9/30/2020

सत्याग्रह का अर्थ, विशेषताएं, गुण, स्वरूप या साधन, नियम

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महात्मा गांधी का सत्याग्रह का सिद्धांत 

satyagraha in hindi;महात्मा गाँधी ने अन्याय और बुराई का अहिंसक ढंग से विरोध करने तथा न्याय की माँग करने के लिये जिस नये तरीके का अविष्कार किया उसे ही उन्होंने सत्याग्रह का नाम दिया। गांधी वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सत्य, अहिंसा और आत्मशक्ति के बीच एक अद्भुत समन्वय स्थापित किया।

महात्मा गाँधी जीवन मे नैतिक मूल्यों की स्थापना पर जोर देते रहे है। गांधी दर्शन का आधार "धर्म" है। लेकिन गाँधी जी ने धर्म को संकीर्ण दृष्टिकोण से न लेकर व्यापक अर्थों मे लिया है। उनके अनुसार सत्य, प्रेम, अहिंसा और नैतिक आचरण का ही दूसरा नाम "धर्म" है। धर्म का नैतिकता से घनिष्ठ सम्बन्ध है। गाँधी जी के विचारों मे एक सत्याग्रही वास्तव मे धार्मिक है। वह नैतिकता का पालन करता है। इसलिए वह ईश्वर के भी अति निकट है। सत्य और अहिंसा का पालन करने वाला कोई भी व्यक्ति सत्याग्रही हो सकता है।

सत्याग्रह का अर्थ (satyagraha ka arth)

सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ है "सत्य" के लिए आग्रह करना। असत्य के समक्ष झुकने वाला और सत्य प्राप्ति के लिए बलिदान करने वाला वास्तव मे सत्याग्रह है। सत्याग्रह आत्मा की शक्ति है।

यह दूसरों से उचिक कार्य करवाने का एक नैतिक साधन है। इसका उपयोग गाँधीजी ने सामाजिक तथा राजनैतिक अन्याय के विरुद्ध लड़ाई लड़ने मे किया। इसका गाँधी जी ने सर्वप्रथम प्रयोग दक्षिण अफ्रीका मे किया तथा बाद मे भारत मे अंग्रेजी शासन के खिलाफ तथा सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष मे किया। नमक सत्याग्रह, डांडी-मार्च, भारत छोड़ो आन्दोलन, करो या मरो के मंत्र के रूप मे यह हर भारतवासी के ह्रदय मे घर कर गया। एक शक्तिशाली साम्राज्य के विरुद्ध अहिंसा तथा सत्याग्रह के शस्त्रों द्वारा लड़ाई लड़कर न केवल भारत को स्वतंत्रता मिली वरन् इसने सम्पूर्ण विश्व को एक नई दिशा दिखाई।

गाँधी जी हमेशा लक्ष्य की प्राप्ति मे साधन की शुद्धता पर जोर देते थे। उनका दृढ़ विश्वास था कि अशुद्ध और अपवित्र साधनों के द्वारा शुद्ध लक्ष्य कभी प्राप्त नही हो सकता। जैसा बीच होगा वैसा ही वृक्ष होगा।

सत्याग्रह सत्य, अहिंसा तथा बलिदान पर आधारित होता है। सत्याग्रह का मुख्य तत्व "सत्य" ही है। सत्य ईश्वर का रूप है। इसकी प्राप्ति सरल नही। सत्याग्रही को इसके लिए लड़ाई लड़नी होती है। अहिंसा से तात्पर्य है मन, वचन और कर्म से किसी को हानि नही पहुंचाना। अहिंसा के साधन से ही सत्य की प्राप्ति सम्भव है। प्रेम सत्याग्रह का आधार है। प्रेम की सफलता बलिदान तथा तपस्या पर निर्भर होती है। बलिदान और तपस्या का अर्थ है, कष्ट तथा यातनाएं सहन करना तथा आत्म पीड़ा मे भी संतुष्ट रहना। ऐसा व्यक्ति ही निडर होकर लक्ष्य प्राप्त कर सकता है।

सत्याग्रह की विशेषताएं (satyagraha ki visheshta)

गाँधीजी द्वारा प्रतिपादित सत्याग्रह के सिद्धांत की विशेषताएं इस प्रकार है--

1. सत्य 

सत्याग्रह का मार्ग सत्य, अहिंसा एवं प्रेम का है। सत्याग्रही को स्वयं मे यह पूर्ण विश्वास होना चाहिए कि वह सत्य के लिये लड़ रहा है तथा सत्य मे हिंसा का प्रयोग नही होना चाहिए। गाँधी जी का मत था कि व्यक्ति की सामाजिक क्रियायें सत्य पर आधारित होनी चाहिए।

2. अहिंसा 

सत्याग्रह विरोधी के प्रति घृणा या हिंसा की अनुमति नही देता क्योंकि इसका उद्देश्य विरोधी का ह्रदय परिवर्तन करना है न कि उसका दमन करना। वस्तुतः सत्य और अहिंसा एक दूसरे से अत्यधिक घनिष्ठ रूप से जुड़े है कि उन्हें अलग नही किया जा सकता। अहिंसा साधन है और सत्य साध्य।

3. बलिदान 

प्रेम सत्याग्रह का आधार होता है। प्रेम की सफलता बलिदान और तपस्या पर निर्भर होती है। बलिदान तथा तपस्या का तात्पर्य है कष्ट तथा यातानाएं सहन करना और आत्मपीड़ा मे भी संतुष्ट रहना। ऐसी तपस्या करने वाला व्यक्ति दुःख मृत्यु से डरता नही है। वह निडर होकर अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ता है। गाँधी जी ने इस सम्बन्ध मे कहा है", सत्याग्रह को वैयक्तिक रूप से कष्ट सहन करना है।" 

सत्याग्रह के स्वरूप अथवा प्रणालियाँ या साधन 

1. सविनय अवज्ञा 

इसका अर्थ है विनम्रतापूर्वक आज्ञा की अवहेलना करना। गाँधीजी इसे सशस्त्र क्रांति का रक्तहीन रूप बताते है। सविनय अवज्ञा ह्रदय से आदरपूर्ण तथा संयत होनी चाहिए साथ ही उत्तम सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिए। इसके पीछे घृणा और शत्रुता की भावना नही होनी चाहिए।

2. असहयोग 

यह सत्याग्रह का प्रमुख अस्त्र है। गांधी जी असहयोग आन्दोलन 1920 मे अंग्रेजी शासन के विरुद्ध चलाया था। अत्याचारी को सत्य के मार्ग पर लाने हेतु उसके साथ सहयोग बन्द करना असहयोग है। बुराई को दूर करने का यह अहिंसात्मक हथियार है। 

3. हिजरत 

सत्याग्रह की एक और प्रणाली हिजरत या स्वेच्छा से अपने देश अथवा निवास स्थान को छोड़कर किसी दूसरे स्थान पर चले जाना है। ऐसे व्यक्ति जो अन्याय से पीड़ित हो एवं आत्म-सम्मान की रक्षा करते हुए उस स्थान पर न रह सकते हो वे हिजरत का प्रयोग कर सकते है। 1928 मे करबन्दी आन्दोलन मे बारडोली के किसानों पर जब भीषण अत्याचार किये गये तो गाँधी जी ने उन्हें हिजरत करने की सलाह दी। अतएव किसान पड़ौस के बड़ौदा राज्य चले गये।

4. सामाजिक बहिष्कार 

गाँधी जी के अनुसार सामाजिक बहिष्कार की अवधारणा अत्यंत व्यापक है। यदि वैयक्तिक दृष्टि से देखें तो सामाजिक बहिष्कार एक ऐसी विधि है जिसका प्रयोग सरकार या उन लोगों के विरुद्ध करना चाहिए जो जनमत की उपेक्षा करते हो। सामाजिक तथा आर्थिक संदर्भ मे बहिष्कार का तात्पर्य उन विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना है जिसके कारण देश के ग्रामीण उद्योगों के नष्ट हो जाने का खतरा हो। गांधी जी के अनुसार बहिष्कार अहिंसक ढंग से व दुर्भावना रहित होना चाहिए।

5. हड़ताल 

हड़ताल का आशय किसी अन्याय का प्रतिकार करने के लिये सारे व्यापार और करोबार तथा दुकानों और कार्यालयों को बंद रखना है। इसके द्वारा सरकार के सामने जन-सामान्य की आवश्यकताओं और कष्टों या समस्यों को सरकार के सामने प्रकट किया जाता है। श्रमिकों के जायज दुःखों को दूर करने का यह प्रभावी साधन है। पर इसका उपयोग शांतिपूर्ण एवं अहिंसक तरीके से होना चाहिए।

7. धरना 

धरना वह तरीका है जिसके द्वारा समाज-विरोधी कार्यों के प्रति व्यापक जनमत तैयार करना है जिसके माध्यम से समाज विरोधी कार्य करने वाले व्यक्ति के ह्रदय को बदला जा सके। गाँधी जी ने शराब बंदी तथा विदेशी वस्तुओं के उपयोग को रोकने के लिये सत्याग्रह के इस साधन का व्यापक उपयोग किया।

8. उपवास 

यह सत्याग्रह का अंतिम साधन है। जब समस्त उपाय बेकार सिद्ध हों तभी इसका प्रयोग होना चाहिए ऐसा गाँधी का कहना है। उपवास का अभिप्राय केवल अन्न ग्रहण न करना नही है अपितु सभी तरह के दूषित विचारों से मन को मुक्त रखना उपवास है। इसका प्रयोग आत्मशुद्धि, पश्चाताप, सार्वजनिक हित और अन्याय के प्रति पापियों के ह्रदय परिवर्तन के लिये किया जाना चाहिए।

सत्याग्रही के नियम (satyagrahi ke niyam)

एक सत्याग्रही के लिए विशिष्ट नियमों का पालन करना अनिवार्य है। ये नियम गाँधी जी के अनुसार इस प्रकार है--

1. एक सत्याग्रही व्यक्ति के लिए ईमानदार होना आवश्यक है।

2. एक सत्याग्रही को मन, वचन तथा कर्म से अपने शत्रु के प्रति भी हिंसा का भाव नही रखना चाहिए। उसमे प्रत्येक कष्ट को सहन करने की असीम क्षमता होनी चाहिए।

3. किसी भी परिस्थिति मे उसे किसी भी व्यक्ति पर क्रोध नही करना चाहिए।

4. सत्याग्रह को किसी भी परिस्थिति मे अपने विरोधी का अपमान नही करना चाहिए।

5. जब कोई अधिकारी सविनय आज्ञा भंग करने वालों को पकड़ने आयेगा तो वह स्वयं गिरफ्तारी देगा एवं उसका प्रतिकार नही करेगा।

6. इस संघर्ष मे यदि कोई किसी अधिकारी का अपमान करता है अथवा उस पर हमला करता है तो सत्याग्रही अपने प्राणों को संकट मे डालकर भी उस अधिकारी की रक्षा करेगा।

उपर्युक्त नियमों का कठोरतापूर्वक पालन करने वाला व्यक्ति ही सच्चा "सत्याग्रही" हो सकता है।

सत्याग्रही के गुण (satyagrahi ke gun)

एक सत्याग्रही व्यक्ति अन्य सामान्य व्यक्तियों की तुलना मे विशेष व्यक्ति होता है अतः सत्याग्रही को सदाचारी तथा नैतिक दृष्टि से सबल एवं श्रेष्ठ होना जरूरी है। अतः उसे कुछ आदर्शों को अपने व्यवहार मे कठोरतापूर्वक पालन करना जरूरी है। ये आदर्श इस प्रकार है--

1. उसे शारीरिक श्रम तथा रचनात्मक कार्य करते रहना चाहिए। रचनात्मक कार्यों से गांधी जी का अर्थ है-- साम्प्रदायिक एकता, अस्पृश्यता निवारण, नारी जागृति, बेसिक शिक्षा, खादी एवं ग्रामोद्योग का विकास, राष्ट्रभाषा कार्यक्रम आदि।

2. एक सत्याग्रही की ईश्वर मे अटूट आस्था होनी चाहिए, क्योंकि गांधी के विचार मे वही सिर्फ एक अटूट आधार है।

3. एक सत्याग्रही व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र मे अहिंसा का पालन करना चाहिए। दूसरों के सुख-दुःख को सदैव अपना सुख-दु:ख मानना चाहिए।

4. उसे हर समय "सत्य" के मार्ग पर चाहिए। सत्य की खातिर बलिदान करने के लिए भी उसे तत्पर रहना चाहिए। उसके जीवन का परम लक्ष्य ही "सत्य" प्राप्ति होना चाहिए।

5. शुद्ध तथा अनुशासित जीवन एक सत्याग्रही की महत्वपूर्ण विशेषता है।

6. एक सत्याग्रही को सभी प्रकार के व्यसनों से दूर रहना चाहिए। साथ ही नशीली वस्तुओं का प्रयोग नही करना चाहिए। इससे उसकी बुद्धि निर्मल एवं अचंचल रहेगी।

इस तरह गाँधी जी के "सत्याग्रह" सम्बन्धी विचार अत्यंत व्यापक दृष्टिकोण लिए हुए है। ये विचार केवल आदर्शवादी नही है। स्वयं गाँधी जी ने "सत्याग्रह" को आचरण मे लाकर न केवल भारतवासियों वरन् समूचे विश्व के सम्मुख आर्दश प्रस्तुत किया है।

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