2/12/2022

अध्यक्षात्मक शासन अर्थ, विशेषताएं, गुण एवं दोष

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प्रश्न; अध्यक्षीय शासन प्रणाली की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। 

अथवा" अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली से आप क्या समझते है? अध्यक्षीय शासन के गुण एवं दोषों का वर्णन कीजिए।

अथवा" अध्यक्षीय शासन प्रणाली किसे कहते हैं? अध्यक्षीय शासन प्रणाली के लक्षण बताइए।

उत्तर--

लोकतंत्र मे दो प्रकार की शासन प्रणालियाँ सर्वाधिक प्रसिद्ध और प्रचलित है, एक संसदात्मक शासन प्रणाली और दूसरी अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली। इन दोनों प्रणालियों मे अंतर कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के पारस्परिक संबंधों के कारण है। जहाँ कार्यपालिका और संसदात्मक सरकार है तथा जहाँ कार्यपालिका और व्यवस्थापिका पृथक है और एक-दूसरे को परस्पर नियंत्रण करती है तथा कार्यपालिका प्रमुख वास्तविक शासक है वहां अध्यक्षात्मक सरकार है।

आधुनिक प्रजातांत्रिक युग में सरकार का दूसरा लोकप्रिय स्वरूप अध्यक्षात्मक शासन है। इस शासन व्यवस्था में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल पृथक् तथा स्वंतत्र रहती है। अध्यक्षात्मक शासन का आधार शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त है। 

यहाँ हम अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था या प्रणाली का अर्थ, अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की विशेषताएं और अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के गुण एवं दोषों की विस्तार से चर्चा करने जा रहे हैं।

अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था का अर्थ (adhyakshatmak shasan arth)

अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली वह शासन प्रणाली है जिसमे कार्यपालिका वैधानिक रूप से व्यवस्थापिका से पृथक होती है तथा कार्यपालिका व्यवस्थापिका के सदस्यों से नही बनती। कार्यपालिका अपनी नीतियों तथा कृत्यों के लिए व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी भी नही होती। 

दूसरे शब्दों में " जिस शासन व्यवस्था मे कार्यपालिका प्रधान व्यवस्थापिका से बिल्कुल अगल होता है और शासन विभाग का प्रधान एक ऐसा व्यक्ति होता है जो व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नही होता, उसे अध्यक्षीय शासन कहते है। 

अध्यक्षीय शासन प्रणाली शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त पर आधारित होती है जिसका प्रतिपादन फ्रांसीसी दार्शनिक मान्टेस्क्यू ने किया था। मान्टेस्क्यू का मानना था कि व्यक्तियों की स्वतंत्रता की रक्षा तभी सम्भव है जब सरकार के तीन अंग व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका एक दूसरे से पृथक् हों परन्तु शक्ति का निरंकुश प्रयोग रोकने हेतु नियंत्रण व संतुलन भी जरुरी है। संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान इस सिद्धान्त को अंगीकृत किये हुए है और आज संयुक्त राज्य अमेरिका अध्यक्षीय शासन प्रणाली का सर्वोत्तम उदाहरण है। 

इस प्रणाली की विशेषताएँ हैं कि इसमें एक ही कार्यपालिका होती है, कार्यपालिका का कार्यकाल सुनिश्चित होता है, कार्यपालिका व व्यवस्थापिका में पृथक्करण रहता है। इन विशेषताओं की पृष्ठभूमि में स्थायित्व संकट के समय उपयुक्त दलबन्दी की बुराईयाँ कम होती हैं तथा यह अधिक कार्यकुशल शासन होता है। परन्तु इन गुणों के साथ ही साथ इस प्रणाली के कुछ दोष भी हैं जैसे शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त कारण व्यवस्थापिका व कार्यपालिका के मध्य संघर्ष होता है तथा नियंत्रण के अभाव में कार्यपालिका के निरंकुश बनने का भी भय बना रहता है। कठोर व्यवस्था होने के कारण परिस्थितियों के अनुकूल इसमें परिवर्तन करना सरल नहीं है तथा कार्यपालिका आवश्यकता पड़ने पर विधि निर्माण की पहल नहीं कर सकती है। संयुक्त राज्य अमेरिका का उदाहरण लें तो राजनीतिक दल राष्ट्रपति निर्वाचन के समय ही सक्रिय रहते हैं और न्यायपालिका का अनुचित हस्तक्षेप रहता है।

अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की विशेषताएं या लक्षण (adhyakshatmak shasan ki visheshta)

अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की निम्नलिखित विशेषताएं या लक्षण हैं--

1. नाममात्र की और वास्तविक कार्यपालिका पृथक नही 

अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली मे नाममात्र की और वास्तविक कार्यपालिका मे कोई भेद नही होता। राष्ट्रपति ही दोनों कार्यपालिका होता है। उसका निर्वाचन जनता द्वारा किया जाता है। लास्की का कहना है कि " वह सभी कार्यपालक निर्णयों का अंतिम स्त्रोत है। वह राज्य और शासन दोनों का प्रमुख है।

2. कार्यपालिका व व्यवस्थापिका का पृथक्करण 

अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली मे कार्यपालिका के सदस्य व्यवस्थापिका के सदस्य नही होते और न ही उसकी कार्यवाहियों मे भाग लेते है। अमेरिकी मे राष्ट्रपति और मंत्रिमंडल के सदस्य कांग्रेस की कार्यवाहियों मे भाग नही लेते तथा कांग्रेस के सदस्य नही होते। यदि कार्यपालिका को अपने अनुकूल कोई विधेयक पारित करवाना होता है तो अप्रत्यक्ष रूप मे कांग्रेस के सदस्यों द्वारा ही ऐसा करा सकते है। राष्ट्रपति व्यवस्थापिका को संदेश प्रेषित कर सकता है पर उस पर ध्यान देना या न देना व्यवस्थापिका पर निर्भर करता है। इसी प्रकार वह व्यवस्थापिका के कार्यों मे हस्तक्षेप नही कर सकता। वह व्यवस्थापिका को विघटित नही कर सकता उसका अधिवेशन नही बुला सकता। इस प्रकार दोनों ही स्वतंत्र है।

3. कार्यपालिका के कार्यकाल की निश्चितता 

कार्यपालिका कांग्रेस के प्रति उत्तरदायी नही होती। उसका संविधान द्वारा निश्चित कार्यकाल होता है जिसके पूर्व केवल महाभियोग द्वारा ही उसे हटाया जा सकता है पर महाभियोग एक जटिल प्रक्रिया है। अमेरिकी शासन व्यवस्था के लगभग दो सौ वर्ष के लंबे इतिहास मे केवल दो बार राष्ट्रपति जैक्सन और राष्ट्रपति क्लिंटन के विरूद्ध महाभियोग का असफल प्रयोग किया गया था। व्यवस्थापिका द्वारा अविश्वास का कोई प्रश्न ही नही उठता। राष्ट्रपति व्यवस्थापिका के अधिवेशनों का उद्घाटन भी नही करता, उसे तो केवल संदेश भेजने का अधिकार है।

4. व्यवस्थापिका का कार्यकाल निश्चित 

जिस प्रकार राष्ट्रपति संविधान द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए चुना जाता है, उसी तरह व्यवस्थापिका भी एक निश्चित अवधि के लिए निर्वाचित होती है और राष्ट्रपति उसको भंग नही कर सकता। 

5. अवरोध व असंतुलन की प्रणाली 

शक्ति पृथक्करण के साथ इस प्रणाली मे अवरोध और संतुलन के सिद्धांत का पालन किया जाता है। कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका अपने-अपने क्षेत्र मे सर्वोच्च है पर साथ ही अवरोध और संतुलन की प्रणाली के कारण कोई भी स्वेच्छाचारी नही हो सकता उदाहरण के लिए अमेरिका मे राष्ट्रपति अपने सलाहकारों की तथा राजदूतों आदि की नियुक्तियां करता है, विदेशों से संधियाँ भी करता है पर उनकी सीनेट द्वारा पुष्टि होना आवश्यक माना गया है।

अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के गुण (adhyakshatmak shasan ke gun)

अध्यक्षीय शासन प्रणाली के निम्नलिखित गुण हैं--

1. स्थायित्व 

यह अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली का सबसे बड़ा गुण है कि इसमे सरकारों के बार-बार बदलने और मध्यावधि चुनावों का खतरा नही रहता। सरकार एक निश्चित समयावधि के लिये निर्वाचित होती है। बीच मे उसे केवल "महाभियोग" द्वारा ही हटाया जा सकता है।

2. नीतियों मे स्थायित्व 

सरकार स्थायी रहने से उसकी बनने वाली नीतियाँ भी लम्बे समय तक स्थायी रहने की गारंटी होती है। इसमे जनता, व्यापारी और विदेशियों को सुनिश्चितता रहती है।

3. कार्यपालिका की निरंकुशता पर रोक 

शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त पर आधारित इस व्यवस्था का यह अर्थ नहीं है कि कार्यपालिका निरंकुश है इस शासन प्रणाली में कार्यपालिका को अपनी नीतियों के क्रियान्वयन हेतु विधि निर्माण एवं वित्तीय स्वीकृति के लिए व्यवस्थापिका पर निर्भर रहना पड़ता है। अतः व्यवस्थापिका इस रूप में कार्यपालिका पर अंकुश रखती है कार्यपालिका द्वारा निषेधानिकार (वीटो) शक्ति के द्वारा व्यवस्थापिका पर अंकुश रखने का कार्य किया जाता है। न्यायपालिका न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति द्वारा व्यवस्थापिका और कार्यपालिका पर नियंत्रण करने का कार्य करती है। इस प्रकार शक्ति पृथक्करण एवं नियंत्रण व संतुलन के सिद्धान्त के समन्वय से कार्यपालिका की निरंकुशता पर रोक रहती है। 

4. विशेषज्ञों का शासन 

संसदीय शासन प्रणाली के विपरीत अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली विशेषज्ञों और निपुण लोगों द्वारा शासित प्रणाली मानी जाती है। राष्ट्रपति अपने सलाहकारों की नियुक्ति दलगत राजनीति से पृथक होकर करता है। संसदीय प्रणाली मे संभव है कि एक व्यापारी शिक्षा मंत्री अथवा विदेश मंत्री बन जाए पर अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था मे यह संभव नही है। 

5. शासन संकटकाल के लिए उपयुक्त शासन प्रणाली

संकटकालीन परिस्थितियों का सामना करने में यह अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली सर्वाधिक उपयुक्त हैं। प्रणाली में कार्यपालिका शक्ति एक ही व्यक्ति के हाथ में निहित होती है जिसे व्यवस्थापिका अथवा अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों के निर्देशों के अनुसार कार्य नहीं करना पड़ता है। अतः निर्णय शीघ्रता से लिये जा सकते हैं। 

कार्यपालिका अध्यक्ष प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित होने के कारण लोकप्रिय भी होता है। अतः अपनी कुशलता व योग्यता से वह संकट का आसानी से सामना कर सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति इसके सर्वोत्तम उदाहरण हैं।

6. कार्यकुशलता अधिक 

इस शासन प्रणाली में कार्यकुशलता अधिक होती है क्योंकि शासन का प्रत्येक अंग किसी विशेष कार्य को दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप किये बिना पूरा करता है। वहीं कार्यपालिका के सदस्यों को व्यवस्थापिका के कार्यों में अपना समय नष्ट नहीं करना पड़ता हैं, जिससे ये एकाग्रचित्त होकर अपने कार्यों को सम्पादित कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति अपने मंत्रियों के चयन में स्वतंत्र होता है। उसे व्यवस्थापिका के सदस्यों को मंत्रिमंडल में सम्मिलित करने की बाध्यता नहीं होती, अतः वह अपने विवेकानुसार योग्यतम व्यक्तियों को नियुक्त कर सकता है। इस प्रकार इस व्यवस्था में विशेषज्ञ व्यक्तियों की नियुक्ति संभव होती है और कार्यकुशलता बढ़ती है। 

7. व्यक्ति स्वतंत्रता की रक्षा 

अध्यक्षीय शासन प्रणाली में कानून निर्माता एवं उन्हें क्रियान्वित करने वाले व्यक्ति अलग-अलग होते हैं, अतः नागरिकों की स्वतंत्रता अधिक सुरक्षित रहती है और अल्पसंख्यकों को उत्पीड़न का भय नहीं रहता। 

8. दलबन्दी की बुराईयों से मुक्ति 

इस प्रकार की शासन व्यवस्था मे सरकार राजनीतिक दलबन्दी की प्रणाली से कम से कम प्रभावित होती है।

9. बहुलीय प्रणाली के लिए सर्वाधिक उपयुक्त 

दलीय प्रणाली प्रजातंत्र का आधार है पर द्विदलीय प्रणाली और बहुदलीय प्रणाली दोनों की भूमिकाएँ प्रजातंत्र मे अपने परिणामों को प्रकट करती है। बहुदलीय प्रणाली प्रायः अस्थिरता लाती है जनमत किसी भी प्रश्न पर स्पष्ट राय नही दे पाता वह कई भागों मे विभाजित हो जाता है। शासन पर इसका यह प्रभाव पड़ता है कि सरकार बहुत जल्दी-जल्दी बदलती रहती है जैसा कि प्रथम विश्वयुद्ध के बाद और द्वितीय विश्वयुद्ध मे फ्रांस के पतन के बीच हुआ वहाँ 42 बार सरकारें बदली। 

भारत मे भी यह हो चुका है। अध्यक्षीय सरकारे इन प्रभावों से मुक्त रहती है क्योंकि अध्यक्षीय सरकारों का कार्यकाल निश्चित होता है वहाँ मध्यावधि चुनाव नही होते तथा कार्यपालिका के प्रधान का भी कार्यकाल निश्चित होता है उसे व्यवस्थापिका के समर्थन की आवश्यकता नही होती अतः बहुदलीय व्यवस्था भी अस्थिरता नही ला सकती।

अध्यक्षात्मक शासन के दोष (adhyakshatmak shasan ke dosh)

अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं--

1. विधायी और प्रशासनिक कार्यों मे सहयोग का अभाव 

आपस मे सहयोग का अभाव इस शासन व्यवस्था का मुख्य दोष है। इससे न प्रशासन ठीक प्रकार से चल पाता है, न उसकी आवश्यकता के अनुरूप विधि बन पाती है। 

2. उत्तरदायित्वहीनता

अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली मे कार्य पालिका अनुत्तरदायी होती है, अतः वह एक निश्चित समयावधि के लिये निरंकुश बन जाती है। कार्य पालिका शक्ति का राष्ट्रपति के हाथों मे केन्द्रीयकरण हो जाता है। कहा जाता है कि राष्ट्रपति 4 या 5 वर्ष के लिये तानाशाह बन जाता है।

3. कार्यपालिका व व्यवस्थापिका के मध्य संघर्ष 

अध्यक्षीय शासन व्यवस्था में शक्ति विभाजन के सिद्धान्त के कारण कार्यपालिका व व्यवस्थापिका के मध्य सम्बन्ध सामंजस्यपूर्ण नहीं होते। दोनों के मध्य तनाव बढ़ने की आशंका और अधिक हो जाती है जब राष्ट्रपति एक राजनीतिक दल का सदस्य होता है और व्यवस्थापिका में बहुमत दूसरे दल का होता है। ऐसी स्थिति में दोनों के मध्य संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है और शासन के कार्यों में अपेक्षित गतिशीलता नहीं आ पाती।

4. कार्यपालिका के निरंकुश बनने का भय 

इस शासन प्रणाली में कार्यपालिका प्रधान का कार्यकाल निश्चित होता है और इस अवधि से पहले उसे केवल महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा ही हटाया जा सकता है। महाभियोग की प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया है और यही कारण है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में किसी राष्ट्रपति को इस आधार पर हटाया नहीं जा सका है। ऐसी स्थिति में कार्यपालिका के निरंकुश बनने की सम्भावना बढ़ जाती है। उत्तरदायित्व का अभाव इस व्यवस्था में शक्ति और उत्तरदायित्व का पृथक्करण होता है और राजकीय नीति और कानूनों के लिए किसी को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। अनुत्तरदायित्वपूर्ण स्थिति लोकतंत्र के विरुद्ध मानी जाती है। संसदीय प्रणाली को उत्तरदायी शासन माना जाता है जहाँ जन प्रतिनिधि जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। अध्यक्षीय व्यवस्था में इसका अभाव पाया जाता है। 

5. राजनीतिक दल की केवल निर्वाचन के समय सक्रियता 

अध्यक्षीय शासन व्यवस्था में राजनीतिक दल केवल आम निर्वाचन के समय ही पूर्ण रूप से सक्रिय रहते हैं इसलिए निर्वाचन का समय बड़ा उथल पुथल का समय रहता है। यह उथल-पुथल कभी-कभी इतना उग्र हो जाता है कि विद्रोह या गृहयुद्ध की आशंका उत्पन्न हो जाती है। दक्षिणी अमेरिका के राज्यों में कभी-कभी ऐसा देखने को मिलता है परन्तु संयुक्त राज्य अमरीका में ऐसा नहीं होता। सामान्य काल में राजनीतिक दल प्रायः महत्वहीन रहते हैं। 

व्यवस्थापिका कार्यपालिका पर नियंत्रण नहीं रखती है, प्रश्न पूछकर , निंदा करने के माध्यम से लोगों में जो राजनीतिक चेतना व शिक्षा जागृत होती है, इस प्रणाली में इसकी सम्भावना क्षीण रहती है। 

6. कार्यपालिका को व्यवस्थापिका में पहल करने की शक्ति नहीं

शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के कारण अध्यक्षीय शासन प्रणाली का एक अन्य दोष यह है कि कार्यपालिका को विधि निर्माण कार्य में पहल करने की शक्ति प्राप्त नहीं है। जबकि संसदीय व्यवस्था में महत्वपूर्ण विषयों में विधि निर्माण कार्य में पहल सदैव कार्यपालिका ही करती है। इसका परिणाम यह होता 

है कि अध्यक्षीय प्रणाली में राष्ट्रपति और मंत्रिमंडल की ओर से विधि निर्माण कार्य में प्रत्यक्ष भागीदारी न होने से निर्वाचकों एवं प्रतिनिधियों के प्रति उत्तरदायित्व का अभाव तो रहता ही है। साथ में व्यवस्थापिका में वर्गहित एवं व्यक्तिगत लाभ के लिए विधायन को प्रभावित करने की सम्भावना अधिक रहती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में कांग्रेस के अन्दर लॉबिइंग व्यवस्था इसी का उदाहरण है। 

7. न्यायपालिका का अनुचित हस्तक्षेप

यदि हम अध्यक्षीय प्रणाली का अध्ययन संयुक्त राज्य अमेरिका के सन्दर्भ में करें तो स्पष्ट होता है कि संविधान के रक्षक के रुप में न्यायपालिका का हस्तक्षेप अत्यधिक है। व्यव्सथापिका और कार्यपालिका महत्वहीन हो जाती है ओर न्यायपालिका के अत्यधिक हस्तक्षेप के कारण अमेरिका में सर्वोच्च न्यायालय को व्यवस्थापिका का तृतीय सदन तक कहा जाने लगा है।

8. लचीलापन का अभाव 

संसदात्मक शासन प्रणाली की यह विशेषता है कि वह लचीली होती है इसलिए वह कई राजनीतिक दबावों को सह जाती है परन्तु अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली मे लचीलापन नही होता। यहाँ संवैधानिक परम्पराएं कम होती है सब कुछ संविधान के अनुसार चलता है। यदि कोई परिस्थिति आ जाए तो राष्ट्रपति व्यवस्थापिका को शीघ्र कानून बनाने के लिए प्रभावित नही कर सकता और न व्यवस्थापिका किसी विधेयक पर हस्ताक्षर करने के लिए राष्ट्रपति को प्रभावित कर सकती है।

यह भी पढ़े; संसदीय और अध्यक्षीय शासन व्यवस्था में अंतर

अन्य देशों में अध्यक्षीय प्रणाली 

संयुक्त राज्य अमेरिका का अनुसरण करते हुए कई क्षेत्रों में, खासकर लेटिन अमेरिकी देशों ने अपनी परिस्थितियों के अनुरूप इस शासन प्रणाली को अपनाया है। अध्यक्षीय शासन व्यवस्था का एक बड़ा गुण यह है कि इसमें एक स्थाई कार्यपालिका होती हैं। सरकार का टिका रहना संसद में बदलते जनमत पर निर्भर नहीं करता। इसीलिए, तीसरी दुनिया के कई देश इस व्यवस्था की ओर आकर्षित हुए है। इसके अलावा यह प्रणाली इन देशों में चमत्कारिक नेता के राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के अनुकूल है। विधायिका के प्रति निरंतर उत्तरदायित्व उनके लिए अभिशाप बन गयी है। उनके पास संसद को नियंत्रित करने के लिए सुगठित राजनीतिक दल नहीं हैं। 

इन्हीं कुछ कारणों के चलते फ्रांस के जनरल डी जॉले ने अपने संविधान को संशोधित किया। फ्रांस के पाँचवें गणतंत्र का संविधान विधायिका पर कार्यपालिका की जवाबदेही का दिखावा बनाए रखता है। लेकिन, राष्ट्रपति को इतने अधिक अधिकार दिए गए हैं कि सरकार संसदीय प्रणाली से कहीं ज्यादा अध्यक्षीय प्रणाली लगती है राष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता करती है। राष्ट्रपति मंत्रियों को नियुक्त करता है और उनकी बैठकों की अध्यक्षता करता है राष्ट्रपति के पास व्यापक आपातकालीन शक्तियाँ होती हैं। वह राष्ट्रीय सभा को भंग कर सकता है। फ्रांस के राष्ट्रपति ने लगातार अपने पद का इतना प्रभाव जमाया कि आज फ्रांस की सरकार को प्रधानमंत्री के बजाए राष्ट्रपति के नाम से जाना जाता है। 

उसी तरह श्रीलंका में तीन दशकों की संसदीय व्यवस्था के अनुभव के बाद राष्ट्रपति जयवर्द्धने ने फ्रांस की प्रणाली के आधार पर संविधान संशोधन किया। तीसरी दुनिया के कई देश अध्यक्षीय प्रणाली की सरकार का समर्थन करते हैं। 

राष्ट्र को अपने सपनों के अनुरूप ढालने वाले चमत्कारी नेताओं के अलावा भी तीसरी दुनिया के देशों में कुछ और भी अध्यक्षीय प्रणाली का समर्थन करते हैं इन देशों में राजनीतिक दलों के बजाए सेना एक महत्वपूर्ण संगठन है। राष्ट्रपति का समर्थन सेना करती है और उसके लिए एक क्रांति को यंत्रित करना आसान होता है। बजाए कई लोगों की संस्था को नियंत्रित करने के, जैसा कि संसद में होता है। 

तीसरी दुनिया के देशों में तेजी से सामाजिक आर्थिक बदलाव की ज़रूरत है। ऐसा समझा जाता है कि अध्यक्ष पर संसद की कोई रोक-टोक नहीं होती है। इसलिए वह यह परिवर्तन लाने के लिए ज्यादा अच्छी स्थिति में होता है। एक क्रांति का नेतृत्व और एक के प्रति निष्ठा इन राष्ट्रों की परम्पराओं से मेल खाती है अंत में, इन राष्ट्रों की विचारधारा भी एक महत्वपूर्ण कारण है। नेता इस विचारधारा को बनाते हैं और अभिव्यक्त करते हैं।

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4 टिप्‍पणियां:
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  1. अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली किन-किन देशों में है।

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    1. बेनामी27/3/23, 1:25 pm

      अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली, अमेरिका, ब्राजील, श्री लंका आदि देश में है.......

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  2. बेनामी24/3/23, 8:46 pm

    America France chilli telanga

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