8/15/2020

बाल अपराध का अर्थ, परिभाषा और कारण

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बाल अपराध का अर्थ (bal apradh ka arth)

bal apradh arth paribhasha karna;बाल अपराध समाज की अनेक सामाजिक समस्याओं मे से एक है। यह केवल की ही नही वरन् बाल अपराध एक विश्वव्यापी समस्या है।
एक तरफ विश्व के कई देश लगातार उन्नति तथा प्रगति कर रहे है, तो दूसरी तरफ बाल अपराधियों मे तीव्रता से वृद्धि हो रही है। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि आज संसार मे व्यक्ति पहले की बजाय कही ज्यादा धनी तथा शिक्षति है। वह सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु करोड़ों रूपये व्यय कर सकता है। अपने बच्चों को ऊंची से ऊंची शिक्षा देने का प्रयत्न ही नही करता है, बल्कि उन्हें हर तरह की सुविधा देने का प्रयास करता है, जिससे कि वह उन्नति कर सके। पर इतनी सुविधाओं तथा प्रयत्नों के बाद भी बाल अपराधियों की संख्या मे वृद्धि हो रही है। इनकी बढ़ती हुई संख्या को देखकर समाजशास्त्री समाज सुधारक तथा राज्य सरकारें चिंतित व दुःखी है।

अपराध की परिभाषा (bal apradh ki paribhasha)

समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से " उन कार्यों को बाल-अपराध माना जावेगा जो एक समूह अथवा समाज को हानि पहुँचाये एवं जिनके विरूद्ध कानूनी कार्यवाही करना आवश्यक हो जाये। प्रत्येक समाज मे आर्दश प्रतिमान व मूल्यों की तथा वैधानिक नियमों की एक व्यवस्था होती है। जबकि किसी व्यक्ति द्वारा मान्य नियमों का पालन नही किया जाता तब अपराध की समस्या पैदा होती है,  फिर चाहे वह अपराध हो या बाल-अपराध।"
गिलिन व गिलिन के अनुसार " समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से बाल-अपराधी वह व्यक्ति है जिसके व्यवहार को समाज अपने लिए हानिकारक समझता है और इसलिए यह उसके द्वारा निषिद्ध होता है।"
डाॅ. हेकरवाला के अनुसार " सामाजिक दृष्टिकोण से बाल अपराध का तात्पर्य बच्चे अथवा किशोर के ऐसे व्यवहार से है, जो मानवीय संबंधों के क्रम मे, जिसे समाज अपने अस्तित्व के लिए आवश्यक समझता हो बाधा डालता है।"
मनौवैज्ञानिक दृष्टिकोण " मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण बाल अपराध को एक व्यक्तिगत समस्या मानता है। मनोविज्ञान के अनुसार इसे बालक के आचरण का अध्ययन करके ही जाना जा सकता है।
फ्राईड लैडन " जब किसी बालक के व्यक्तित्व मे ऐसी अभिवृत्ति विकसित होती है, जो उसे सामाजिक नियमों व कानूनों को तोड़ने की प्रेरणा देती है तब उसे बाल अपराधी कहेंगे।
जेम्स के अनुसार " बाल अपराधी का तात्पर्य उस बच्चे से है जो आदत के रूप मे अपनी निराशाओं को समाज विरोधी कार्यों अथवा हिंसा के रूप मे प्रदर्शित करता है।
बेकर के अनुसार " बाल अपराध का तात्पर्य ऐसे हिंसात्मक व्यवहार से है जिसमे एक बालक द्वारा राज्य व नगर के कानूनों का उल्लंघन होता है।

बाल अपराध के कारण (bal apradh ke karan)

1. पारिवारिक कारण
बाल अपराध के लिए पारिवारिक कारण जिम्मेदार होते है। परिवार वह प्राथमिक संस्था है जहाँ बच्चे का लालन-पालन एवं समाजीकरण होता है। प्रेम और सहयोग एवं सामाजिक नियमों का प्रशिक्षण भी बच्चा परिवार मे ही प्राप्त करता है। लेकिन यदि परिवार संगठित न हो एवं परिवार की आर्थिक दशा एवं निवास की स्थितियाँ एवं माता-पिता और बच्चो के बीच संबंधो मे संतुलन न हो तो विपरीत स्थितियां निर्मित हो जाती है। इस विचारधारा की निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है--
(अ) टूटे परिवार
कई बार  विच्छेद के सिद्धांतों को स्वीकार करने के कारण अथवा परिवार के सदस्यों मे आर्थिक समस्याओं को लेकर परिवार विघटनकारी प्रक्रियाओं की तरफ अग्रसर होने लगता है। ऐसी स्थिति मे बच्चों का उचित रूप से विकास सम्भव नही हो पाता। ऐसी स्थिति मे कई बार बच्चे बाल अपराधों की तरफ अग्रसर होने लगते हैं।
(ब) अनैतिक परिवार
 प्रायः यह देखा गया है कि बहुत से परिवारों मे नैतिकता के सिद्धांतों को महत्व नही दिया जाता। माता-पिता एक तरफ अपने कार्यालयों मे व्यस्त रहते है तो दूसरी तरफ बच्चे सड़कों पर घूमते हुए नजर आते है, असामाजिक क्रियाओं की तरफ बढ़ने लगते है। इसके अलावा अगर परिवार मे जीवन साथी यौन-सम्बन्ध स्थापित करने मे सावधानियाँ नही बरतते है, तब बच्चे आपराधिक क्रियाओं की तरफ बढ़ सकते है।
(स) त्रुटिपूर्ण अनुशासन
बाल अपराधशास्त्रियों का यह भी कहना है कि बाल अपराधों को बढ़ाने मे परिवारों मे अनुशासनहीनता की व्यवस्थाओं का भी होना है। बहुत से माता-पिता बच्चों के पालन पोषण मे विशिष्ट तरह के मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का पालन नही करते है या वे बच्चों बहुत सजाएँ देते है। ऐसी स्थिति मे बालकों मे असामाजिक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिले बगैर नही रहता है।
(द) सौतेले माता-पिता का व्यवहार
माता-पिता या संरक्षकगण अपने बच्चों के साथ असमानताओं का व्यवहार करते हो, किसी बच्चे की तो अत्यधिक प्रशंसा करते हों तथा दूसरे बच्चों को परिहास का विषय बनाते हो तो ऐसी स्थिति मे बच्चों मे हीनता तथा निराशा की भावनाएं पैदा हुए बिना न रह सकेंगी। ऐसे बच्चे प्रारंभ मे तो परिवार के नियमों का उल्लंघन करते है तथा उसके बाद समाज के नियमों के विरूद्ध कार्यवाहियाँ करने मे किसी भी प्रकार से हिचकिचाहट का एहसास नही करते है।
2. आर्थिक कारण
अर्थिक परिस्थितियों और बाल अपराध मे घनिष्ठ संबंध है। अधिकांश बाल अपराधी वे बच्चे होते है जिनके माता-पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नही होती। कभी-कभी ऐसे घरों मे माता-पिता स्वयं अपराध मे लिप्त होते है अतः उनके बच्चे उस व्यवहार का अनुकरण कर लेते है। इसके अलावा निर्धनता की स्थिति मे बच्चे की आवश्यकताएं पूरी नही हो पती। अतः यह असंतोष उनके अंदर कुंठा पैदा करता है और ऐसी स्थिति मे बच्चा अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए चोरी एवं अन्य अपराधों की तरफ बढ़ जाता है।
3. स्वस्थ मनोरंजन के साधनों अभाव
हर व्यक्ति कार्य के बाद मनोरंजन चाहता है। मनोरंजन सिर्फ व्यतीत करने या दिन बहलाने का साधन मात्र ही नही वरन् व्यक्ति के संतुलित विकास का भी अच्छा साधन बन सकता है। स्लैंगर का कथन है कि जो लड़का खेल हेतु सड़को अथवा गलियों का प्रयोग करता है वह उतना दोषी नही जितना कि वह समुदाय जो खेलकूद के साधनों की व्यवस्था नही करता है। स्वास्थ मनोरंजन के साधनों की कमी से बालकों का ध्यान कई तरह की शरारतों की तरफ जाता है।
4. सांस्कृतिक कारण
बाल अपराध के कारणों मे से एक कारण सांस्कृतिक भी है। प्रत्येक समाज की संस्कृति मे स्वीकृति एवं मान्य व्यवहार प्रणालियों के निश्चित मानक होते है। इनके अनुरूप आचरण से समूह मे समायोजन की प्रक्रिया विकसित होती है। लेकिन जब सांस्कृतिक प्रतिमानों के विपरीत आचरण विकसित होता है तो समूह मे कुसमायोजन की प्रक्रिया पनपने लगती है। नगरीकरण और विभिन्न संचार के साधनों के माध्यम से सांस्कृतिक परिवर्तन की गति समाज मे तेजी से बढ़ी है। यहि कारण है कि मूल्यों का भम्र, नैतिक पतन बढ़ रहा है। परिवार जैसी संस्था द्वारा प्राथमिक नियंत्रण कमजोर हो रहा है। बच्चे अनियंत्रित स्वतंत्रता की मांग कर रहे है साथ ही मनोरंजन की प्रकृति भी व्यावसायिक हो गई है। अपराधी प्रवृत्ति मे संलग्न बच्चे अश्लील साहित्य एवं चलचित्रों के माध्यम से अपराधी व्यवहार का प्रशिक्षण प्राप्त करने लगे है।
 5. चलचित्र
चलचित्र भी बाल अपराध का कारण है चलचित्र आजकल मनोरंजन का मुख्य साधन बनता जा रहा है, बालकों के सामने उच्च आदर्श पेश नही कर पाता है। बहुत से बालक तो सिर्फ अपनी अतृप्त कामुकता को शान्त करने हेतु चलचित्रों मे जाते है। इनमे इस तरह के कई ऐसे समाज विरोधी कार्य दिखाई जाते है जिन्हें बालक सीख जाता है एवं दैनिक जीवन मे उनका प्रयोग करने की कोशिश करता है।
6. पास-पड़ौस
बालक के विकास पर उसके पास पड़ौस का भी प्रभाव पड़ता है। अगर उसका पड़ौस अच्छा है तो इसका बालक के विकास पर अच्छा प्रभाव पड़ता है क्योंकि उसके सामने अच्छे आदमी उदाहरण के रूप मे है। इसके विपरीत अगर पड़ोस शराबियों, जुआँरियों, वैश्यागामियों, चोर, गिरहकट आदि का है तो बालक भी अनुकरण से इनकी आदतें सीखता है तथा बड़ा होने पर अवसर मिलने पर वह भी इन व्यसनों का पक्का शिकार होता है।

7. वैयक्तिक कारण
बाल अपराधी व्यक्ति का आचरण उसकी मानसिक अस्थिरता को स्पष्ट करता है जैसे आवारापन, भगोड़ापन, प्रतिशोध, अपनी आवश्यकताओं की तुरंत पूर्ति आदि यह असामान्य आदतें इस बात को प्रमाणित करती है कि बाल अपराध वैयक्तिक कारणों से होता है। जब बच्चे अपने जीवन से असंतुष्ट रहते है और कुन्ठाओं व हीन भावनाओं से ग्रस्त रहते है तब उनमे समाज विरोधी तत्वों के प्रति सहज रूप से आकर्षक पैदा हो जाता है।
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