11/27/2019

सविनय अवज्ञा आन्दोलन कारण, कार्यक्रम, महत्व एवं परिणाम

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सविनय अवज्ञा आन्दोलन 

नमस्कार दोस्तो स्वागत है आप सभी का। सन् 1929 ई. लाहौर कांग्रेस कार्यकारिणी ने गाँधी जी को यह अधिकर दिया कि वह सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारंभ करें। सन् 1930 ई. मे साबरमती आश्रम मे कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक हुई। इसमे यह पुष्टिकरण किया गया कि गाँधी जी जब चाहें और जैसे चाहे सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारंभ करें। इस तरह गांधी जी ने दाण्डी मार्च के साथ सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया। आज के इस लेख मे हम सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण, कार्यक्रम, परिणाम एवं महत्व पर चर्चा करेंगे।


सविनय अवज्ञा आन्दोलन
सविनय अवज्ञा आन्दोलन कारण, महत्व एवं परिणाम 

सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रमुख कारण 

1. साइमन कमीशन का बहिष्कार
साइमन कमीशन के बहिष्कार और जनता के उत्साह को देखते हुए कांग्रेस नेताओं को यह विश्वास हो चुका था कि अब जनता आन्दोलन हेतु तैयार हैं।
2. सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रारंभ होने का एक कारण यह भी था की सरकार ने नेहरू समिति की रिपोर्ट को ठुकरा दिया था।
3. सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कारण यह भी था कि कृषकों की दशा भी विश्वव्यापी मंदी के कारण काफि बिगड़ चुकी थी।
4. सन् 1922 मे असहयोग आंदोलन को एक दम से स्थगित किये जाने के कारण जनता मे तेजी से निराशा फैल चुकी थी। इसे दूर करना जरूरी था।
5. कांग्रेस ने सरकार से प्रार्थना की कि वह राजनीतिक बंदियों को मुक्त कर दे किन्तु सरकार ने इस पर किसी भी प्रकार का कोई ध्यान नही दिया।

6. नौकरशाही भी तेजी से बड़ रही थी।
7. सन् 1929 की आर्थिक मन्दी ने भारत को भी प्रभावित किया था। वस्तुओं के दाम बढ़ रहे थे। जनता मे इससे असंतोष था।
8. मजदूरों की दशा शोचनीय थी और  उनमे साम्यवादी विचारों का उदय हो रहा था।
9. क्रान्तिकारियों की गतिविधियाँ बढ़ रही थी, इसलिए गाँधी जी को चिन्ता थी कि कही देश पुनः हिंसात्मक प्रवृत्तियों की ओर न चला जाए।
10. इसके साथ ही गाँधी जी ने यह अनुभव किया कि यदि शीघ्र ही देश की स्वाधीनता के लिए अहिंसात्मक व शाक्तिपूर्ण ढंग से आन्दोलन प्रारंभ न किया गया तो देश मे हिंसात्मक क्रांति की सम्भावना बढ़ सकती हैं।
11. 31 दिसम्बर, 1929 को कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता का लक्ष्य रखा था, इसकी प्राप्ति के लिए भी आन्दोलन आवश्यक था।
संक्षेप मे आर्थिक दुर्दशा, राजनीतिक असंतोष और सकार के तीव्र दमनचक्र के कारण देश का वातावरण उग्र हो गया था जिसमे स्वाधीनता प्राप्ति के लिए कोई नया कदम उठाना आवश्यक हो गया था यह कदम था-- सविनय अवज्ञा आन्दोलन जिसे गाँधीजी ने 12 मार्च 1930 से अपनी दांडी यात्रा से शुरू किया। 
गांधीजी का वायराय को पत्र " गाँधी जी ने बढ़ती उमड़ती उग्र भावनाओं का उल्लेख करते हुए वायसराय को एक पत्र लिखा जिनमे न केवल अंग्रेजी राज्य की हिंसा बल्कि इस संगठित हिंसा का सामना करने के लिए सत्याग्रह की बात की। सत्याग्रह मार्च से शुरू हुआ।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन कार्यक्रम 

 गाँधी जी ने कहा शराब, अफिम और विदेशी कपड़ों की दुकानों पर स्त्रियाँ धरना दें। राज्य कर्मचारी सरकारी नौकरियों को छोड़ दें। विदेशी वस्त्रों की होली जलायी जाय। 12 मार्च 1930 में गाँधीजी ने 69 चुने साथियों के साथ-दांडी यात्रा शुरू की। 6 अप्रैल को प्रार्थन के बाद गाँधी जी ने समुद्र तट पर नमक बनाकर कानून को भंग किया। 9 मई को गाँधी जी को गिरफ्तार किये जाने से विद्यार्थी, शिक्षक, श्रमिक, व्यापारी, भारतीय सरकारी कर्मचारी सब स्वतंत्रता की मांग के साथ मैदान मै आ डटे।
दांडी यात्रा
आंदोलन नाटकीय ढंग से शुरू हुआ। नमक कानून तोड़ना तय हुआ और वह भी साबरमती से 200 मील दूर दांडी मे। 12 मार्च 1930 मे गाँधी जी ने 69 चुने साथियों के साथ दांडी यात्रा शुरू की। 24 दिन की इस यात्रा से गांव-गांव मे गाँधी जी के अभिनन्दन व्यक्तित्व के चुम्बक ने लोगों को अपनी ओर खींचा। नेहरू के शब्दों मे " लोगों ने ज्यों ज्यों दिन-प्रतिदिन कूच करती हुई यात्रियों को प्रगति को देखा, त्यों-त्यों देश का तापमान ऊंचा चढ़ता गया।
नमक कानून भंग 

6 अप्रैल को प्रार्थना के बाद गाँधी जी ने समुद्र तट पर नमक बनाकर कानून भंग किया। 9 मई को महात्माजी गिरफ्तार कर लिये गये। यह जैसे रणभेदी बज गया। विद्यार्थी, श्रमिक, शिक्षक, व्यापारी, सरकारी नौकर सब स्वतंत्रता की पुकार पर मैदान मे आ डटे और कांग्रेस ने कर बंदी, शराब बंदी, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार आंदोलन प्रारंभ कर दिया। सारे देश मे एक सशक्त जन आन्दोलन चलने लगा। 
गांधी-इर्विन समझौता 
स्वदेशी, बहिष्कार, कर अपवंचन और साथ ही क्रांतिकारीयों की बढ़ती कार्यवाही को देखते हुए ब्रिटिश शासन ने बन्दी नेताओं को छोड़ने का आश्वासन दिया बशर्ते की कांग्रेस सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित करे।  इस आधार पर गाँधी इर्विन समझौता हुआ। इसमे निम्नलिखित निर्णय हुए---
1.कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन मे हिस्सा लेगी।
2. इसमे एक ऐसे संविधान पर विचार हो सकेगा जो संघात्मक, उत्तरदायी एवं केवल भारतीय हितों के अनुकूल संरक्षण नीति को अपनायेगा।
3. शराब व अफीम बिक्री पर शान्तिपूर्ण तरोके से धरना दिया जा सकेगा।
4. ब्रिटिश माल का बहिष्कार नही किया जा सकेगा। 
दूसरी ओर सरकार 
1. अहिंसक आन्दोलनकारियों को रिहा करेगी।
2. दमनकारी अध्यादेशों एवं चालू मुकदमों को समाप्त करेगी।
3. समुद्र किनारे बसने वालों को करमुक्त नमक बनाने देगी।
4. भारतीयों की जब्त सम्पत्तियों को लौटाएगी।
5. त्यागपत्र दिए कर्मचारियों को वापस लेगी।
6. विदेशी शराब, अफीम आदि की दुकानों पर धरने पर रोक नही लगाएगी  

परन्तु शासन ने समझौते की शर्तों का पालन नही किया। मुस्लिम लीग और कांग्रेस की एकता हेतु गांधी जी के प्रयास भी विफल रहें।


सविनय अवज्ञा आन्दोलन आन्दोलन का महत्व एवं परिणाम 

गाँधी- इरविन समझौता 5 मार्च, 1931 के पश्चात सविनय अवज्ञा आन्दोलन समाप्त कर दिया गया था लेकिन द्वितीय गोलमेज सम्मेलन मे से निराशा के कारण गाँधी जी ने 3 जनवरी 1932 को सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुनः प्रारंभ कर दिया था। ब्रिटिश सरकार ने 14 जनवरी को गाँधी जी सहित आन्दोलन के प्रमुख नेताओं को बंदी बना लिया। 8 मई को 1933 को आत्मशुध्दि हेतु गांधी जी ने 21 दिनो के लिए जेल मे उपवास रखा। उसी दिन गाँधी जी को जेल से रिहा कर दिया गया। गाँधी जी ने 24 जनवरी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन को अन्तिम रूप से समाप्त कर दिया।

मोटे तौर पर देखा जाए तो सविनय अवज्ञा आन्दोलन बिना किसी विशेष सफलता के ही समाप्त होने जैसे प्रतीत होता हैं लेकिन अगर हम गम्भीरता से देखे तो इस आन्दोलन को अनेक उल्लेखनीय सफलताएं प्राप्त हुई थी। तत्कालीन गवर्नर जनरल इरविन देशव्यापी आन्दोलन की तीव्रता से अत्यधिक चिन्तातुर हो गया और उसने भारत सचिव पर संवैधानिक सुधारों की घोषणा करवाने एवं गोलमेज परिषद बुलाकर विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श के लिए दबाव डाला। 1935 का अधिनियम पारित कराने का श्रेय सविनय अवज्ञा आन्दोलन को ही हैं। इस आन्दोलन से पूरे भारत को एकजुट कर दिया था इस आन्दोलन मे बड़ी संख्या मे कृषकों, मजदूरों एवं स्त्रियों सभी ने बढ़ चढ़कर भाग लिया था।

वेल्स फोर्ड ने लिखा हैं ", भारतीय जनता अब मुक्त हो गयी है। अपने दिलों मे उसने आजादी प्राप्त कर ली हैं।
डाॅ पट्टाभि सीता रमैय्या के शब्दों में ," पुलिस वालों ने औरतों को गिराकर अपने बूटों से उनके सीने कुचलकर आखिरी नरक के दर्शन कराये।" इस आन्दोलन ने नारी शक्ति को संचित करने का कार्य किया। सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारणों, महत्व या परिणाम को लेकर आपका कोई सवाल हैं तो कृपया कर comment कर जरूर बताएं।

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