10/22/2019

अपराध का अर्थ, परिभाषा और कारण

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apradh arth paribhasha karan;अपराध हर समाज एवं राष्ट्र के लिए एक गंभीर समस्या है। अपराध की यह प्रक्रिया युगों-युगों से चल आ रही है। जिसमें मे से बाल अपराध की समस्या तो और भी भयावह एवं गंभीर समस्या है। कानूनी दृष्टी कोण अपराध का अर्थ कानून विरोधी कार्य करना ही अपराध है जब यह अपराध को बालक करता है तो उसे हम बाल अपराधी के नाम से जानते है। आज के इस लेख मे हम अपराध का अर्थ, परिभाषा और अपराध के कारण के बारें मे चर्चा करेंगे।
अपराध
अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश अपराधी किसी कारण वश या मजबूरी में ही अपराध को अंजाम देते है। लेकिन कुछ अपराधी ऐसे भी होते है जिन्हें ना तो सामाज का भय होता है और ना ही राज्य के कानून का ऐसे अपराधी ही गंभीर अपराधों को अंजाम देते है।

     अपराध का अर्थ (apradh ka arth)

समाजशास्त्री दृष्टिकोण से अपराधी या बाल अपराधी वह है जो समूह द्वारा स्वीकृत किसी कार्य को करने का अपराधी हो, जो अपने विश्वास को लागू करने की शक्ति रखता हो, जिसे समाज हेतु खतरनाक समझकर उसे रोका जाना अवयश्क हो गया हो। 
अपराध का अस्तित्व समाज मे अनादि काल से प्रचलित रहा हैं। प्रारंभिक आदमी समाजों मे लोकरीतियां, प्रथाएं, व्यक्ति के आचरण को नियंत्रित करती थी एवं इनका उल्लंघन करने पर समूह के द्वारा दण्ड का विधान निश्चित किया जाता हैं था। आधुनिक जटिल समाजों मे व्यक्ति के आचरण को नियंत्रित करने पर किसी भी व्यक्ति के व्यवहार को दण्डिनीय अपराध माना जाता हैं। अपराध क्या हैं? इसे समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से समझने के लिए विभिन्न विद्वानों द्धारा अपराध की परिभाषाओं को जान लेना आवश्यक हैं।

अपराध की परिभाषा (apradh ki paribhasha)

सदरलैण्ड के अनुसार अपराध की परिभाषा; "अपराध सामाजिक मूल्यों के लिये ऐसा घातक कार्य है जिसके लिये समाज दण्ड की व्यवस्था करता है।
थोर्सटन सेलिन के अनुसार; अपराध मानवीय समूहों के व्यवहार के आदर्श नियमाचारों का उल्लंघन हैं।
डैरो के अनुसार; अपराध एक ऐसा कार्य है जो कि देश मे कानून के द्वारा निषिद्ध हो और जिसके लिए दण्ड निर्धारित हो।
पाॅल टप्पन के अनुसार; एक सभिप्राय कार्य है या अनाचरण है जो दण्ड कानून का उल्लंघन करता हैं।
डां. सेथना के अनुसार अपराध की परिभाषा; "अपराध कोई भी वह कार्य अथवा त्रुटि है जो किसी विशेष समय पर राज्य द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार दण्डनीय हैं।
बर्ट के अनुसार बाल अपराध की परिभाषा; "उन बालकों को बालापराधी कहते हैं जिसकी समाज विरोधी प्रवृत्तियां इतनी गम्भीर हो जाती हैं कि उनके प्रति सरकारी कार्यवाही जरेरी हो जाती है।"

अपराध का वर्गीकरण 

कानूनी के दृष्टिकोण से अपराध दो प्रकार के होते हैं----
1. सामान्य अपराध 
सामान्य अपराध वे अपराध होते है जिनसे समाज को बहुत अधिक हानि की संभावना कम होती हैं। ऐसे अपराधों में शामिल हैं, शराब पीकर झगड़ा करना, यातायात के नियमों का उल्लंघन करना, साधारण चोरी आदि। यनि कि छोटे-मोटे अपराधों को इस श्रेणी मे रखा जा सकता हैं। समान्य अपराधी को कारावास, जुर्माना जैसे दण्ड दिये जा सकते हैं।
2. गंभीर अपराध 
गंभीर अपराध वह अपराध होते है जिसने संपूर्ण  समाज को खतरा होता हैं। गंभीर अपराधों में आतंकवादी गतिविधियां, हत्या करना, अपहरण करना, बलात्कार करना। गंभीर अपराध करने वाले अपराधी को उम्र केद, या फांसी की सजा तक दी जा सकती हैं।
कोई भी व्यक्ति किसी भी रूप में अपराध क्यों करता है? इसके अनेक कारण हो सकते है। कुछ लोग जन्म से ही अपराधी बन अपराधी होते है तो कुछ लोग परिस्थतियों वश आगे चलकर अपराधी बन जाते है।  अपराध के विषय में मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि व्यक्ति के अंदर हीनभावना का विकास अपराधी भावनाओं को जन्म देता है। अपराध के प्रमुख कारण इस प्रकार है---

अपराध के कारण (apradh ke karna)

व्यक्ति अपराध क्यों करता है? यह प्रश्न बहुत ही सरल एवं सामान्य है। शताब्दियों से व्यक्ति स्वयं तथा इस समाज से यह प्रश्न पूछता रहा है। किंतु इसका उत्तर भिन्न-भिन्न विचारकों ने भिन्न भिन्न प्रकार से दिया है। धर्म के पंडितों ने अपराध का कारण धर्म का ह्रास कहा। नैतिकशास्त्र के विद्वानों ने अपराध के कारण को अनैतिकता में देखने का प्रयत्न किया। अर्थशास्त्रियों ने अपराध के कारण को आर्थिक व्यवस्था में ढूंढने का प्रयत्न किया। मनोवैज्ञानिकों ने अपराध की पृष्ठभूमि में मनोवैज्ञानिक कारण ज्ञात करने की चेष्टा की। इस तरह प्रत्येक विषय के विद्वानों ने अपराध के कारण को अलग-अलग दृष्टि से देखा और उसका उत्तर दिया है। इसलिए अपराध विषयक बहुत अच्छे लेख पुस्तके, रिपोर्ट, शोध कार्य आदि प्रकाशित हो चुके हैं और प्रकाशित हो रहे हैं।
अपराध शास्त्र एवं समाजशास्त्रियों ने जितना इसका अध्ययन किया उतना ही यह और और गुढ़ बनता गया।  जितना इसका उत्तर देने का प्रयत्न किया उतना ही यह अनुत्तरित रहा। इसलिए सभी विद्वान अपराध के किसी एक कारण को बताने में असमर्थ रहे हैं क्योंकि व्यक्ति का व्यवहार, विचार, आदतें आदि स्थाई ना होकर परिवर्तनशील है उसका स्वभाव विचार परिस्थितियों के अनुसार निरंतर परिवर्तित होता जाता है। व्यक्ति का व्यवहार एवं विचार किस समय कैसा हो जाए यह कोई भी नहीं जानता। अतः अपराध व्यक्ति के ऐसे जटिल व्यवहारों की अभिव्यक्ति है जिसे किसी एक कारण के अंतर्गत रखकर नहीं समझा जा सकता। 
अपराध के निम्न कारण  है--
1. व्यक्तिगत कारण 
अपराध करने के कुछ व्यक्तिगत कारण भी होते है। जिन व्यक्तियों के माता-पिता अपराधी व्यवहार में संलग्न हो तो उनके बच्चो द्वारा भी अपराध करने की संभावना बड़ जाती है। माता-पिता द्वारा अपने बच्चों अच्छी परवरिश या अवश्यकताओं की पूर्ति न करना या  फिर नैतिक शिक्षा न दे पाना भी अपराध कारण हो सकता है।
2. आर्थिक कारण 
निर्धनता अपराध का सबसे मुख्य कारणों मे से एक है। व्यक्ति अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने में अपने आपको जब असर्मथ पाता है तो वह अपराधी गतिविधियों की और बढ़ने लगता है। उदाहरण को तौर पर औद्योगीकरण और नागरीकरण के कारण मलिन बस्तियां पनपती है। ग्रामीण लोग रोजगार के लिए उद्योगों में काम करने के लिये आते है लेकिन कम आय के कारण उनकी पत्नी- बच्चों का भरण-पोषण नही हो पाता और समुचित आवास की व्यवस्था भी नही हो पाती तो स्थानों पर अधिकांशतः अपराधी प्रवृत्ति पनपने लगती है।
3. पारिवारिक और सांस्कृतिक कारक
परिवार का स्वरूप व्यक्ति के जीवन के संतुलन का आधार होता है। यदि परिवार संगठित है तो व्यक्ति भावनात्मक रूप से स्थिर व संतुलित जीवन प्राप्त करने में सफल होता है। लेकिन टूटे और विघटित परिवार संघर्ष और कलह को जन्म देते है, जिनकी से व्यक्ति संवेगात्मक रूप से अस्थिर एवं कुसमायोजित व्यक्तित्व के रूप मे कार्य करता है। अधिकांश बाल अपराधी टूटे और विघटित परिवारों से संबंधित होते हैं। संतुलित वैवाहिक जीवन न होने पर भी अपराधी की संभावना बढ़ जाती है। तलाकशुदा व अविवाहित व्यक्तियों मे तुलनात्मक रूप से अपराध की दर अधिक पायी जाती हैं।
4. चलचित्र
चलचित्र मनोरंजन का मुख्य साधन माने जाते है। लेकिन यह व्यक्ति के सामने उच्च आदर्श पेश नही कर पाते। बहुत से लोग सिर्फ अपनी अतृप्त कामुकता को शान्त करने हेतु चलचित्रों में जाते है। इन चलचित्रों में  कई तरह के समाज विरोधी कार्य दिखाये जाते है जिससे व्यक्ति के मस्तिष्क पर इसका बूरा प्रभाव पड़ता है।
5.अनैतिक वातावरण
अनैतिक वातावरण भी अपराध का कारण हो सकता हैं। जनसंख्या वृद्धि से घनी आबादी के कारण सघन बस्तियों का जन्म हुआ। ऐसी बस्तियों मे अनैतिक वातावरण की संभावनाएँ अधिक होती हैं। जैसे-- जुआ, शराब और संगठित गिरोह जैसे अपराध ऐसे स्थानों मे अधिक पनपते हैं।
 6. शारीरिक विकार 
शारीरिक विकारों में अंधे, बहरे, एवं विकलांगों या विकृत आकृति वाले लोगो को शामिल किया जा सकता है। ऐसे लोगों में हीनता की भावना पनपती है और वह आपराधी गतिविधों की और बढ़ने लगते है।
7. मनोवैज्ञानिक कारण 
अपराध के मनोवैज्ञानिक कारण भी होते है। प्रेम में असफलता, सामाजिक जीवन असफलता, आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने मे असमर्थ होना, परिवार में उपेक्षा, समाज द्वारा बहिष्कार आदि जैसे अनेक कारण है जो व्यक्ति के जीवन को हीनता का बोध करते है। इस कारण व्यक्ति कभी हिंसा तो कभी प्रतिशोध तो कभी मानसिक उद्वेग उसके अपराधी व्यवहार का कारण बन जाता है।
8. सामाजिक विघटन
सामाज का निर्माण विभिन्न ईकायों जैसे व्यक्ति, परिवार, समिति, संस्था, समूह आदि से होता है और जब यह अपने दायित्वों का निर्वाह नही करती तो सामाज का विघटन होने लगता है। इस प्रकार सामाजिक विघटन की प्रक्रिया समाज में अपराधों को जन्म देने से बनती है।
9. मद्यपान
असंख्य अपराधी ऐसे हैं जिन्होंने नशे की दशा में सामान्य अपराध से लेकर गंभीर अपराध तक किए हैं। एक व्यक्ति जो मद्यपान कर रहा है वह एक सीमा तक संतुलित रहता है किंतु जब वह इसका अत्यधिक सेवन कर लेता है तो उसके मस्तिष्क का संतुलन नष्ट हो जाता है। उसको अपने होशो-हवास का बिल्कुल ध्यान नहीं रहता। नशे की दशा में वह बिना बात ही दूसरों से लड़ने और झगड़ने लगता है। कभी-कभी वह गंभीर अपराध तक कर बैठता है। मद्यपान करने वाला अपराधी अनेक प्रकार के अपराध करता है जैसे-- लड़ने झगड़ने संबंधित अपराध, कत्ल, आत्महत्या, डकैती, मारपीट इत्यादि। बैने का विचार है," कि नशे में व्यक्ति के अंदर चिंता करने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है और उसे प्राप्त होने वाले दर्द का पूर्व ज्ञान भी नहीं के समान ही होता है।
10. समाचार पत्र 
आधुनिक युग में समाचार पत्र एक ऐसा माध्यम है जिससे हमें देश एवं विदेश के समाचारों का ज्ञान प्राप्त होता है। समाचार पत्रों में जहां एक और गंभीर राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक घटनाओं, समस्याओं तथा विचारधारा आदि की व्याख्या होती है। वहीं दूसरी ओर अपराध संबंधी छोटी-बड़ी घटनाओं का वर्णन होता है। समाचार पत्र समय-समय पर रहस्यमई अपराधों की व्याख्या इतने रोचक ढंग से करते हैं कि पाठक उस अपराध की घटनाओं को बड़ी रुचि के साथ पढ़ता है और पढ़कर अन्य व्यक्तियों को बताता है कि अमुक अपराधी की जीवनी तथा उसके अपराध का संपूर्ण विवरण निकाला है इस प्रकार के विवरण से अपराधी बनने की प्रेरणा मिलती है।
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