10/19/2020

भारत (सिंध) पर अरबों का आक्रमण, कारण और प्रभाव या परिणाम

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भारत पर अरबों के आक्रमण 

भारत पर तुर्कों के आक्रमण के पूर्व अरबों ने आक्रमण किये। अरब लोग सिंध के पश्चिमी किनारे से आगे नही बढ़ सके थे। उन्होंने केवल मुल्तान और मन्सूर पर ही अपना राज्य कायम किया और इससे शेष भारत पर कोई विशेष प्रभाव नही पड़ा। 

दक्षिण भारत से अरबों के व्यापारिक सम्बन्ध बहुत पुराने थे। भारत मे उनके सिंध और मालाबार मे व्यापारिक केन्द्र भी थे, परन्तु 636 ई. मे खलीफा उमर ने धर्मान्ध आक्रमण नीति अपनाई। अतः भारत पर अरबों ने आक्रमण आरंभ किये परन्तु थाने और देवल पर आक्रमणों को पुलिकेशिन द्वितीय ने विफल कर दिया। अब उन्होंने थल मार्ग से काबुल के हिन्दुशाही राजवंश पर और जाबुल के भारतीय राजा पर आक्रमण किये जो असफल रहे। अरबो को जान बचाकर भागना पड़ा। सन् 695 और 699 मे भी अरब बहुत बुरी तरह पराजित हुये और हिन्दूशाही वंश का काबुल, जाबुल पर आधिपत्य बना रहा।

सिंध पर अरबों का आक्रमण 

भारत के सिंध क्षेत्र पर अरबों के आक्रमण उमर के शासनकाल मे प्रारंभ हुआ। 643 ई. मे सिंध पर पहला आक्रमण हुआ। यह आक्रमण समुद्र से हुआ था। इसका उद्देश्य सिन्ध तट पर स्थित देबल के बन्दरगाह पर अधिकार करना था। सिंध पर दूसरा आक्रमण 660 ई. मे किया गया, परन्तु पहले और दूसरे दोनों ही आक्रमण असफल रहे। 

सिंध क्षेत्र मे अरबों का सफल आक्रमण 711 ई. मे इराक के गवर्नर हज्जाज के समय हुआ। हज्जाज ने सबसे पहले उबैदुल्ला के सेनापतित्व मे तथा दूसरी बार बुदैल के सेनापतित्व मे सिंध के शासक दाहिर पर आक्रमण किया, लेकिन सिन्ध की सेना द्वारा सेनापति उबैदुल्ला और बुदैल मारे गये। तब हज्जाज ने व्यापक तैयारियों के साथ अपने भतीजे एवं दामाद मुहम्मद बिन-कासिन को 15 हजार सैनिको के साथ आक्रमण के लिए भेजा। इस समय सिंध का शासक दाहिर था जो कि योग्य सेनानायक नही था और न कुशल प्रशासक था। मुहम्मद बिन-कासिम का प्रथम आक्रमण देवल पर हुआ। देवल पर आसानी से उसका कब्जा हो गया। 

मीर कासिम ने इस आक्रमण मे हिन्दुओं को मुसलमान बनाया और 17 बर्ष से अधिक के सभी पुरूषों की हत्या कर दी तथा बच्चों को अपना गुलाम बना लिया। नगर के सभी मंदिरों को तोड़ दिया गया। 

निरूण और सेहबान पर आक्रमण 

निरूण की अधिकांश जनता बौद्ध था तथा उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। परन्तु यहां के जाटो ने संघर्ष किया। लेकिन वह पराजित हो गये।

दाहिर से युद्ध 

राजा दाहिर ने अरबो को पराजित किया था। अतः मीर कासिम ने 712 ई. मे उस पर आक्रमण कर उसकी हत्या कर दी उसके पश्चात उसकी विधवा रानी ने संघर्ष किया और अंत मे आगे मे जलकर जौहर कर लिया। मीर कासिम ने दाहिर की दो पुत्रियों को पड़कर खलीफा के पास वासना-पूर्ति के लिये भेज दिया।

इसके बाद कासिम ने ब्राह्राणवाद पर अधिकार करने के लिए आक्रमण किया। दाहिरसेन के पुत्र जयसिंह ने कासिम का मुकाबला किया, परन्तु उसके कई मंत्री तथा अन्य लोग कासिम से मिल गये। अंततः जयसिंह परास्त हो गया। ब्राह्राणवाद के बाद कासिम ने राजधानी अलोट पर आक्रमण किया तथा वहां अरबो का अधिकार हो गया। 713 ई. मे बिन कासिम ने मुल्तान पर आक्रमण किया। यहां एक देशद्रोही के द्वारा दुर्ग के जल स्त्रोत का पता बता देने से वह मुल्तान को जीतने मे सफल हो गया। कासिम को यहाँ बहुत अधिक मात्रा मे सोना प्राप्त हुआ। इन विजयों के बाद कासिम पंजाब तथा कश्मीर तक जाना चाहता था, परन्तु इसी बीच उसकी हत्या करवा दी गई।

मुहम्मद बिन-कासिम की मृत्यु 

कहा जाता है कि मोहम्मद बिन-कासिम ने दाहिर की दो कन्याओं को खलीफा के पास भेंट-स्वरूप भेजा था परन्तु जब ये कन्याएं उसके समक्ष प्रस्तुत की गई तो उन्होंने निवेदन किया वे इस योग्य नही है कारण कि मोहम्मद बिन कासिम ने खलीफा के पास भेजने से पहले ही उनका कौमार्य भंग कर दिया था। यह समाचार सुनकर ही खलीफा ने क्रोधित होकर आदेश दिया कि मोहम्मद बिन-कासिम को बेल की खाल मे सीकर हमारे समक्ष प्रस्तुत किया जाय, कासिम ने स्वयं को खाल से सिलवा दिया। खाल मे ही तीन दिन बाद वह परलोकगामी हो गया। खलीफा के आदेशानुसार वह खाल दोनों कन्याओं के समक्ष खोली गई। कन्याओं ने स्वीकार किया कि उनके द्वारा यह कार्य अपने पिता की हत्या के प्रतिरोध मे किया गया था। खलीफा ने क्रोधित होकर यह आदेश दिया कि दोनों को घोड़ो की पूंछ से बांधकर इनके प्राणांत तक घसीटा जाए। आदेश कार्यरूप मे परिणित हो गया।

भारत पर अरबों के आक्रमण के कारण

1. साम्राज्यवादी प्रसार

पश्चिमी एशिया और अफ्रीका को जीतकर उसे अरब मुस्लिम देश बना चुके थे अब भारत को भी ऐसा ही बनाना चाहते थे। 

2. इस्लाम का प्रचार

अरब हिन्दुओं की मूर्ति पूजा व अवतारवाद या बहुदेववाद से घृणा करते थे। ऐसे धर्म को नष्ट करके वे भारत मे इस्लाम का प्रसार करना अपना पवित्र कर्तव्य मानते थे।

3. धर्मान्धता

भारत पर अरबों के आक्रमण का एक कारण यह भी कहा जाता है कि मे अरब भारतीयों का धर्म परिवर्तन करना चाहते थे। भारतीयों को लूट कर, लोभ और आतंक का भय दिखाकर धर्म परिवर्तन को इस्लाम की सेवा बताया गया।

4. पूर्व की पराजय का बदला 

अभी तक अरब पराजित हुए थे तथा वे भारत पर विजय प्राप्त करके अपनी निराशा और खीज को मिटाना चाहते थे।

5. अरबी जहाजों की लूट असत्य कारण

अरबों के कुछ जहाज जब लंका से बहुमूल्य उपहार और इस्लाम धर्म प्रचारकों को लेकर अरब सागर मे यात्रा कर रहे थे तो कुछ भारतीय समुद्री डाकुओं ने इन जहाजों को लूट लिया। इस लूट से क्रुद्ध होकर ईराक के मुस्लिम राज्यपाल और खलीफा के प्रतिनिधि अलहज्जाह से सिंध के हिन्दू राजा दाहिर को लूट की क्षतिपूर्ति करने के लिए लिखा। दाहिर ने उत्तर दिया कि समुद्री डाकू उसकी प्रजा नही है और वह उन्हें दण्डित नही कर सकता तथा धन व क्षतिपूर्ति के लिए भी उत्तरदायी नही है। इस उत्तर से अलहज्जाज अत्यन्त क्रोधित हुआ और खलीफा से सिंध पर आक्रमण करने की अनुमति मांग ली। इस प्रकार अरबों के सिंध पर आक्रमण का प्रमुख कारण बदले की भावना भी थी।

अरबों के आक्रमण का भारत पर प्रभाव और परिणाम 

लेनपूल ने अरब आक्रमणों को परिणाहीन बताया है। उसने लिखा है कि ," यह भारत और इस्लाम के इतिहास मे एक साधारण घटना मात्र थी। इतिहासकार हेग लिखते है कि " अरबो की सिंध विजय भारत के इतिहास की एक साधारण और महत्वहीन घटना थी और इस विस्तृत देश के कोने पर ही इसका प्रभाव पड़ा था।" यह कथन राजनीतिक दृष्टि से ठीक है, क्योंकि अरबों के आक्रमण का राजनीतिक प्रभाव लगभग शून्य था। परन्तु सिन्ध का राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक विनाश हुआ। हिन्दू धर्म, संस्कृति एवं हिन्दू-भूमि की भयंकर क्षति हुई। इस पराजय के कारणों मे राजपूतों मे एकता का अभाव और दूरदर्शिता की बहुत कमी थी। उन्होंने कभी सोचा ही नही था कि अरबों की विजय भारत मे मुस्लिम राज्य की स्थापना के लिये महत्वपूर्ण सिद्ध होगी। अरबों की सिंध विजय से उनके पैर भारत मे जम गये थे। अरब कबीले सिंध के कई शहरों मे व्याप्त हो गये थे। उन्होंने मंसूरा, बैजा, महफूजा तथा मुलतान मे अपनी बस्तियां स्थापित कर उपनिवेश बना लिये थे।

उमय्या वंश के खलीफाओं की खिलाफत के कारण अरब सिंध तक ही सीमित रहे। शेष भारत मे राजपूत, चालुक्य, सोलंकी, प्रतिहार तथा राष्ट्रकूटों की ओर उनके कदम नही बढ़े। राजपूत राज्यों ने भी इस घटना को उदासीनता से लिया। क्योंकि ये राज्य स्वयं युद्धस्तर एवं आंतरिक समस्या से उलझे हुए थे। 

अरबों के आक्रमण से भले ही भारत पर कोई विशेष प्रभाव न पड़ा हो, इससे अरबों पर बहुत फर्क पड़ा। अरबों ने भारतीय ज्योतिष चिकित्सा, विज्ञान, गणित तथा दर्शन ग्रंथों का अध्ययन किया तथा अरब ले गये। अरब मे इन ग्रंथों का अरबी मे अनुवाद किया गया। गणित के ज्ञान के लिए अरब लोग भारतीयों के ऋणी है। संस्कृत मे भारतीय वृहस्पति सिद्धांत का अरबी रूप " असमिद हिन्द " तथा आर्यभट्ट की पुस्तकों का अरबी मे अनुवाद " अरजबन्द " तथा  "अरकन्द" से अरबों का गणित तथा खगोल विधा मे ज्ञान बढ़ा। अरबों ने भारत को बर्बादी के सिवाय कुछ नही दिया। संस्कृत ग्रंथों के अरबी अनुवाद से इस्लाम लाभन्वित हो गया।

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