11/17/2021

सामाजिक अनुसंधान का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं

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सामाजिक अनुसंधान/शोध का अर्थ (samajik anusandhan kya hai)

Samajik anusandhan arth paribhasha visheshta;सामाजिक अनुसंधान शब्द दो शब्दों सामाजिक+अनुसंधान से बना है। सामाजिक अनुसंधान का अर्थ जानने से पहले हमें अनुसंधान शब्द का अर्थ समझना आवश्यक है। 
अनुसंधान शब्द की उत्पत्ति एक ऐसे शब्द से हुई है जिसका अर्थ "दिशाओं मे जाना" अथवा खोज करना होता हैं। अनुसंधान वह व्यवस्थित वैज्ञानिक पद्धति है जिसमें वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोग द्वारा वर्तमान ज्ञान का परिमार्जन, उसका विकास अथवा किसी नये तथ्य की खोज द्वारा ज्ञान कोष मे वृद्धि की जाती है। 
स्पष्ट है की सामाजिक तथ्यों,घटनाओं एवं सिद्धांतों के सम्बन्ध मे नवीन ज्ञान की प्राप्ति हेतु प्रयोग मे लायी गयी वैज्ञानिक पद्धति ही सामाजिक अनुसंधान हैं।
दुसरे शब्दों मे, सामाजिक अनुसंधान का अर्थ सामाजिक अनुसंधान या सामाजिक शोध जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है- सामाजिक जीवन के बारे मे नवीन तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने से सम्बंधित हैं।
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सामाजिक अनुसंधान की परिभाषा (samajik anusandhan ki paribhasha) 

मोजर के शब्दों में, "व्यवस्थित जानकारी, जो सामाजिक घटनाओं और समस्याओं के सम्बन्ध में की जाती है, सामाजिक शोध कही जाती हैं।"
यंग के अनुसार," सामाजिक तथ्य परस्पर-सम्बंधित प्रक्रियाओं की विधिवत् खोज और विश्लेषण सामाजिक शोध है।"
कुक के शब्दों में," किसी समस्या के संदर्भ मे ईमानदारी, विस्तार तथा बुद्धिमानी से तथ्यों, उनके अर्थ तथा उपयोगिता की खोज करना ही शोध है।"
मुनरो के अनुसार," शोध उन समस्याओं के अध्ययन की एक विधि है जिन्हें अपूर्ण अथवा पूर्ण समाधान तथ्यों के आधार पर ढूँढ़ना है।"
सी. वी. गुडे के अनुसार," आदर्श रूप मे अनुसंधान एक समस्या का सावधानीपूर्वक और निष्पक्ष भाव से किया गया अध्ययन होता है जो तथ्यों की भिन्नता, उनके स्पष्टीकरण व सामान्यीकरण पर निर्भर होता है।"
जी.एम. फिशर के अनुसार," किसी समस्या को हल करने अथवा एक परिकल्पना की परीक्षा करने अथवा नई घटना या नये संबंधो को खोजने के उद्देश्य से सामाजिक परिस्थितियों मे उपयुक्त कार्य-विधि का प्रयोग करना ही सामाजिक शोध है।"
श्रीमती पी. वी. यंग के अनुसार," सामाजिक अनुसंधान अथवा शोध को एक ऐसे वैज्ञानिक प्रयास के रूप मे परिभाषित किया जा सकता है जिसका उद्देश्य तार्किक और क्रमबद्ध पद्धतियों के द्वारा नये तथ्यों का अन्वेषण अथवा पुराने तथ्यों की परीक्षा और सत्यापन, उनके क्रमों, पारस्परिक संबंधो, कार्य-कारण की व्याख्या तथा उन्हें संचालित करने वाले स्वाभाविक नियमों का विश्लेषण करना है।"
बोगार्डस के अनुसार," साथ-साथ रहने वाले व्यक्तियों के जीवन में क्रियाशील अन्तर्निहित प्रक्रियाओं की जानकारी प्राप्त करना ही सामाजिक अनुसन्धान है।"
समाज विज्ञान ज्ञानकोष के अनुसार," अनुसन्धान वस्तुओं, अवधारणाओं तथा प्रतीकों आदि को कुशलतापूर्वक व्यवस्थित करना है, जिसका उद्देश्य सामान्यीकरण द्वारा ज्ञान का विकास, परिमार्जन अथवा सत्यापन होता है, चाहे वह ज्ञान व्यवहार में सहायक हो अथवा कला में।"
कुक के अनुसार," किसी समस्या के संदर्भ में ईमानदारी, विस्तार तथा बुद्धिमानी से तथ्यों, उनके अर्थ तथा उपयोगिता की खोज करना ही अनुसन्धान है।"
क्रॉफोर्ड के अनुसार," अनुसन्धान किसी समस्या के अच्छे समाधान के लिए क्रमबद्ध तथा विशुद्ध चिन्तन एवं विशिष्ट उपकरणों के प्रयोग की एक विधि है।
हिटने के अनुसार," समाजशास्त्र अनुसंधान में मानव-समूह के सम्बन्धों का अध्ययन होता है।" 
गुड के अनुसार," आदर्श रूप में अनुसंधान एक समस्या का सावधानीपूर्वक और निष्पक्ष भाव से किया गया अध्ययन होता है जो तथ्यों की भिन्नता, उनके स्पष्टीकरण तथा सामान्यीकरण पर निर्भर करता है।"
फिशर के अनुसार," किसी समस्या को हल करने अथवा एक परिकल्पना की परीक्षा करने अथवा नयी घटना या नये सम्बन्धों को खोजने के उद्देश्य से सामाजिक परिस्थितियों में उपयुक्त कार्यविधि का प्रयोग करना ही सामाजिक अनुसंधान है।"
संक्षेप में," सामाजिक अनुसंधान वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सामाजिक घटनाओं और सामाजिक समस्याओं के कारण इनके अन्तःसम्बन्धों का ज्ञान, उनमें निहित प्रक्रियाओं का अध्ययन, विश्लेषण और तदनुसार परिणामों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।"
समाज में अनेक प्रकार की समस्याएँ होती हैं, हम इन समस्याओं का निदान करना चाहते हैं। समस्याओं के निदान के लिए व्यवस्थित ज्ञान की आवश्यकता होती। सामाजिक अनुसन्धान के माध्यम से सामाजिक समस्याओं के सम्बन्ध में हमें व्यवस्थित ज्ञान की प्राप्ति होती है। उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है कि अनुसंधानकर्ता के निरन्तर प्रयोग तथा प्रयत्न से जो ज्ञान की वृद्धि करे, अनुसंधान कहलाता है । शोध नूतन ज्ञान की प्राप्ति तथा उपलब्ध ज्ञान की व्याख्या करता। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें तथ्यों का अवलोकन, वर्गीकरण, साधारणीकरण तथा सत्यापन के चरण क्रम से होते हैं। अनुसंधान एक ऐसा प्रयत्न है जिसमें नवीन ज्ञान की खोज तथा उपलब्ध ज्ञान में परिवर्तन भी मालूम करना होता है।

सामाजिक अनुसंधान की विशेषताएं (samajik anusandhan ki visheshta)

सामाजिक अनुसंधान की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. सामाजिक जीवन से सम्बंधित
सामाजिक शोध सामाजिक जीवन से सम्बंधित होता हैं। सामाजिक शोध के अन्तर्गत सामाजिक जीवन के समस्त पहलुओं का अध्ययन किया जाता हैं।
2. पारस्परिक सम्बन्धों की खोज
समाज मे अनेक प्रकार की सामाजिक घटनाएं अलग-अलग दिखाई देती हैं, किन्तु आन्तरिक दृष्टि से ये घटनाएं अन्त:सम्बंधित है। सामाजिक शोध मे इन्हीं अन्त: सम्बंधित कारको की खोज की जाती है।
3. विश्वसनीय ज्ञान की प्राप्ति
सामाजिक अनुसंधान मे हमें नवीन ज्ञान तो प्राप्त होता ही है, साथ ही ऐसा ज्ञान भी प्राप्त होता है, जिस पर विश्वास किया जा सके।
4. सामाजिक प्रगति मे सहायक
समाज मे निरन्तर परिवर्तन हो रहे है। इन परिवर्तनों से समाज का विकास होना तो स्वाभाविक है, किन्तु समाज की प्रगति तभी सम्भव है, जब विकास को सामाजिक कल्याण की दृष्टि से किया जाये और प्रगति का मूल्यांकन किया जा सके।
5. नवीन और प्राचीन तथ्यों की खोज
सामाजिक शोध के माध्यम से सामाजिक जीवन से सम्बंधित तथ्यों की खोज जाती है। तथ्यों को दो भागों मे विभाजित किया जा सकता है। प्राचीन और नवीन समाजशास्त्र के अन्तर्गत व्यक्ति और समाज का अध्ययन किया जाता है। ये दो दोनों ही गतिशील है। इस गतिशील प्रकृति के कारण प्राचीन तथ्यों को नवीन परिस्थितियों मे लागू करना पड़ता है।
6. पुराने तथ्यों का पुनर्सत्यापन
समाजशास्त्र की विधि केवल नवीनतम या घटनाओं की खोज में ही नहीं है। समाज गतिशील है इसलिए यह आवश्यक है कि समाज से संबंधित उन तथ्यों का भी समय-समय पर पुनर्सत्यापन किया जाए जो कि हमें पहले से ही ज्ञात है। ऐसा करने से हमें यह ज्ञात होता है, कि उन तथ्यों की वर्तमान स्थिति क्या है? एवं पहले की तुलना में उनमें क्या परिवर्तन गठित हुए हैं? इससे यह सुनिश्चित करने में विश्वास है कि वर्तमान अवस्थाओं के संदर्भ में कहां तक उपयोगी है अथवा उनके किस पक्ष में क्या परिवर्तन अपेक्षित है यथा पहले से ही विदित तथ्यों का पुनः सत्यापन भी सामाजिक अनुसंधान के अंतर्गत किया जाता है।
7. सामाजिक अनुसंधान की प्रकृति वैज्ञानिक है
सामाजिक अनुसंधान में समाज से संबंधित नवीन तथ्यों की खोज करने में पूर्व से विदित तथ्यों को सत्यापित करने के लिए अनुमापन, कल्पना, तथा दर्शन का सहारा ना लेकर निरीक्षण, परीक्षण, प्रयोग विश्लेषण और निष्कर्ष निरूपण पर आधारित वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग किया जाता है।
8. सामाजिक अनुसंधान अनुभवपरक है
सामाजिक अनुसंधान का कार्य कहीं सुनी-सुनाई बातों पर आधारित ना होकर अध्ययन करता के द्वारा स्वयं अनुभव किए जाने वाले अथवा ज्ञात किए जाने वाले तथ्यों पर आधारित होता है।
9. सामाजिक सिद्धांतों के निरूपण मे सहायक
सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करने अथवा पूर्व से ही ज्ञात तथ्यों को पुनः सत्यापित करने की प्रक्रिया में सामाजिक अनुसंधान के मध्य से अनेक नवीन सिद्धांतों की स्थापना में सहायता मिलती है। सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक व्यवस्था, संरचना एवं प्रकारों के तथ्यों से संबंधित अधिक सिद्धांत सामाजिक अनुसंधान के ही परिणाम है।
10. सामाजिक अनुसंधान का सैद्धांतिकी व प्रकार्यात्मक उपयोग
सामाजिक अनुसंधान के माध्यम से सामाजिक घटनाओं का कार्य-कारण आत्मक अध्ययन कर जहां समाज से संबंधित नवीन तथ्यों की जानकारी मिलती है। वही सामाजिक समस्याओं के निराकरण के उपाय भी ज्ञात होते हैं इस प्रकार सामाजिक अनुसंधान सामाजिक व्यवस्था और सामाजिक प्रगति में सहायता करता है। यही सामाजिक अनुसंधान का प्रकार्यात्मक या व्यवहारिक पक्ष हुआ। दूसरी ओर सामाजिक अनुसंधान के माध्यम से सामाजिक व्यवस्था, जड़ता, परिवर्तन, समाज के संस्थात्मक ढांचे, प्रगति आदि के विषय में सिद्धांतों की स्थापना में भी सहायता मिलती है।
11. सामाजिक घटनाओं के संबंध मे कार्य कारणात्मक विवेचन करना
कोई भी सामाजिक घटना ना तो बिना किसी कारण के घटित होती है और ना ही कोई घटना परिणाम रहित होती है। उदाहरण स्वरुप शासन के द्वारा आरक्षण नीति लागू करने के पीछे कुछ निश्चित उद्देश्य कारण रहे हैं। इसी प्रकार आरक्षण की नीति कार्यान्वित करने का प्रभाव आरक्षण के कारण लाभन्वित हुए लोगों पर तथा शेष समाज पर भी पड़ा है। सामाजिक अनुसंधान के माध्यमों से किसी सामाजिक घटना के लिए उत्तरदाई कारणों तथा उनके परिणामों के विषय में तथ्यात्मक जानकारी मिलती है।

सामाजिक अनुसंधान के प्रेरक तत्व 

सामाजिक अनुसंधान कोई सरल कार्य नहीं, बल्कि इसमें अनुसंधानकर्ता को समय, धन एवं परिश्रम तथा जिज्ञासा की आवश्यकता पड़ती हैं। सामाजिक अनुसंधान मे अनेक प्रेरक तत्व होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-- 
1. अज्ञात के प्रति जिज्ञासा 
श्रीमती पी.वी.यंग के अनुसार," जिज्ञासा मानव मस्तिष्क का मौलिक गुण हैं तथा मनुष्य पर्यावरण की खोज के लिए बहुत बड़ी चालक शक्ति हैं।" एक छोटा बालक भी शुरू से अनेक बातों को जानने का इच्छुक रहता हैं। व्यक्ति का भी यही स्वभाव है वह जानना चाहता है कि घटना कैसी घटी या घटनाओं के घटित होने का क्या कारण हैं। जिज्ञासा का वास्तविक अर्थ हैं नवीन तथ्य को जानने की प्रबल इच्छा। यही जिज्ञासा की प्रवृत्ति विज्ञान का आधारभूत लक्षण है जो सामाजिक अनुसंधान का प्रथम प्रेरक तत्व हैं। 
2. अप्रत्याशित परिस्थिति पैदा होना 
समाज में कभी-कभी ऐसी अप्रत्याशित परिस्थितियां पैदा होती हैं जो अनेक घटनाओं को जन्म देती हैं। हालांकि व्यक्ति उन घटनाओं के विषय में नही जानता, लेकिन ये घटनाएं उनके मन मस्तिष्क पर अत्यधिक दबाव डालती हैं। ये नवीन असाधारण परिस्थितियां सामाजिक अनुसंधान करने के लिए प्रेरक तत्व की भूमिका निभाती हैं। 
3. नवीन पद्धतियों की खोज 
सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करने हेतु कई पद्धतियों को अपनाना पड़ता हैं। इन पद्धतियों में सबसे अधिक उपयोगी पद्धति कौन-सी होगी, यह अनुसंधान के द्वारा ही स्पष्ट होता हैं। अतः नवीन पद्धतियों की खोज अनुसंधान की प्रेरक शक्ति का कार्य करती हैं। अनुसंधान की कुछ प्राचीन पद्धतियां भी होती हैं। क्या ये पद्धतियां अब भी उतनी ही उपयुक्त हैं जितनी पहले थी। यह अनुसंधान का महत्वपूर्ण विषय हैं। 
4. कार्य-कारण संबंधों को जानने की इच्छा 
श्रीमती पी. वी. यंग के अनुसार," कार्य-कारण संबंध को जानने की इच्छा किसी भी अन्य वैज्ञानिक प्रयास, जिन पर कि मानव शक्तियों का उपयोग हुआ हो, से अधिक शक्तिशाली हैं।" प्रत्येक समाज में कई प्रकार की समस्याएं विद्यमान होती हैं जिनसे व्यक्ति संबंधित रहता हैं। इन समस्याओं को हल करने के लिए व्यक्ति इन समस्याओं के कारणों, उनकी प्रकृति को जानना चाहता हैं। यही कारण हैं कि यह अनुसंधान का प्रेरक तत्व हैं। 

सामाजिक अनुसंधान की मान्यताएं 

सामाजिक अनुसंधान की निम्नलिखित आधारभूत मान्यताएं हैं-- 
1. प्रतिनिधित्व की संभावना 
यदि समाज में से कुछ इकाइयों को चुना जाये तो वे संपूर्ण समाज का प्रतिनिधित्व कर सकती हैं। इस प्रकार चुने हुए निर्देशन का अध्ययन संपूर्ण समाज पर लागू हो सकता हैं। यदि सामाजिक अनुसंधान की यह मान्यता नहीं हो तो अनुसंधान असंभव ही हैं। 
2. तटस्थता की संभावना 
सामाजिक अनुसंधान में अनुसन्धानकर्ता सामाजिक घटना का एक महत्वपूर्ण अंग होता हैं। उनकी भावनाएं, इच्छाएं, दृष्टिकोण आदि अनुसंधानकर्ता को निरन्तर प्रभावित करते हैं जो वैज्ञानिक अध्ययन में बाधा उत्पन्न करती हैं। अतः अनुसंधानकर्ता हमेशा तटस्थ होकर अनुसंधान करता हैं, जो सामाजिक अनुसंधान की आधारभूत मान्यता हैं। 
3. घटनाओं का निश्चित क्रम 
सामाजिक अनुसंधान की सर्वप्रथम मान्यता यह है कि सामाजिक घटनाएं अचानक घटित नहीं होती, बल्कि उनका एक निश्चित क्रम होता हैं। कोई भी सामाजिक घटना स्वतंत्र नहीं होती, वह किसी अन्य घटना पर आश्रित तथा संबंधित होती हैं। भविष्य के बारे में अनुमान लगाने हेतु घटनाओं के क्रम का ज्ञान अत्यंत आवश्यक हैं। 
4. घटनाओं में कार्य-कारण संबंध 
सामाजिक घटनाओं में हमेशा कार्य-कारण का संबंध होता हैं। सामाजिक अनुसन्धानकर्ता यह मानकर चलता हैं कि सामाजिक घटनाओं के कुछ कारण होते हैं। यदि हम चाहते हैं कि एक विशेष सामाजिक घटना घटित न हो तो हमें सबसे पहले उस कारण का पता लगाकर उसी का निराकरण करना चाहिए।
5. समान वर्गीकरण 
सामाजिक अनुसंधान की यह मान्यता है कि सामाजिक घटनाओं के विभिन्न तथ्य निःसंदेह अलग नहीं होते। अनेक तथ्यों में समानता होती हैं, इस समानता के आधार पर ही उनका वर्गीकरण होता हैं। यह वर्गीकरण घटना के समान तत्वों के आधार पर होते हैं।
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14 टिप्‍पणियां:
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  1. इसी तरह शॉर्ट अंसर चाहिए !!!

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  2. अनुमापन प्रविधियां क्या है
    प्रकार बताइए

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    उत्तर
    1. इस पर लेख लिखा जा चुका हैं, आप पढ़ सकते हैं।

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  3. बेनामी22/6/22, 2:50 pm

    Samajik anusandhan ke tathyon ke bare me bataye

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