया है।

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