8/20/2023

औद्योगीकरण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

By:   Last Updated: in: ,

प्रश्न; औद्योगीकरण किसे कहते हैं? औद्योगीकरण की विशेषताएं लिखिए। 

अथवा", औद्योगीकरण का क्या अर्थ हैं? औद्योगीकरण को परिभाषित कीजिए। 

अथवा", औद्योगीकरण की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।

अथवा", औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं। औद्योगीकरण के उद्देश्य बताइए। 

अथवा", औद्योगीकरण के सामाजिक और आर्थिक परिणामों की विवेचन कीजिए। 

अथवा", औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप भारतीय समाज पर पड़ने वाले आर्थिक और सामाजिक प्रभावों की व्याख्या कीजिए। 

अथवा", औद्योगीकरण के दुष्परिणामों का वर्णन कीजिए। 

अथवा", औद्योगीकरण के उत्पन्न दुष्परिणाम को रोकने हेतु सुझाव दिजिए। 

उत्तर--

औद्योगीकरण का अर्थ (audyogikaran kya hai)

संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिर्पोट के अनुसार, "औद्योगीकरण से तात्पर्य बड़े-बड़े उद्योगों के विकास तथा छोटे और कुटीर उद्योगों-धंधों के स्थानों पर बड़े पैमाने की मशीनों की व्यवस्था से है।
औद्योगीकरण एक प्रकार की प्रक्रिया है। जिसके अन्तर्गत लोग पुरानी पद्धितियों को त्याग देते है और उसके स्थान पर आधुनिक अधिक सरल, अधिक उत्पादक तकनीकी साधनों का प्रयोग करते हैं। औद्योगिकरण से अभिप्राय मशीनीकरण अथवा यान्त्रिक विकास से है। आधुनिक समाज में उद्योग संबंधित कार्य ही नही अपितु गृह-कार्य में भी तकनीकी विकास का महत्वपूर्ण योगदान हैं। वास्तव में औद्योगिकरण आधुनिक युग की एक आवश्यक प्रक्रिया हैं।
औधोगिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे आधुनिकतम प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाता है और जिसका उद्देश्य उत्पादन के साधनों मे वृद्धि करना, मनुष्यों के श्रम की जगह मशीनों पर निर्भर करना और कम से कम मेहनत मे जीवन स्तर को ऊपर उठाना होता है। इसके माध्यम से मनुष्यों की मशीन पर निर्भरता बढ़ती है और प्रकृति पर मनुष्यों के नियंत्रण मे वृद्धि होती है। औधोगिकरण कोई ऐसी प्रक्रिया नही है जो कल-कारखानों तक ही सीमित रहती है बल्कि यह मूलतः एक आर्थिक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत मशीनों के माध्यम से उत्पादन मे वृद्धि की जाती है।
औद्योगीकरण और नागरीकरण एक सिक्के के पहलू हैं अर्थात् औद्योगीकरण और नगरीकरण से उत्पन्न सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभावों में कोई भिन्नता नही है। औद्योगीकरण की प्रक्रिया से नगरों का विकास तेजी से होता है। जिस स्थान पर औद्योगीकरण होता है वहा लोग रोजगार के लिए आने लगते है और जनसंख्या में बढ़ोतरी होने गलती है।

औद्योगिकरण की परिभाषा (audyogikaran ki paribhasha)

अनेक विद्वानों औद्योगिकीकरण को परिभाषित करने का प्रयत्न किया हैं, जिनमें से औद्योगिकीकरण की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-- 
पी. कांग-चांग के अनुसार," औद्योगिकीकरण से अर्थ उस प्रक्रिया से है, जिसके अंतर्गत उत्पादन कार्यों में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते रहते है। इनमें वे आधारभूत परिवर्तन भी है, जिनका संबंध किसी औद्योगिक उपक्रम के यंत्रीकरण, नवीन उद्योगों के निर्माण, नये बाजार की स्थापना तथा किसी नवीन क्षेत्र के विदोहन से हो। यह एक तरह के पूँजी को गहन (deepening) और व्यापक (widening) बना देने की विधि हैं।" 
यामे के अनुसार," विस्तृत अर्थों में औद्योगिकीकरण आर्थिक विकास तथा रहन-सहन के स्तर में सुधार की कुंजी माना जाता हैं। प्रचलित विचारधारा के अनुसार निर्माण उद्योग के रूप में औद्योगिकीकरण को आर्थिक स्थिरता लाने एवं निर्धनता को दूर करने की संजीवनी माना गया है।" 
नेहरू जी के शब्दों में," सभी राष्ट्र जिस देवता की आराधाना करते हैं, वह देवता है-- औद्योगिकीकरण, वह देवता है- मशीन, वह देवता है- विशाल उत्पादन और प्राकृतिक शक्ति एवं संसाधनों के अधिकाधिक लाभप्रद उपयोग का।" 
मामोरिया के अनुसार," औद्योगिकीकरण एक प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत उत्पादन कार्यों से संबंधित अनेक परिवर्तन होते रहते हैं। इसके अंतर्गत वे मौलिक परिवर्तन आते है, जिसके अंतर्गत किसी व्यावसायिक साहस का यंत्रीकरण, नवीन उद्योग की स्थापना, नये बाजार की खोज एवं किसी नए क्षेत्र का शोषण होता है। संक्षेप में, औद्योगिकीकरण एक साधन है, जिसके द्वारा पूँजी का निरंतर विकास किया जाता हैं।"
राष्ट्र संघ के अनुसार," औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया केवल निर्माण उद्योगों तक ही सीमित नही है, अपितु इसके द्वारा किसी भी देश की संपूर्ण आर्थिक संरचना परिवर्तित की जा सकती हैं।"
पी. टी. बौरा और बी. एस. एमे के अनुसार," औद्योगिकीकरण व्यापक रूप से आर्थिक विकास और रहन-सहन के स्तर में सुधार की कुंजी माना जाता हैं। निर्माण उद्योग के रूप में, प्राचीन विचारधारा के अनुसार औद्योगिकीकरण को आर्थिक स्थिरता व निर्धनता के समाधान के लिए संजीवनी माना गया हैं। वस्तुतः निर्माण उद्योग केवल एक प्रकार की आर्थिक क्रिया हैं।" 
गुनर काटडिल के शब्दों में," निर्माण उद्योग एक अर्थ में उत्पादन के उच्चतर स्तर का प्रतिनिधित्व करते हैं। विकसित देशों में निर्माण उद्योगों का विकास चमत्कारिक आर्थिक विकास और रहन-सहन के स्तर का प्रतीक है। अल्पविकसित देशों में भी उद्योग में श्रमशक्ति की उत्पादकता परंपरागत कृषि-कार्यों से पर्याप्त अधिक है। औद्योगिकीकरण और उद्योग में संलग्न व्यक्तियों की उन्नति प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय-आय मे वृद्धि करने का एक साधन हैं।"
एक परिभाषा में कहा गया है कि," औद्योगीकरण वह प्रक्रिया है जो न केवल मूलभूत निर्माण उद्योगों की स्थापना करता है अपितु वह समाज की सम्पूर्ण आर्थिक पृष्ठभूमि को भी परिवर्तित करता है।"
मिर्डल ने लिखा है कि," औद्योगीकरण का प्रत्यक्ष सम्बन्ध उत्पादकता से है और दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते है। जहाँ औद्योगीकरण के कारण उत्पादन की दर तथा मात्रा प्रभावित होती है वही पर अधिक उत्पादन स्वयं
औद्योगीकरण की प्रक्रिया को तीव्र करता है।"
वास्तव में संकुचित अर्थ में औद्योगीकरण का तात्पर्य है-- निर्माण उद्योगों को अधिक से अधिक स्थापित किया जाये, जिससे एक तरफ उत्पादन के साधनों की क्षमता में वृद्धि हो सके तथा उनका अधिकतम् उपयोग किया जा सके और दूसरी तरफ जन-जीवन स्तर को भी उठाया जा सके। व्यापक अर्थ में 'औद्योगीकरण' से आशय यंत्रों तथा नवीनतम तकनीकी ज्ञान एवं प्रयोग, शक्ति में वृद्धि, वैज्ञानिक औद्योगीकरण संगठन, विधि के उपयोग और बड़े पैमाने पर पूँजी के विनियोग से है, इसमें अन्ततः श्रम-विभाजन, अर्थ-व्यवस्था का वितरण और विनिमय प्रणाली भी आ जाती हैं। इस तरह हम कह सकते है औद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें आधुनिकतम तकनीकी ज्ञान का प्रयोग किया जाता है जिसका उद्देश्य है नवीन उद्योग की स्थापना करना, श्रम और विभिन्न प्रकार के उत्पादन के साधनों का प्रयोग और आर्थिक साधनों में सुधार करना जिससे जन-जीवन का स्तर ऊपर उठ सके।

औद्योगीकरण की विशेषताएं (audyogikaran ki visheshta)

औद्योगीकरण की उपर्युक्त परिभाषाओं को जानने के बाद औद्योगीकरण की निम्नलिखित विशेषताएं स्पष्ट होती हैं-- 
1. औद्योगीकरण का आर्थिक और औद्योगिक क्रियाओं से सीधा संबंध है। 
2. औद्योगीकरण एक प्रक्रिया है। इसका तात्पर्य यह है कि औद्योगीकरण के कारण उद्योगों में निरंतर परिवर्तन और परिवर्धन होते रहते है। औद्योगीकरण एक गतिशील शब्द हैं। 
3. उद्योगों की स्थापना का मूल उद्देश्य जीवनोपयोगी वस्तुओं का उत्पादन करना होता है, इसलिए ऐसा कहा जाता है कि औद्योगीकरण का संबंध उत्पादन से हैं।,
4. यंत्रों और मशीनों के अभाव में औद्योगीकरण की स्थापना नही की जा सकती है। इसलिए कहा जाता है कि औद्योगीकरण और यंत्रीकरण अंत:संबंधित हैं। 
5. औद्योगीकरण की प्रक्रिया के दो आवश्यक तत्व हैं-- 
(अ) नवीन उद्योगों की स्थापना और 
(ब) प्राचीन तथा छोटे उद्योगों को बड़े पैमाने के उद्योगों में परिवर्तित करना।
6. औद्योगीकरण के द्वारा प्राकृतिक शक्तियों का शोषण किया जाता है।
7. औद्योगीकरण में पूँजी का विकास और विस्तार किया जाता हैं। 
8. औद्योगीकरण का उद्देश्य आर्थिक विकास करना और राष्ट्रीय प्रगति करना होता हैं।
उपर्युक्त परिभाषाओं और विशेषताओं के विवेचन से यह स्पष्ट है कि किसी भी समाज के आर्थिक विकास के लिए औद्योगीकरण की महत्ता को नकारा नही जा सकता। औद्योगीकरण के कारण उत्पादन में वृद्धि होती है जिसके कारण राष्ट्रीय तथा प्रति-व्यक्ति आय बढ़ती है। औद्योगीकरण के कारण जहाँ एक ओर आयात-निर्यात मे सतुलन बनता है वहीं पर दूसरी ओर इसके कारण कुछ लोगों को अतिरिक्त रोजगार सुलभ हो पाता है और सामाजिक जन-जीवन का स्तर ऊंचा उठता जाता है भारतवर्ष में पिछले 30-40 वर्षों मे जो रहन-सहन के स्तर में उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है उसका अधिकांश श्रेय यहां हो रहे औद्योगीकरण को है।

औद्योगीकरण के प्रभाव (audyogikaran ke prabhav)

आधुनिक युग विज्ञान का युग है। औद्योगीकरण की प्रक्रिया उसी की देन हैं। भारत में उद्योगीकरण ने सामाजिक तथा आर्थिक दोनों ही पक्षों को प्रभावित किया हैं। औद्योगीकरण के प्रभाव को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता हैं--

औद्योगिकरण के सामाजिक प्रभाव (audyogikaran ke samajik prabhav)

औद्योगिक समाज का हमारे सामाजिक जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ा हैं। वेबलन ने स्पष्ट कहा है कि," व्यक्ति जैसा कार्य करता हैं वैसा ही अनुभव और विचार करता हैं।" औद्योगिक के पारिवारिक जीवन और सामाजिक जीवन पर प्रभाव निम्नलिखित हैं--
1. अपराधों में वृध्दि
औद्योगीकरण के प्रभाव स्वरूप अपरोधों मे वृध्दि होती है। क्योंकि ग्रामीण सामाज के लोग रोजगार के लिए औद्योगीक क्षेत्र मे आने लगते है। यहां पर उन्हें जो वातावरण मिलता है उससे वह अनिविज्ञ होते है। जिसकी वजह से वह तनाव और चिंता से घिर जाते है। यहां पर उन्हें अनौपचारिक सम्बन्धों का अभाव मिलता है। इसलिए वह व्यसनों शराब जैसी आदि लतों से घिर जाते है।
2. आधुनिकीकरण में वृध्दि
औद्योगीकरण से आधुनिकीकरण में वृध्दि होती है। क्योकि औद्योगीकरण में उत्पादन मे नई तकनीक का प्रयोग, नया बजार, यातायाता के साधन आदि आधुनिकीकरण की पृष्ठभूमि तैयार करते है।
3. स्त्रियों की स्थित में परिवर्तन
नागरीकरण की तरह ही औद्योगीकरण से भी स्त्रियों की स्थित में परिवर्तन होता है। औद्योगीकरण में स्त्रियों को शिक्षा और रोजगार के समान अवसर प्रदान किए हैं। जिससें स्त्रियां सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हो रही है।
4. जाति व्यवस्था में शिथिलता
औद्योगीकरण के कारण विभिन्न व्यवसायों में एक साथ काम करने के कारण जातिगत दूरियां कम हुई है। उद्योगों में सभी जातियों के व्यक्ति एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। यहां पर उनमें जातिगत भावना का अभाव पाया जाता है। विविध व्यवसायों के विकास के साथ होटल, यातायात के साधनों का विकास, शिक्षा दर में वृध्दि आदि ऐसे कारण से जिनसें जाति प्रथा में शिथिलता आ रही है।
5. संयुक्त परिवारों का विघटन
औद्योगीकरण के प्रभाव से संयुक्त परिवार का विघटन हो रहा है। लोग रोजगार की तलाश में औद्योगीक क्षेत्रों मे आ रहें हैं जिससे नगरो का विकास हो रहा है। फलस्वरूप संयुक्त परिवार एकल परिवारों मे परिवर्तित हो रहे है।
6. विवाह विच्छेद में वृद्धि 
व्यक्तिवादी दृष्टिकोण वाले व्यक्ति प्रेम-विवाह करते हैं। वे केवल प्रेम-विवाह की भावुकता को ही सब कुछ समझ बैठते हैं। इसलिए विवाह के बाद उनका जीवन कटु हो जाता हैं। औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप अब पति और पत्नि दोनों ही काम पर जाता है। यही नही पति-पत्नी अपने-अपने कार्यों पर अलग-अलग समय पर जाते है। जिसके चलते वह एक-दूसरे को पर्याप्त समय बिल्कुल भी नहीं दे पाते। फलस्वरूप उनके बीच तनाव बढ़ जाता है। तनाव बढ़ने के अनेक कारण हो सकते हैं। हो सकता है कि पति को अपनी पत्नि का नौकरी करना बुरा लगता हो या उसका घर से बाहर जाना उसे अखरता हो या स्वतंत्र विचारों के कारण भी पत्नि बुरी लगती हो अथवा ऐसी पत्नि जो बहस करने में दक्ष आदि हैं। ये सभी कारण विवाह-विच्छेद की स्थिति को उत्पन्न कर देते हैं।
7. गंदी बस्तियाँ 
औद्योगिकरण के परिणामस्वरूप नगरों में मजदूरों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और उनके अनुपात में मकान कम हैं। दूसरी तरफ श्रमिकों की इतनी आमदानी नही है जिससे वह एक अच्छा मकान ले सके या बना ले। नजीजा यह होता है कि एक छोटे से संकरे कमरे में अधिक-अधिक से अधिक व्यक्ति रहते है, जिसमें जुआ, शराब उचित व अनुचित सभी प्रकार के कार्य करते हैं। इसका प्रभाव उनके बच्चों तथा अन्य व्यक्तियों पर पड़े बिना नहीं रह सकता।
8. जनसंख्या में स्त्री व पुरूष का अनुपात 
औद्योगिक नगरों में पुरुष कार्य करने आते है और उनका परिवार गाँव में रहता है। इस प्रकार नगरों में पुरूष श्रमिकों की संख्या बढ़ती जा रही है। अपने परिवार को नगर में न लाने के एक नहीं अनेक कारण हैं। जैसे उनका वेतन कम है और साथ में नौकरी की अनिश्चितता भी है। श्रमिक के एकाकी जीवन को नियन्त्रण में करने के लिए उसके परिवार का नगर में कोई नहीं होता हैं। फलतः वह बुरी आदतों में फँस जाता है जैसे जुआ, शराब, वेश्यावृत्ति आदि।
9. प्रकृति से दूरी 
औद्योगिक नगर गाँवों से सैकड़ों मील दूर बस रहे है। यहाँ प्रकृति कारखानों के धुओं, महलों, अट्टालिकाओं से घिर कर कैद हो गयी है। यहाँ व्यक्ति स्वच्छ वायु के स्थान पर धुआँ पाता है। इस धुएँ में ही वह जन्म लेकर धुएँ के सिराहने ही सो जाता हैं। यहाँ रात में लोक-गीतों की मधुर ध्वनि सुनने को नही मिलती, बल्कि कारखानों की गड़गड़ाहट सुनने को मिलती है। यहाँ सूरज, चाँद कब निकल कर डूब जाते है, असंख्य परिवारों को यह भी नही मालूम हो पाता है। नगर तो व्यक्ति के बनाये हुए है, इसीलिए यहाँ सब कृत्रिम है। यह कृत्रिमता व्यक्ति के व्यवहारों में भी अपना स्थान बनाती जा रही हैं।

औद्योगिकीकरण का आर्थिक जीवन पर प्रभाव (audyogikaran ke aarthik prabhav)

औद्योगिकरण का प्रभाव हमारे आर्थिक जीवन पर भी काफी पड़ा हैं। औद्योगिकरण के परिणामस्वरूप आर्थिक जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव निम्नलिखित हैं-- 
1. पूँजीवाद में वृद्धि 
औद्योगिकरण के परिणामस्वरूप दुनिया में पूँजीवाद में वृद्धि हुई। भारत में भी अन्य देशों की भाँति औद्योगिकरण के फलस्वरूप पूँजीपतियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हुई हैं। बड़े-बड़े कल-कारखाने केवल उच्च वर्ग के लोग ही चला सकते थे, अतः उत्पादन के इन बड़े साधनों पर उच्च वर्ग का अधिपत्य स्थापित हो गया। अतः यह भी कहा जा सकता है कि औद्योगिकरण ने ही पूँजीवाद के विकास को प्रोत्साहित किया।
2. श्रम विभाजन और विशेषीकरण 
ग्रामीण उद्योगों में एक ही व्यक्ति सभी कार्यों को करता था, परन्तु अब औद्योगिकरण के कारण श्रम-विभाजन अवश्यंभावी हो गया, क्योंकि श्रम-विभाजन के बिना विशाल पैमाने पर उत्पादन संभव नहीं है। एक ही कार्य लम्बे समय तक करने से तथा विशेष कार्य को करने के लिए विशेष योग्यता की आवश्यकता होती हैं, अतः विशेषीकरण का भी जन्म हुआ। 
3. बेरोजगारी में वृद्धि 
बेरोजगारी की बढ़ती हुई समस्या भी औद्योगिकरण की देन हैं। एक ही मशीन कई व्यक्तियों का कार्य करके अनेक व्यक्तियों को बेकार बना देती है। नगर के सभी कारखाने, मिल आदि वर्ष भर नही चलते वरन् वहाँ कुछ महिने ही काम होता है और बाकी महीने मिलें बंद रहती है जिससे बहुत से व्यक्ति बेकार हो जाते हैं।
4. वर्गों की उत्पत्ति 
औद्योगिक समाज मे एक वर्ग वह है जो व्यापार में पूँजी लगाता है अर्थात् मिल, फैक्टरी का मालिक और दूसरा वर्ग वह है जो अपना श्रम बेचरक अपनी जीविका अर्जित करता है अर्थात् श्रमिक वर्ग। ये दो मुख्य वर्ग पूँजीवादी व्यवस्था की देन हैं।
5. यातायात और संचार के साधनों में प्रगति 
किसी भी देश के उद्योग की प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि यातायात और संचार के साधन अच्छे हो। जैसे-जैसे उद्योगों का प्रचार होता जा रहा है, इस क्षेत्र में काफी प्रगति होती जा रही है। आज रेल, जहाज, हैलीकाप्टर, स्मार्ट फोन आदि इसकी प्रगति के प्रतीक हैं।
6. कुटीर उद्योगों का पतन 
औद्योगिकरण के परिणामस्वरूप बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना हुई जिससे कुटीर उद्योगों का पतन हुआ। बड़े कारखानों द्वारा निर्मित वस्तुएं अधिक सुंदर व टिकाऊ होती थीं तथा साथ ही सस्ती भी, अतः लोगों ने कुटीर उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं के स्थान पर बड़े कल-कारखानों द्वारा निर्मित वस्तुओं को खरीदना प्रारंभ कर दिया। जिससे कुटीर उद्योगों का पतन होने लगा।
7. उच्च जीवन स्तर 
बड़े पैमाने पर उत्पादन, विभिन्न उद्योग-धन्धे, व्यापार, वाणिज्य आदि के विस्तार के साथ ही लोगों की आर्थिक स्थिति मे परिवर्तन आया हैं। इससे लोगों का जीवन स्तर भी उच्च हुआ हैं।
8. श्रमिकों के झगड़े, संघर्ष एवं घिराव 
पूँजीवादी व्यवस्था में अधिक से अधिक श्रमिकों का शोषण होता है, किन्तु श्रमिक वर्ग में नई चेतना का संचार हो गया है। वह अपने अधिकारों एवं माँगों की पूर्ति के लिए आये दिन पूँजीपतियों से संघर्ष करते रहते है। यह संघर्ष पूँजीपतियों एवं श्रमिकों के बीच निरन्तर चलता रहता हैं।
9. विभिन्न रोग एवं शारीरिक दुर्घटनाएँ 
बड़े-बड़े कारखानों में श्रमिकों के कार्य करने की दशाएं अभी भी असन्तोषजनक है। रोशनी के समुचित प्रबंध का अभाव, विषैली गैसों के मध्य कार्य करना आदि ऐसी स्थितियाँ है जिनसे श्रमिक वर्ग विभिन्न प्रकार की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।

औद्योगीकरण के उद्देश्य (audyogikaran ke uddeshy)

औद्योगीकरण का मुख्य उद्देश्य समाज के आर्थिक पहलू में विकास करना जिसके कारण अन्य सामाजिक पहलू स्वतः प्रभावित होते रहते है। उत्पादन के उच्चतर स्तर की प्राप्ति औद्योगीकरण द्वारा ही सम्भव है। उच्चतर उत्पादन स्तर प्रत्यक्ष रूप से व्यक्तियों के रहन-सहन से सम्बन्धित है। अति संक्षेप में औद्योगीकरण के उद्देश्यों को निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जा सकता है--
1. समाज के उन लोगो को रोजगार प्रदान करना, जो अभी इच्छुक होते हुए भी रोजगार में नहीं लगे है।
2. उत्पादन में वृद्धि करना जिससे राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय मे स्वतः वृद्धि हो सके। 
3. जन-जीवन के रहन-सहन के स्तर को ऊंचा उठाना।
4. समाज से दरिद्रता, गरीबी तथा अन्धविश्वास को दूर करना। 
5. विदेशी विनिमय की व्यवस्था जिससे निर्यात में स्थिरता बनी रहे।

औद्योगिकरण के दुष्परिणामों को रोकने के उपाय 

सामाजिक जीवन में औद्योगिकीकरण के दुष्परिणामों को रोकने हेतु निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-- 
1. लोगों के स्वस्थ मनोरंजन की व्यवस्था की जाये ताकि कि मद्यपान व वेश्यावृत्ति जैसे बुरे व्यवसायों से बचे रहें। 
2. बेरोजगारी को रोकने के लिए लघु एवं कुटीर उद्योगों को समुचित प्रोत्साहन दिया जाये।
3. श्रमिकों के बच्चों को पढ़ाने हेतु शिक्षा की उचित व्यवस्था की जाये। 
4. उद्योगों का विकेंद्रीकरण किया जाये। सभी बड़े कारखानों को केवल एक ही स्थान पर न स्थापित किया जाये अपितु उन्हें ग्रामीण क्षेत्र में भी लगाया जाये ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों में यातायात एवं संचार की बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाये जिससे ग्रामीणों का नगरों की तरफ पलायन को रोका जा सकता। 
5. नगरों का विकास योजना बद्ध तरिकों से किया जाये। 
6. औद्योगिकरण के कारण के उत्पन्न निवास की समस्या से निपटने हेतु आवास की समुचित व्यवस्था की जाए। मलिन बस्तियों की सफाई कर उनका समुचित विकास किया जाए। 
7. श्रमिकों को सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा प्रदान की जाए और उनके कार्य की दशाएँ निर्धारित की जायें।
संबंधित पोस्ट शायद यह जानकारी आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्ध होगी

5 टिप्‍पणियां:
Write comment

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।