3/26/2022

जनजाति की प्रमुख समस्याएं, समाधान/निराकरण हेतु सुझाव

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जनजाति कि समस्याएं

janjati ki samasya;नमस्कार दोस्तो स्वागत है आप सभी का जनजाति या अनुसूचित जनजाति वर्तमान समाज में अपने अस्तित्व के लिए अनेक चुनौतियों का सामाना कर रही हैं। भारत सरकर ने जनजाति के उत्थान के लिए कई कदम उठाए है एवं इनके उत्थान के लिए वर्तमान में भी प्रयासरत् है। लेकिन इसके बाद भी भारतीय जनजातियाँ आर्थिक, सामाजिक रूप से काफी अविकसित है। आज के इस लेख मे हम जनजाति की प्रमुख समस्याओं पर चर्चा करनेे जा रहेें हैैं।
भारतीय जनजातियों का आधुनिक सभ्यता के संपर्क में आने से सदैव कर्जदार की स्थिति बनी हुई है। वह इस कर्जदारी से इसलिए भी मुक्त नही हो पाते क्योंकि उसके द्वारा उत्पादित अथवा उसने द्वारा इकट्ठा की गयी वन वस्तुओं का उसे उन्हें मूल्य नहीं मिल पाता जितना उसको मिलना चाहिए।
जनजातियों में अल्प विकास से जुड़ी बीमारियां कुपोषण, संक्रामक रोग, मातृ व बाल स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं भी बहुत ही अधिक पायी जाती है।
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अंग्रेजों द्वारा भारत में एक समान राजनीतिक व्यवस्था लागू की गई थी, जिससे इनके परंपरागत अधिकार छिने गये और यह सिलसिला निरंतर जारी है। कभी विकास की गतिविधियों के कारण तो कभी संपर्क के कारण जनजातियों की समस्याएं बढ़ती गई।
जनजाति की प्रमुख समस्याओं को इस निम्म प्रकार से स्पष्ट किया जाता है-- 
1. भूमि से अलग होना
जनजाति की मुख्य समस्या भूमि से अगल होना है। जैसा की हम जानते है जनजातियां आज भी सभ्य समाज से दूर जंगलों और पर्वतों में अधिक निवास करती है। जनजातियों की प्रमुख समस्या भूमि से अलग हो जाने की रही है। प्रशासनिक अधिकारी, वन विभाग के ठेकेदार, महजानों इत्यादि के प्रवेश से उनका शोषण प्रारंभ हुआ है।
2. अशिक्षा
जनजाति की दूसरी समस्या अक्षिक्षा हैं, जनजाति के लोग शिक्षा से काफी पिछड़े हुए है यह लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने की वजाए खेतों में काम कर वाना अधिक पसंद करते है। यही कारण है की भारत सरकार के अनेक प्रयासों के बावजूद यह समाज आज भी अशिक्षित है। 2001 एक में जनजातियों के लोग 47.1 प्रतिशत शिक्षित थे। बर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जनजातियों के लोग 59 प्रतिशत शिक्षित है यानी आज भी 41 प्रतिशत लोग अशिक्षित है।
3. बंधक मजदूर
ॠणग्रस्तता, अज्ञानता आदि कारणों से यह लोग बंधक मजदूर बन जाते है। इनमें केवल एक व्यक्ति ही नही होता बल्की उसका पूरा परिवार ही मानो बंधक बन जाता है।
4. बेरोजगारी
जनजातियों की आजीविका के परंपरागत स्त्रोत सीमित होते है। जिससे इनमें बेरोजगारी की समस्या बनी रहती है। यह लोग शिक्षित बहुत ही कम बहुते है इसलिए इन लोगों को कोई अच्छा काम भी नही मिल पाता है।
5. निर्धनता
जनजातीय समुदायों में निर्धनता की स्थिति उनके अस्तित्व के लिए संकट पैदा करती है। इनकी आजीविका का मुख्य साधन कंद, मूल, शिकार, जलाने की लकड़ियां तथा छोटी मोटी झोपड़ियों तक ही सीमित है। आर्थिक रूप से यह लोग काफी पिछड़े हुए है।
6. ऋणग्रस्तता
जनजाति की ऋणग्रस्तता की समस्या काफी गंभीर समस्या रही है। जनजातियाँ अपनी उपभोग की सीमित आवश्यकताओं के साथ प्रकृति पर ही निर्भर रहते हुए सरल जीवन जीवन जीते थे, लेकिन बाहरी सामाज या सभ्य समाज के संपर्क मे आने से इन सामाजिक एवं संस्कृति परिस्थिति में बदलाव होने लेगे है। अच्छे वस्त्र, सौंदर्य, खान-पान आदि के कारण भी इन्हें धन आवश्यकता महसूस होने लगी है।
इसके अलाव इन लोगों की अल्प आय ज्यादातर बीड़ी, सिगरेट, शराब आदि में खर्च हो जाती है। इन सब की अब इन लोगों को आदत हो चुकी है, विवाह तथा किसी सार्वजनिक उत्सवों में भी यह लोग शराब को प्रमुखता देते है। इन लोगों की जीवन भर की कमाए खाने-पाने में ही निकल जाती है और जनजातियों की ऋणग्रस्तता की समस्या बनी रहती है।
7. नशे की लत
जनजातियों में शराब, बीड़ी, तम्बाकू आदि का चलन बहुतायत पाया जाता है। इनका नशा करना इनकी आदत चुकी है। जनजाति के लोगों में परंपरागत रूप से देशी शराब को प्रसाद के रूप में देवताओं को आर्पित करने व प्रसाद स्वरूप इसे ग्रहण करने की परंपरा है। आदिवासियों में पुरूष ही नही बल्कि महिलाएं भी शराब का सेवन करती है।
8. प्राकृतिक आपदाएं
प्राकृतिक आपदाएं भी जनजातियों की समस्याएं रही है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण स्थायी या अस्थायी रूप से इन्हें अपने मूल स्थान से दूर जाने के लिए विवश कर देती है।

जनजातियों की समस्याओं के समाधान अथवा निराकरण हेतु सुझाव

janjatiyon ki samasya ke samadhan hetu sujhav;वर्तमान में जनजातियों की समस्याओं के समाधान और उनके विकास के लिए भारत सरकार द्वारा अनेक सराहनीय कार्य किये जा रहे लेकिन फिर भी जनजातीय समस्याओं का निराकरण नही पा रहा हैं। वास्तव में भारत मे जनजातियों की अनेक समस्याएं आज भी बनी हुई हैं। इनके समाधान के लिए संगठित प्रयत्नों की आवश्यकता हैं। इस दिशा में निम्नलिखित सुझाव अधिक महत्वपूर्ण हो सकते हैं-- 
1. जनजातियों की आज भी सबसे बड़ी समस्या आर्थिक पिछड़ापन है। इसका समाधान करने लिए रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने के साथ ही स्वरोजगार की सुविधाओं को बढ़ाना जरूरी हैं। आदिवासी समुदाय आज भी अपनी दस्तकारी और विभिन्न प्रकार की कलाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। स्थानीय स्तर पर यदि इनके द्वारा बनायी गयी वस्तुओं को खरीदकर उनके विक्रय की समुचित व्यवस्था की जाये तो आदिवासियों की आर्थिक समस्याओं को काफी हद तक सुलझाया जा सकता हैं। जनजातीय ग्रामों में सहकारी समितियों की स्थापना करके, श्रमिकों को उचित मजदूरी दे कर, ठेकेदारों और वन अधिकारियों द्वारा उनके शोषण को रोकने एवं कम ब्याज पर कृषि के लिए ऋण की सुविधा देने से भी उनकी आर्थिक स्थिति में काफी किया जा सकता।  आदिवासी क्षेत्रों में कृषि की नयी और सस्ती प्रविधियों का प्रचार करना भी एक अच्छा कार्य हो सकता हैं। 
2. सांस्कृतिक समस्याओं का समाधान तभी संभव है जब बाहरी समूहों को जनजातियों पर अपने धर्म को थोपने के अवसर न दिये जायें। एलविन ने सुझाव दिया है कि जनजातीय संस्कृति की रक्षा करना आवश्यक हैं। इसके लिए उन्हीं की संस्कृति और भाषा के अन्तर्गत उन्हें स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करना जरूरी हैं। जनजातीय क्षेत्रों में केवल उन्हीं अधिकारियों की नियुक्त की जानी चाहिए जो उनकी भाषा तथा संस्कृति से परिचित हों। जनजातीयों को दी जाने वाली शिक्षा इस तरह की हो जिससे उनके अन्धविश्वासों और परम्परागत व्यवहारों में धीरे-धीरे परिवर्तन लाया जा सके। 
3. जनजातियों की सामाजिक समस्याओं के निराकरण के यह जरूरी है कि जनजातीय नेताओं की सहायता से लोगों के विचारों और मनोवृत्तियों में परिवर्तन लाया जाय। यह कार्य प्रत्येक गाँव में जनजातीय परिषदों की स्थापना कर किया जा सकता हैं। कुछ अधिक जागरूक लोग जब अपनी समस्याओं से परिचित होंगे, तब वे दूसरे व्यक्तियों को भी अपने व्यवहारों में परिवर्तन लाने का प्रोत्साहन दे सकेंगे। इन क्षेत्रों में नये कानूनों को इस तरह लागू करना आवश्यक हैं जो जनजातीय संस्कृति और परम्पराओं के पूरी तरह अनुकूल हों। 
4. जनजातियों की शैक्षणिक समस्याओं के निराकरण के लिए जनजातीय क्षेत्रों में व्यावहारिक शिक्षा की बहुत आवश्यकता हैं। यह व्यावहारिक शिक्षा कृषि, दस्तकारी, कृषि उपकरणों के निर्माण तथा हस्तशिल्प से संबंधित होनी चाहिए। विभिन्न अध्ययनों से प्रमाणित हुआ हैं कि जनजातीय बच्चों को छात्रवृत्तियाँ देना अधिक उपयोगी नही हैं क्योंकि इससे उनके माता-पिता का ध्यान छात्रवृत्ति की राशि पर ही रहता हैं। इसके बदले बच्चों को स्कूल में पौष्टिक आहार तथा पुस्तकों की सहायता देना अधिक उपयोगी होगा। शिक्षा के द्वारा जनजातीय क्षेत्रों में पशुपालन, मछली-पालन, मुर्गी पालन तथा मधुमक्खी-पालन को भी प्रोत्साहन दिया जा सकता है। जनजातीय क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा संस्थाओं का विस्तार करना भी आवश्यक है। 
5. जनजातियों की स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं को दूर करने के लिए आदिवासी क्षेत्रों में सचल चिकित्सालयों की व्यवस्था की जानी चाहिए। बसों के अंदर बने हुए यह चिकित्सालय 10-15 वर्ग किलोमीटर के अंदर आने वाले गाँवों में पहुँचकर प्राथमिक चिकित्सा की सुविधाएं प्रदान कर सकते हैं। विटामिनयुक्त गोलियों के वितरण तथा बच्चों के लिए आवश्यक टीके लगाने में भी इनकी भूमिका अधिक उपयोगी होगी। जनजातीय गाँवों में पीने के स्वच्छ पानी की व्यवस्था करना, लोगों को स्वास्थ्य के नियमों से परिचित कराना, गंदे पानी की निकासी का प्रबंध करना तथा स्वच्छता के नियमों का प्रशिक्षण देना भी आवश्यक है। 
6. जनजातियों में विकास कार्यक्रमों से उत्पन्न समस्याओं का समाधान करना सबसे अधिक आवश्यक हैं। यह अनेक अध्ययनों से स्पष्ट हो चुका है कि विकास अधिकारियों द्वारा ग्रामीणों को अनुदान या सब्सिडी के रूप में जो राशि दी जाती हैं, उसका एक बड़ा भाग वे स्वयं हड़प जाते हैं। इस स्थिति में इस तरह के अनुदानों अथवा सब्सिडी की व्यवस्था का कोई औचित्य नहीं हैं। सहायता की संपूर्ण राशि कृषि अथवा दस्तकारी के उपकरणों के रूप में जनजातीय परिषद् के माध्यम से वितरित होनी चाहिए। इससे धन का दुरूपयोग रूकेगा तथा योजनाओं का वास्तविक लाभ जनजातियों तक पहुंच सकेगा। 
7. जनजातियों में राजनीतिक असंतोष रोकने के लिए वर्तमान में एक व्यापक और व्यावहारिक दृष्टिकोण की बहुत आवश्यकता है। इसके लिए सबसे पहले तो जो जनजातियों के लिए विभिन्न सेवाओं में जितने प्रतिशत पद आरक्षित हैं, वे उन्हें अवश्य मिलना ही चाहिए। जहाँ पर अधिक जनजातीय जनसंख्या है उन क्षेत्रों में जनजातीय अधिकारियों की नियुक्तियों को प्राथमिकता देना चाहिए। राजनीतिक दलों के लिए एक ऐसी आचार संहिता होना चाहिए जिससे वे जनजातियों को भड़काकर अपने हितों को पूरा न कर सकें। वन संबंधी कानूनों से इस तरह संशोधन करना चाहिए जिससे जंगलों को बिना कोई हानि पहुंचायें आदिवासी अपनी आवश्यकता की वस्तुएं वहाँ से प्राप्त कर सकें।
यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

7 टिप्‍पणियां:
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  1. उत्तर
    1. इसने जो समस्या no.7 बताई वो सिर्फ st sc janjati me logo ki समस्या नहीं है बल्कि पूरे हिंदी धर्म की समस्या है अच्छा एक बात बताओ भेरवन बाबा को तुम जेनरल वाले मानते होना फिर उसपर शराब क्यों चड़ते हो

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  2. बेनामी20/5/22, 1:06 pm

    संदर्भ सूची बताइए

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  3. pravin gurnule28/5/22, 9:34 pm

    muze yeh information mere term paper likhate samay bahut upyogi sabit hue hai
    thanku team kailash education.....

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  4. बेनामी18/3/23, 10:00 am

    Janjitiya ka samashiya

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